Home ज्योतिष हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत का इस बार बना है बडा उलझन  

हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत का इस बार बना है बडा उलझन  

atul shashtri

भगवान शिव और पार्वती को समर्पित इस व्रत को लेकर इस बार उलझन की स्थिति बनी हुई है। व्रत करने वाले इस उलझन में हैं कि उन्हें किस दिन यह व्रत करना चाहिए। अतुल शास्त्री जी बताये हैं कि इस उलझन की वजह यह है कि इस साल पंचांग की गणना के अनुसार तृतीया तिथि का क्षय हो गया है यानी पंचांग में तृतीया तिथि का मान ही नहीं है।

आपको बता दें कि इस विषय पर ना सिर्फ व्रती बल्कि ज्योतिषशास्त्री  और पंचांग के जानकर भी दो भागों में बंटे हुए हैं। लेकिन अतुल शास्त्री के मत के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत 1 सितंबर को करना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि यह व्रत हस्त नक्षत्र में किया जाता है जो एक सितंबर को है। 1 सितंबर को पूरे दिन तृतीया तिथि होगी। संध्या पूजन के समय भी तृतीया तिथि का मान रहेगा जिससे व्रत के लिए 1 सितंबर का दिन ही सब प्रकार से उचित है। 2 तारीख को सूर्योदय चतुर्थी तिथि में होने से इस दिन चतुर्थी तिथि का मान रहेगा ऐसे में तृतीया तिथि का व्रत मान्य नहीं होगा। 1 सितंबर को सूर्योदय द्वितीया तिथि में होगा जो 8 बजकर 27 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसके बाद से तृतीया यानी तीज शुरू हो जाएगी और अगले दिन यानी 2 सितंबर को सूर्योदय से पूर्व ही सुबह 4 बजकर 57 मिनट पर तृतीया समाप्त होकर चतुर्थी शुरू हो जाएगी।

2 सितंबर को हरतालिका तीज को उचित मानने वाले विद्वानों का तर्क है कि शास्त्रों में चतुर्थी तिथि व्याप्त तृतीया तिथि को सौभाग्य वृद्धि कारक माना गया है लेकिन इसका कोई (एकमत) शास्त्रीय प्रमाण देखने को नही मिला। इनके अनुसार ग्रहलाघव पद्धति से बने पंचांग के अनुसार 8 बजकर 58 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि हो जाएगी। हरतालिका व्रत में एक नियम यह भी है कि हस्त नक्षत्र में व्रत करके चित्रा नक्षत्र में व्रत का पारण करना चाहिए। हस्त नक्षत्र 2 सितंबर के दिन प्रातः 8 बजकर 34 मिनट तक रहेगा इसलिये व्रति 1 सितंबर के दिन व्रत रखकर 2 सितंबर के दिन प्रातः 8 बजकर 34 मिनट के बाद चित्रा नक्षत्र में पारण कर सकते है यही शास्त्रसम्मत भी रहेगा।

हरितालका तीज पूजा मुहूर्त

हरितालिका पूजन प्रातःकाल ना करके प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त में किया जाना ही शास्त्रसम्मत है। प्रदोषकाल निकालने के लिये आपके स्थानीय सूर्यास्त में आगे के 96 मिनट जोड़ दें तो यह एक घंटे 36 मिनट के लगभग का समय प्रदोष काल माना जाता है।

प्रदोष काल मुहूर्त : सायं 06:41 से रात्रि:8:58 तक

पारण अगले दिन प्रातः काल 8 बजकर 34 मिनट के बाद करना उत्तम रहेगा। खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया हैं। विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से जहाँ कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं।  यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं। शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं।

महिलाओं में संकल्प शक्ति बढाता है हरितालिका तीज का व्रत

हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है। इस दिन महिलायें बिना कुछ खायें -पिये व्रत रखती है। यह व्रत संकल्प शक्ती का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिये मन मे निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है। इस प्रकार संकल्प हमारी अन्तरीक शक्तियोंका सामोहिक निश्चय है। इसका अर्थ है-व्रत संकल्प से ही उत्पन्न होता है। व्रत का संदेश यह है कि हम जीवन मे लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प लें। संकल्प शक्ति के आगे असंम्भव दिखाई देता लक्ष्य संम्भव हो जाता है।माता पार्वती ने जगत को दिखाया की संकल्प शक्ति के सामने ईश्वर भी झुक जाता है। अच्छे कर्मो का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है। इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विषेशतः महिलाओं के संदर्भ मे यह है कि आज समाज मे महिलायें बिते समय की तुलना मे अधिक आत्मनिर्भर व स्वतंत्र है। महिलाओं की भूमिका मे भी बदलाव आये है। घर से बाहर निकलकर पुरुषों की भाँति सभी कार्य क्षेत्रों मे सक्रिय है। ऎसी स्थिति मे परिवार व समाज इन महिलाओं की भावनाओ एवं इच्छाओं का सम्मान करें, उनका विश्वास बढाएं, ताकि स्त्री व समाज सशक्त बनें।

 हरतालिका तीज व्रत विधि और नियम

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि-सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं। विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओ को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं। कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं। उसके बाद शिव जी की पूजा की जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है।

इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके पश्चात आरती की जाती हैं जिसमे सर्वप्रथम गणेश जी की पुनः शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। प्रातः अन्तिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।

ज्योतिष सेवा केन्द्र
पण्डित अतुल शास्त्री
09594318403/9820819501

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