मुंबई । राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था काव्यसृजन द्वारा होली मिलन काव्यसंध्या व सम्मान समारोह दिनांक 14 अप्रैल 2019 रविवार को लालबहादुर शास्त्री मैदान शास्त्री नगर गोरेगाॅव (पश्चिम) में लोकनाथ तिवारी अनगढ़ जी की अध्यक्षता व लालबहादुर यादव कमल जी के संचालन में विधिवत सम्पन्न। इस समारोह के मुख्य अतिथि रहे डॉ श्रीहरि वाणी जी जो कि कानपुर से विशेष आग्रह पर पधारे थे। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर जवाहरलाल निर्झर द्वारा प्रस्तुत शारदा वंदना से हुआ।
प्रथम सत्र में महानगर मुम्बई व आस पास से पधारे मुर्धन्य कवियों द्वारा कविता से हुआ। कवियों में श्री शिवप्रकाश जौनपुरी, मुर्धन्य पुर्वांचली, अजय बनारसी, जवाहरलाल निर्झर, विरेन्द्र यादव, रमाकांत लहरी, श्रीराम शर्मा, एन बी सिंह नादान, विनय शर्मा दीप, डॉ श्रीहरि वाणी, श्रीनाथ शर्मा, विरेन्द्र यादव, रमेश श्रीवास्तव, हरीश शर्मा यमदूत, अवधेश विश्वकर्मा, डॉ रामनाथ राणा,मुन्ना सिंह विलय,अमित झा,विनीत शंकर, आदर्श पाण्डेय, तारिक इरफान, तरुण गुप्ता, श्रीधर मिश्र, जाकिर हुसैन रहबर, आनंद पाण्डेय केवल, अभिजीत सिंह यादव, अनिल कुमार राही, लोकनाथ तिवारी अनगढ़, लालबहादुर यादव कमल, विनम्र सिंह, ए०अनिल शर्मा, दीपांश मित्तल, डॉ वासिफ यार, राजेन्द्र, पवन तिवारी, दिनेश चंद्र वैशवारी, सुमन तिवारी, इंदू मिश्रा, डॉ वर्षा सिंह आदि कवि कवियित्रियों ने इस होली मिलन समारोह में अपनी रचनाओं से सबको भावविभोर करते हुए चारचाँद लगा दिया। इस आयोजन के विशेष आकर्ण रहे युवा फौजी कवि अभिजीत सिंह यादव जी।
द्वितीय व तृतीय सत्र का संचालन पं.शिवप्रकाश जौनपुरी ने किया। द्वितीय सत्र में अपने अपने क्षेत्र के उत्कृष्ट योगदान देने वाली विभूतियो को सम्मान पत्र शाल तुलसी का गमला प्रदान कर संस्था काव्यसृजन ने विभूषित किया। इस समारोह के सम्मान मूर्ति रहे रोटरी क्लब के मैनेजर शिक्षक समाज सेवक श्री लालबहादुर यादव लल्लन, फौजी अभिजीत सिंह यादव, युवा साहित्यकार, निखिल पाण्डेय, बाल कवि आदर्श पाण्डेय, वरिष्ठ कवि भोलानाथ तिवारी मुर्धन्य, सेवा भावी दत्ता भाऊ लाड, पत्रकार विनय शर्मा दीप, साहित्य सेवी एन बी सिंह नादान, राजनीति से शिवदयाल मिश्र, व महिला साहित्य से सौ.इंदू भोलानाथ मिश्रा जी को सम्मानित किया गया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में अनगढ़ जी ने आज की कविता और कवियों पर अपने प्रखर बिचार प्रस्तुत किये व सभी कवियों को साधुवाद दिया। मुख्य अतिथि डॉ श्रीहरि वाणीजी ने संस्था के कार्य की मुक्तकंठ से प्रसंशा की और संस्था के पदाधिकारियों को साधुवाद दिया।
होली मिलन समारोह में उपस्थित सभी कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं से लोगों को आनंदित कर दिया किन्तु कुछ कवियों की रचनाएँ इस प्रकार रही जो खूब तालियां बटोरी –
वरिष्ठ कवि, गज़लकार एन• बी• सिंह नादान द्वारा प्रस्तुत गज़ल ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया-
हम गिला कर न सके उनसे मुहब्बत करके,
और फिरते हैं ज़माने से शिकायत करके ।
शौक-ए-इश्क ने पामाल किया मुझको यूँ,
जख्म ही जख्म मिले उनसे रफ़ाक़त करके ।।
पंडित शिवप्रकाश जौनपुरी के द्वारा सुनाई गई फाग गीत ने श्रोताओं का दिल जीत लिया-
होरी खेलइं मोरे वीरा बाडर पे,होरी खेलइं मोरे वीरा।।
लइके मशीन गन सीमवा पे घूमइं,देशवा के कइके सुरक्षा खुब झूमइं।
खुनवा से रंगइं शरीरा हे खुनवा से रंगइं शरीरा बाडर पे,होरी खेलइं मोरे वीरा।।
दिन राति चौकस करइं रखवारी,देखतइ दुश्मनवन के देइं गोली मारी।
खुनवा से खींचइ लकीरा,हे खुनवा से खींचइं लकीरा बाडर पे,होरी खेलइं मोरे वीरा।।
वो जागत बांटे तबइ हम सोई,ओन्हईं के दम पे खुब सपना संजोई।
ओन्हई के दम पे जोगीरा,हे ओन्हईं दम पे जोगीरा बाडर पे।।
होरी खेलइं मोरे वीरा।
कवियत्री इंदु भोलानाथ मिश्रा ने तो होली पर बरसाने की छवि को उकेरते हुए कहती हैं-
पिचकारी धरी थारी बिच राधा,
कान्हा के राह निहार रही हैं।
हुरियारें जब आये बरसानें,
रंग गुलाल वो उड़ा रही हैं।
सजी थारी लाल पहनी सारी,
नटखट को खूब लुभा रही हैं।
आज न छोड़ेंगे छेड़ोगें जब तू,
लठ प्रेम के बरसा रही हैं।।
कवि वीरेन्द्र कुमार यादव ने आज के नेताओं पर व्यंग्य कसते हुए क्या खूब कहा-
भरा है पेट जब उनका, किसी की भूख क्या जानें,
रहें फुटपाथ पर जो लोग, कैसे घर उसे मानें |
मिटा देंगे ग़रीबी, बोल ऐसे रोज़ वो बोलें,
महल में जो रहें नेता, ग़रीबी ख़ाक पहचानें |
गज़लकार जनाब अनिल कुमार राही की गज़ल ने तो चार चाँद लगा दिया-
देखना हाथ से यूँ निकल जाउँगा।
वक़्त हूँ याद रख मैं बदल जाउँगा।।
क्या हो तुम क्या कहूँ बस यहाँ ख़ाक तुम।
ये न कहना कभी मैं संभल जाउँगा।।
ठाठ जो ये तेरा मेरी सौगात है।
सोचले रेत सा मैं फिसल जाउँगा।।
क्या पता नाज़ किस बात का है तुझे।
बात ही बात में तुझको छल जाउँगा।।
वक़्त जायां नहीं कर्म अपना करो।
झोपड़ी को महल में बदल जाउँगा।।
मोल करना नहीं मैं तो अनमोल हूँ।
तुमको देकर मगर सब वो पल जाऊँगा।।
खेल समझो न तुम ज़िंदगी का ये पल।
साथ ‘राही’ चलो तो पिघल जाउँगा।।
मधुमास बसंत एवं होली के रंग में रंगते हुए प्रकृति पर गीत सुनाते हुए एडवोकेट अनिल शर्मा ने खूबसूरत प्रस्तुति दी-
कली कली अलि झुंडहि झुंड,पुहुप मुंड मंडराय रहे हैं।
झूम झूमकर प्रसून डाल , मस्त मकरन्द लुटाय रहे हैं।।
कोयल कूक हूक निसारत, सुनि के जिया बवराय रहे हैं।
हास परिहास देखि निरखि , हमरो हिया हुलसाय रहे हैं।।
चुनर पीत पहिनि अवनी, सरसों पीयर मुसकाति अहै।
गेंदा गुलाब बेला कचनार, चंपा चमेली गमगमाति अहै।।
फूले पलाश पात लाल लाल, आम अमराई महकाति अहै।
मधुमास की दुलही वासंती, अपने सिंगारहि लजाति अहै।।
ऋतुन में ऋतुराज कहायो, हिय हरसायो लुभायो बसंत।
संगहि अनंग काम कामिनी, मौसम गदरायो दिग दिगंत।।
रति के पतिहि कामदेव जी, मारत बान औ बेधत अनंत।
बसंत में कन्त जू ना अइब, तब होइहैं हमरो बस अंत।।
छंद व सवैया के कवि विनय शर्मा “दीप” ने आज के नेताओं के बदलते रूप पर व्यंग्य करते हुए कहा-
कोई परिवार कोई जातिवाद पर फिदा,
धर्म संप्रदाय कोई निज स्वार्थ मस्त है ।
सोच नहीं दिखती है देश के भविष्य की,
बीच मझधार नाॅव जन-जन त्रस्त हैं ।
कैसे खेल खेलते दुसाशन दुर्योधन ये,
देश प्रेमी नमक हरामों से ही पस्त हैं ।
दीन दुःखी नौजवान देश के किसान सभी,
रोजी-रोजगार कोई भूखा पेट लस्त है ।।
साहित्य के मर्मज्ञ पंडित लोकनाथ तिवारी अनगढ़ जी की रचना तो सबके दिलों में जगह बनाली, वे कहते हैं-
हमरो करा द ना बिआह, ए बरम बाबा ।
अब ना सहाता ।
उमिर होइ गइले जस दुआह ।
ए बरम बाबा ………
सोचले रहीं जब मिलिहे नोकरिया ।
मन के मोताबिक. छाँटब. शहरी छोकरिया ॥
सोचली ना बतिआ. अगाह ।
ए ………
हमरा दहेज के ना तनिको भी लोभ बा ।
कसहु बिआह होइत एतने के छोभ बा ॥
होत बाटे जिनिगी तबाह ।
ए ………
घरवा में भउजी रोजे देत बिआ ताना ।
बंडा बंडा कहेले त तनिको सोहाना
॥
कसहु करा द ना निबाह ।
ए……
कहे लोक नाथ भइया लोगवा सुनिजा ।
अल्ट्रा साउंड के इहे बा नतीजा ॥
कविवर अजय बनारसी जी की रचना भी एक अलग छाप छोड़ने से पीछे नहीं रही-
मैं संस्कृतियो और परम्पराओ के
बंधन में रहना चाहती हूँ।
लेकिन
कुरीतियों को कुतरना चाहती हूं।
आधी आबादी हूँ इसलिए हक से
संग संग चलना चाहती हूं।
मुझे भी पसंद है मेरी मिट्टी की खुशबू,
जैसे खिलते है फूल इस बगिया में
मैं भी उन्मुक्त हो खिलना चाहती हूं।
आधी आबादी हूँ इसलिए हक से
संग संग चलना चाहती हूं।।
शब्द बिन संवाद नहीं हो सकता ऐसे गीत सुनाते हुए गीतकार,साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि पवन तिवारी जी कहते हैं-
शब्दों के बिन अब होगा संवाद प्रिये
प्रेम समर्पण होता नहीं विवाद प्रिये
शब्द अखरते हैं अक्सर उदात्त प्रेम में
मौन श्रेष्ठ है बस कर लो अनुवाद प्रिये,
करुणा की भी अपनी भाषा होती है।
प्रेम की इक मर्यादित भाषा होती है।
शब्दों की वैशाखी अब तुम मत लेना,
आखों की भी मोहक भाषा होती है।
प्रेम समझने चले भी जितने परे हुए।
जिनको ना विश्वास प्रेम से डरे हुए
केवल ये विश्वास का रिश्ता है। प्यारे,
टिके वही जो डोर हैं इसकी धरे हुए,
अन्तस् से अन्तस् का रिश्ता होता है।
बाहर वाला रिश्ता अक्सर खोता है।
प्रेम कभी भी जिस्मों का संबंध नहीं,
प्रेम रूह से रूह का नाता होता है।।
गीतकार, ग़ज़लकार जाकिर हुसैन रहबर के तेवर अलग दिखे,वे कहते हैं-
जो रौशनी है वो तीरगी में बदल न जाए ये सोचते हैं।
बुलंदियों के उरूज़ से हम फ़िसल न जाए ये सोचते हैं।
बङी ही शोहरत है आज अपनी बङे ही जलवा दिखा रहा हूँ। हाँ बर्फ के टीले पे है बैठें पिघल न जाए ये सोचते हैं।
इसी क्रम में सभी नव युवक साहित्यकारों के साथ सभी उपस्थित गीतकारों, ग़ज़लकारों व्यंग्यकारों ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया और अंत में संस्थापक पंडित शिवप्रकाश जौनपुरी जी ने उपस्थित सभी साहित्यकारों एवं श्रोताओं को अमूल्य समय प्रदान करने हेतु धन्यवाद दिया और आभार व्यक्त करते हुए गोष्ठी का समापन किया।