पारंपरिक त्योहार होली भाईचारे और प्रेम का प्रतीक है जिसमें बुराइयों को खत्म कर हम एक दूसरे को रंगो से सराबोर कर गले लगाते हैं। दुश्मनी खत्म करते हैं और मित्रता का वातावरण कायम करते हैं लेकिन हमें अपने पर्यावरण के प्रति हमेशा जागरुक रहना चाहिए ।
होली में हम रंगों को पानी में घोलकर एक दूसरे पर डालते हैं। पिचकारी से उन्हें रंगते हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि इस प्रक्रिया में कितना पानी बर्बाद होता है?? जबकि इस होली के आसपास ही विश्व जल दिवस मनाया जायेगा।
यह सिर्फ़ संयोग नहीं है, बल्कि प्रकृति का एक सन्देश है कि हम ये बात याद रखें कि इस धरती पर भीषण जल संकट है, विश्व की लगभग सवा छः अरब आबादी में से एक अरब जनसंख्या को पीने का साफ़ पानी भी उपलब्ध नहीं है। जबकि विभिन्न इलाकों में पानी के लिये लड़ाईयाँ जारी हैं। ऐसे में हम अपना त्यौहार कम से कम पानी से मनायें तो अच्छा होगा। बेहतर है कि सूखी होली खेलें। रंग बिरंगे अबीर गुलाल एक दूसरे पर चेहरे पर मल कर ।आखिर अबीर गुलाल ही तो खुशी का प्रतीक है।
होलिका दहन का मतलब लकड़ियां जलाकर शकुन पूरा करने से नहीं है, वरन अपने अंदर की बुराइयों को जड़ से मिटाने का है। परंपरा के नाम पर हरे-भरे पेड़ों को काटना मूर्खता है, क्योंकि पेड़ हमारे जीवन का आधार हैं। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। होली जरूर जलाएं लेकिन कंडों की और गोकाष्ठ(गोबर से बनी लकड़ी) की ।आजकल गोकाष्ठ बनाने की प्रक्रिया आरंभ है और कई जगहों पर इसी की होली जलाई जाएगी। यह एक बहुत उचित कदम है अपने पर्यावरण को बचाने का।