‘विजय’ के ढह रहे ‘गढ़’ का अगला वारिस कौन
भदोही। हेलो…! मैं विजय मिश्रा बोल रहा हूं…’ सत्ता की हनक, बाहुबल की चमक और रुपए की दमक के बीच गूंजने वाला यह शब्द अब पूरी तरह थम सा गया है। भदोही में कभी यहीं आवाज सुनते ही अधिकारियों सहित लोगों के दिलो दिमाग में एक सिहरन सी दौड़ जाती थी। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आते ही अपराधियों और माफियाओं की नकेल कसे जाने के बाद अपराध के दुनिया की हलचल से लंबे समय तक अशांत रहने वाला भदोही जिला अब शांत हो चुका है। ज्ञानपुर विधायक सहित उनके परिजनों और करीबियों की नकेल कसे जाने के बाद सियासत यहां नई करवट ले चुकी है और इसी के साथ शुरू हो चुका है भदोही के सियासी अखाड़े का एक नया अध्याय। किन्तु एक सवाल आज भी लोगों के जेहन में तैर रहा है कि पिछले दो दशक से भदोही की राजनीति में एकछत्र राज करने वाले विजय मिश्रा के गढ़ ज्ञानपुर का अब कौन वारिस होगा। हम बात कर रहे हैं, दो दशक से भदोही की फिजां में कायम सियासी समर के बीच ही एक ऐसे सियासतदां की, जिसका नाम विजय मिश्र है। विजय मिश्रा मूलतः इलाहाबाद जनपद के हन्डिया कोतवाली क्षेत्र के खपटिहा गांव के मूल निवासी हैं। जिसने भदोही की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने के लिये साम दाम दंड भेद हर हथकंडा अपनाया।
राजनीति के इस खिलाड़ी की एक चर्चा करना लाजिमी होगा। वर्ष 2009 की बात है। फरवरी का महीना था। ठंड ढलान पर थी। लेकिन कालीन नगरी भदोही का सियासी पारा उप चुनाव के कारण गरम था। प्रदेश की सीएम थीं मायावती। 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत में आईं बसपा हर हाल में इस बार भी बाजी मार लेना चाहती थी। भदोही से उसके उम्मीदवार थे गोरखनाथ पांडेय। उधर समाजवादी पार्टी भी इस उपचुनाव के जरिए वापसी करने की जुगत में थी। भदोही में बसपा के नेता कैंप कर रहे थे। मायावती ने ज्ञानपुर के विधायक विजय मिश्रा से कहलवाया कि वे उनके प्रत्याशी को समर्थन दें। मायावती को यह पता था कि विजय मिश्रा की पकड़ पूरे जिले में है। विजय ने मायावती के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। घटना के कुछ दिन बाद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अपने प्रत्याशी छोटेलाल बिंद के समर्थन में चुनाव प्रचार करने आये थे। मंच पर मौजूद विधायक विजय मिश्रा को खबर मिलती है पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आ रही है। विजय मिश्रा स्टेज पर आये और गिरफ्तारी से बचने के लिये मुलायम सिंह यादव से गुहार लगायी। नेताजी ने खुले मंच से कहा कि जिसकी हिम्मत हो पकड़कर दिखा दे हमें। और फिर वो विजय मिश्रा को लेकर हेलिकॉप्टर में लेकर उड़ गए।
विजय मिश्रा के बारे में भदोही में एक कहावत प्रसिद्ध है ‘ऐसा कोई सगा नहीं जिसको उसने ठगा नहीं’। कहा जाता है कि विजय मिश्रा जिसके भी करीब रहे उसे कुछ न कुछ मुसीबत का सामना करना पड़ा। एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले मिश्रा ने भदोही जिले के डीघ ब्लॉक से ब्लाक प्रमुख के रूप में सियासत का सफर शुरू किया और एक के बाद एक की तर्ज पर प्रमुख चुने जाते रहे। भदोही जनपद के सृजन के बाद जिला पंचायत के प्रथम चुनाव में उन्हें डीघ से ही पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. श्यामधर मिश्र के भाई पंडित गुलाबधर मिश्र से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन, इसके बाद इस शख्स ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
कहा यह भी जाता है कि राजनीति में आने से पहले विजय मिश्रा भदोही के एक मुस्लिम कालीन निर्यातक के यहां नौकरी करते थे। उनका काम था बकायेदारों से पैसा वसूल कर लाना। वे उस निर्यातक को अब्बू कहकर बुलाते थे। मिश्रा में चापलूसी कर लोगों को मिला लेने की कला ऐसी थी कि शीघ्र ही वे आम से खास हो जाते थे। चर्चा यह भी है कि उस दौरान उक्त निर्यातक ने भदोही के स्टेशन रोड स्थित मुल्ला तालाब पर एक देशी शराब का ठेका खुलवा दिया था। उक्त निर्यातक की सियासत में गहरी पैठ थी। भले ही वे कभी चुनाव नहीं लड़े किन्तु प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों से उनके गहरे संबंध थे। यहीं से विजय मिश्रा के दिल में सियासी कीड़ा कुलबुलाने लगा था।
खैर बात करते हैं विजय मिश्रा के राजनीति की। जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद विजय मिश्र ने ग्यानपुर से समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर एक नहीं, बल्कि दो बार जीत दर्ज की। इस दौरान तमाम सियासी दलों का कथित रूप से उत्पीड़न भी हुआ, जिसकी वजह से भी सपा विधायक लगातार चर्चा में बने रहे। जुलाई 2010 में बसपा सरकार के मंत्री नंद कुमार नंदी पर प्रयागराज में हुए हमले में विजय मिश्रा का नाम आया। इस हमले में एक सुरक्षाकर्मी और इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर विजय प्रताप सिंह सहित दो लोग मारे गए थे। वह फरार हो गया। 2011 में विजय मिश्रा ने दिल्ली स्थित हौज खास में लंबी दाढ़ी और लंबे बालों में साधु वेश में समर्पण किया। जेल में ही रहकर वर्ष 2012 में वह सपा के टिकट पर ज्ञानपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर विजय हासिल किया।
विजय मिश्रा भले ही विधायक भदोही के ज्ञानपुर विधानसभा सीट से रहे किन्तु उसका प्रभाव भदोही सहित आसपास के जिलों में भी रहा। यहीं वजह रही जो हमेशा मुलायम सिंह के पंसदीदा बने रहे। वर्ष 2017 में हुए चुनाव में अखिलेश ने बाहुबली-विरोधी छवि को मजबूत करने के लिए ज्ञानपुर से विजय मिश्रा का टिकट काट दिया। भदोही के ज्ञानपुर विधानसभा सीट से वे 2002, 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट से जीते थे। 2017 में विजय मिश्रा पर 50 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे। इस बार वे निषाद पार्टी से चुनाव लड़े और मोदी लहर में भी उन्होंने 20 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। विजय मिश्रा के उपर अपराधी होने के ठप्पा भले ही लगता रहा किन्तु ज्ञानपुर विधानसभा क्षेत्र में उसकी पकड़ हमेशा से रही है, खासकर ब्राह्मणों के बीच। यही कारण है कि 2012 में वे जेल में रहते हुए भी चुनाव जीत जाते हैं। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में विजय मिश्रा की बेटी सीमा मिश्रा को सपा ने भदोही से टिकट दिया। मोदी लहर में भी उन्हें दो लाख से ज्यादा वोट मिला, लेकिन वे तीसरे नंबर पर रहीं। पत्नी रामलली मिश्रा भदोही से जिला पंचायत अध्यक्ष और मिर्जापुर-सोनभद्र सीट से एमएलसी का चुनाव भी जीत चुकी हैं।
कहावत है जब किस्मत दगा देती है तो अपने भी साथ नहीं देते। उनके एक रिश्तेदार ने ही विजय मिश्रा, पत्नी और पुत्र पर मकान कब्जा करने के आरोप के तहत मुकदमा दर्ज कराया। साथ ही एक गायिका ने भी उनके साथ उनके पुत्र विष्णु मिश्रा व भतीजे मनीष मिश्रा पर गैंगरेप का मुकदमा दर्ज कराया। गायिका के साथ व्हाट्सअप वीडियो काल का स्क्रीन शॉट वायरल होने से भी विधायक की काफी छीछालेदर हुई। जिसके बाद उनके समर्थक भी मुंह चुराने लगे। इसके बाद मार्च 2021 में उन्हें मध्य प्रदेश से गिरफ्तार कर लिया गया और इस समय आगरा के सेंट्रल जेल में बंद हैं। अपनी गिरफ्तार के समय उन्होंने मीडिया से बात करते हुऐ योगी सरकार पर अपनी हत्या करवाने का आरोप लगाया था और कहा था की सरकार जाति विशेष के कहने पर मेरे खिलाफ साजिश रच रही है। भतीजा और डीघ ब्लॉक प्रमुख मनीष मिश्रा भी कई मामलों के तहत जेल में है।
पिछले दिनों आय से अधिक संपत्ति के मामले में बाइज्जत बरी हुये पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा ने विजय के मिश्रा के उपर सियासत कर फर्जी मुकदमा कराने व जेल भिजवाने का आरोप लगाया था। जबकि कहा जाता है कि एक बार मंत्री रहते हुये खुद रंगनाथ मिश्रा ने विजय को एन्काउण्टर से बचाया था।
काबिले गौर यह है कि विधायक के जेल जाने के बाद उनका सियासी किला भी ढहता जा रहा है। कल तक उनकी चौखट चूमने वाले आज उनके दुश्मनों के घर हाजिरी लगा रहे हैं, जिससे कयास लग रहे हैं कि अब विधायक की राजनीति जेल में ही दम तोड़ देगी। विधायक व उनके कई करीबी जेल की सलाखों के पीछे हैं। उसे राजनीति से दूर रखने के लिये समर्थकों पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। इसके बावजूद भी आम जनता में विजय मिश्रा की खौफ कम नहीं हुआ है। सरकार के क्रियाकलापों को देखते हुये यहीं कयास लगाया जा रहा है कि वह जेल में रहते हुये भी चुनाव लड़ा तो क्या 2012 की तरह फिर जीत जायेगा। या फिर उसके सियासी गढ़ को ध्वस्त करने में ज्ञानपुर के सियासतदां कामयाब होगे।