Home मुंबई हिंदी दिवस पर समर्पित हिंदी भाषा का संघर्ष

हिंदी दिवस पर समर्पित हिंदी भाषा का संघर्ष

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निज भाषा उन्नतिअहे ,सब उन्नतिके मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय के शूल।।

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र जी द्वारा रचित यह दोहा अपनी मूल भाषा के महत्व को समझाने का सबसे उत्तम उदाहरण हैं।

हिंदी दिवस पर सभी देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए आज का लेख ‘हिंदी भाषा का संघर्ष’ लेखक की मातृभाषा भी हैं इसलिए हिंदी भाषा का महत्व सदासर्वदा वंदनीय हैं।

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा के रूप मे विद्यमान हैं हिंदी भाषा

हिंदी भाषा दुनिया मे सबसे ज्यादा बोलने व समझने वाली भाषाओं मे से एक हैं।
भारत मे हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या 70 करोड़ के करीब हैं,देश से बाहर मारिशस,फिजी,सुरीनाम,टोबेगो,त्रिनिदाद व नेपाल मे बोली जाने वाली भाषा है।
करोड़ों लोग इस बोली को समझने और जानते हैं। अगर उनकी भी संख्या इसमें शामिल कर लिया जाए तो हिंदी भाषा दुनिया की दुसरी बड़ी भाषा के रूप मे विद्यमान हैं।

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा मे एकमत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया

हर वर्ष 14 सितंबर को हमलोग हिंदी दिवस के रूप मे मनाते आ रहे हैं। पर सच्चाई यही है कि भारतीय संविधान की कोई राष्ट्र भाषा नहीं हैं,
अंग्रेजी भाषा के चलन को बढ़ने से रोकने के लिए 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा मे एकमत से राजभाषा के रूप मे हिंदी को राजभाषा के रूप मे घोषित किया गया था।इसके बाद से हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप मे मनाया जाने लगा है।

राज्यों मे बोली जाने वाली 22भाषाओं को आधाकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है

राज्य मे बोली जाने वाली इन 22 भाषा में उर्दू,कन्नड़,कश्मीरी,कोंकणी,मैथली,मलयालम,मणिपुरी,मराठी,नेपाली,ओड़िसा,पंजाबी,संस्कृत,संतती,सिंधी,तमिल,तेलुगू,बोड़ो,डोगरी,बंगाली और गुजराती को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। इन भाषाओं के बावजूद भी बहुत से स्थानों व न्यायालयों मे केवल अंग्रेजी भाषा को ही जगह दी गयी हैं। जो बहुत ही चिंता का विषय हैं , जो राज्यभाषा के महत्व पर भी प्रश्नचिन्ह हैं, जबकि 2010 में गुजरात उच्च न्यायालय ने सभी भाषाओं को समान अधिकार रखने का आदेश दिया था।

हिंदी भाषा का सबसे बड़ा विरोध दक्षिण भारत में

सत्ता मे बैठे जाति,भाषा,मजहब,और प्रांत वाद के नाम से राजनीति करने वालो ने कभी हिंदी को राष्ट्र भाषा बनने नही दिया हिंदी भाषा को राजभाषा बनने से रोकने मे दक्षिण भारत के लोगों का पुरजोर विरोध भी शामिल रहा हैं। हुआ यूँ किआजादी से पूर्व सन् 1937 मे प्रांतीय चुनावों में तब मद्रास प्रेसिडेंसी मे बहुमत से कांग्रेस चुनकर आयी और सत्ता की कुर्सी पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी विराजमान हुए,उन्होंने राज्य मे हिंदी शिक्षा को बढ़ावा देने की इच्छा जाहिर कर दी, जो मिड़िया द्वारा प्रसारित खबरों के अनुसार 1938 में मद्रास प्रेसिडेंसी के 125 सेकेंडरी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के रुप मे लागू कर दिया,बस इसी निर्णय को तमिलों द्वारा बड़े विरोध के साथ जनांदोलन का रूप दे दिया जिसमे बच्चों व महिलाओं समेत हजारों लोगों ने भाग लिया दो साल तक चले आंदोलन को ई.वी.रामसामी (पेरियार)और अन्नादुरई ने इस भाषाई आंदोलन को अपना राजनीतिक हथियार बना लिया इसके परिणामस्वरूप 1940 मे कांग्रेस के इस्तीफे के बाद ब्रिटिश गवर्नर ने हिंदी अनिवार्यता को खत्म कर दिया।

आजादी के बाद भी हिंदी भाषा उचित सम्मान नहीं मिला

आजादी के बाद भी हिंदी भाषा को सम्मान दिलाने वाले आज भी पूर्णतया असफल ही रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह हैं कि हमारे ही देश में अंग्रेजी भाषा को बड़ा महत्व दिया जाता हैं, यूँ मान लिजिए अगर अंग्रेजी बोलना संभ्रांत होना मान लिया जाता हैं, हर जगह आम बोलचाल मे भी अंग्रेजी को ज्यादा महत्व देकर हम लोगों स्वयं ही हिंदी भाषा के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख होने लगें हैं। प्रथम शिक्षा आयोग द्वारा सुझाए गये ‘त्रिभाषा सूत्र’ देश के सभी स्कूलों मे तीन भाषाओं को पढ़ाया जाना था। ऐ भाषा हिंदी,अंग्रेजी व दूसरे राज्य की कोई भी एक भाषा का पढ़ाया जाना था। लेकिन राजनीति के चलते इन राज्यों ने अपने यहां दूसरे राज्यों की भाषा पढ़ाने की बजाय संस्कृत पढ़ाना जरूरी कर दिया, इससे हिंदी भाषा अन्य दूसरे गैर हिंदी राज्यों मे बराबर विकसित नहीं हो पाई जिससे अंग्रेजी शक्तिशाली भाषा बनती रही।

हिंदी भाषा को बढ़ावा देने मे सरकार को आगे आने की आवश्यकता हैं।

वर्तमान सरकार भाजपा की बहुमत की सरकार हैं, और राज्य के कई हिस्सों मे भी सरकार भाजपा की हैं विश्व का सबसे बड़ा संगठन आर.एस.एस. भी सरकार के सहयोग मे निरंजन खड़ा हैं। यदि हिंदी भाषा के पक्ष मे कुछ संविधान संसोधन कर अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को आम सहमति या फिर सख्ती से लागू कर हिंदी भाषा को न्याय दिला सकते हैं। जब धारा 370 व तीन तलाक जैसे मुद्दों पर आम सहमति बन सकती हैं तो,हिंदी भाषा के लिए एक मजबूत पहल कर इस भाषा को राजभाषा बनाने मे सरकार पहल कर ही सकती हैं।

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