Home मुंबई देविका रो हाऊस में कविगोष्ठी के साथ सम्मान समारोह संपन्न हुआ

देविका रो हाऊस में कविगोष्ठी के साथ सम्मान समारोह संपन्न हुआ

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नवी मुंबई। कोपरखैरने देविका रो हाउस में अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच के कार्यालय में नागपुर से पधारी साहित्यकाऱ श्रीमती हेमलता ‘मानवी’ जी एवं दिल्ली से पधारी कवियत्री श्रीमती सरोज शर्मा जी के सम्मान में संस्था की अध्यक्ष श्रीमती अलका पाण्डेय जी नेकाव्य संध्या का आयोजन किया।

सर्व प्रथम सम्मान मूर्ति सरोज जी एवं मानवी जी द्वारा माँ शारदा की प्रतिमा पर माल्यार्पण, दीप प्रज्वलन एवं वंदना की गयी। उसके उपरांत अलका जी द्वारा दोनों सम्मान मूर्तियों को शाल एवं लेखनी भेंट कर सम्मानित किया गया,तदुपरांत काव्य गोष्ठी का आरम्भ हुआ। संचालक की भूमिका युवा साहित्यकार, महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि पवन तिवारी ने बखूबी निभायी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार सेवा सदन प्रसाद जी ने की। आभार आभा दवे जी ने प्रकट किया। सहभागी कवियों में सर्वश्री हरीश शर्मा यमदूत जी, अजय बनारसी जी, रजनी साहू जी, मंजू जी, वंदना श्रीवास्तव जी, कविता राजपूत जी, भारत भूषण जी, सतीश शुक्ल जी, विश्वम्भर दयाल तिवारी जी, दिलशादजी, विक्रम सिंह जी, नंदलाल थापर जी, प्रयाग से पधारे अशोक पांडेय जी प्रमुख थे।

वंसत के सुंदर गीत से वंदना श्रीवास्तव ने काव्य गोष्ठी की सुंदर शुरुवात की, फिर रजनी साहू ने गीत सुनामी-

मेरे मन के सरोवर में हो जलज, मेरे प्रिय वर ।

वहीं अजय बनारसी ने बटनशीर्ष के एक संवेदनशील रचना सुनाकर सभी के अंतर्मन को झकझोर दिया-

बटन तो ममता भी खोलती हैं तुम्हे इस संसार को देखने के लिए तो
बताओ ना तुम्हे कैसे खोलना ? तोड़ना…? या रौंदना अच्छा लगता हैं”!

कविता राजपूत की रचना इस प्रकार रही-

गिरते गिरते सम्भलना आ ही गया,
आहिस्ता आहिस्ता चलना आ ही गया।।

अपने मधुर स्वर में अलका पाण्डेय ने खूबसूरत रचना सुनाकर सभी का दिल जीत लिया-

मैया मोरी में ना मोबाइल पायो
ग्वाल बाल सब गेम है खेलत
मोहे दूर भगायो।
मैया मोरी में नही मोबाइल पायो।।

व्यंग के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर हरीश शर्मा ‘यमदूत’ जी ने अपनी कविता में बन्दर और आदमी के संवादों को कुछ यूं व्यक्त किया ।

वरिष्ठ कवि विश्म्भर दयाल तिवारी ने श्रम की महत्ता पर बल देते हुए कहते हैं-

“”उनको देखो जो कठोर मेहनत करते हैं।।””

सतीश शुक्ला जी ने व्यंग , भारत भूषण ने एक प्रश्न पुछता हूँ तो नंदलाल थापर ने
(नीर से निर्मल हो जाओ नर तुम तो सम्मान तुम्हारा है. )
मंजू गुप्ता व दिलशाद जी ने गजल सुनाई तो अशोक पाण्डेय ने कुछ भाव व्यक्त किये।
अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत कवि,संचालक पवन तिवारी ने गीत सुनाया . जिसकी पंक्तियाँ इस प्रकार हैं…. प्रेम पाते हैं तो हम संवरते प्रिये
रूठता प्रेम तो हम बिखरते प्रिये
होता पुलकित ये मन प्रेम आभास से
प्रेम करते हो तो हम निखरते प्रिये
सम्मान मूर्ति सरोज शर्मा ने महिला सशक्तिकरण पर कविता तो दूसरी सम्मान मूर्ति हेमलता ‘मानवी’ ने गांधारी पर एक सशक्त रचना सुनाकर सभी को अभीभूत कर दिया. युवा शायर विक्रम सिंह
मैं एक सुबह उसका सामना चाहता हूँ
घंटो बैठ उसे मनाना चाहता हूँ ….. गजल सुनायी.
सेवासदन प्रसाद जी ने लोक गीत के माध्यम से गाँव की सैर करायी.
वो गाँव का बिछौना वो पीपल की छांव और कहीं नहीं ठाँव
सुना कर सबको भाव से भर दिया।

इस अवसर पर कवयित्री आभा दवे पति पर एक सुंदर कविता सुनायी साथ ही उन्हें उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिये सम्मानित भी किया गया. कार्यक्रम के अध्यक्ष सेवासदन प्रसाद जी का स्वागत पवन तिवारी ने किया।  कार्यक्रम के उपरान्त सब ने पाव भाजी व चाय का आन्नद लिया।

इस अवसर पर अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की ओर से नवम्बर में आयोजित होने वाले दो दिवसीय अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की सूचना भी दी और अंत में सभी कवियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कार्यक्रम का समापन किया।

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