राजस्थान की एक चुनावी सभा में रामभक्त हनुमान जी को यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा दलित कहा जाना किसी प्रकार से भी जायज नहीं है। सिर्फ वोट के लिये हनुमान जी को दलित बता देना करोड़ों लोगों की श्रद्धा पर चोट है। जब ऐसा कोई सामान्य व्यक्ति कहता तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता किन्तु योगी द्वारा यह कहना किसी के गले नहीं उतर रहा है।
हनुमान जी को दलित कहे जाने पर संतो में भी उबाल है। इस बयानबाजी के बीच शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अब उन्हें ब्राह्मण बताया है। उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने हनुमानजी के बारे में लिखा है कि कांधे मूज जनेऊ साजे, इसका सीधा सा अर्थ है कि वे ब्राह्मण थे न कि दलित। उन्होंने कहा कि भाजपा राममंदिर के निर्माण को लेकर ईमानदार नहीं है। वह सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनाव में लाभ हासिल करने के लिए हथकंडे के रूप में इस मुद्दे को उछाल रही है।
स्वामी स्वरूपानंद ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा हनुमान को दलित बताए जाने की निंदा की। उन्होंने कहा कि त्रेतायुग में दलित शब्द था ही नहीं। सबसे पहले गांधी ने वंचित वर्ग को हरिजन कहकर पुकारा और बाद में मायावती ने दलित शब्द इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
इस मामले में बाबा रामदेव ने भी कहा था कि बजरंगबली की जाति का शास्त्रों में कहीं जिक्र नहीं है, लेकिन उनके गुण, कर्म के आधार पर वह ब्राह्मण हैं। वे सभी वेदों के महान विद्वान है। भारतीय संस्कृति में जन्म के आधार पर जाति की कोई व्यवस्था नहीं है बल्कि कर्म के आधार पर है, इसलिए बजरंगबली कर्म के आधार पर ब्राह्मण हैं, योगी हैं, योद्धा हैं और क्षत्रिय हैं।
सच तो यह है कि दलित शब्द का सृजन ही राजनीति के लिये किया गया है। दलित का मतलब होता है जिसके अधिकार कुचले गये हों, जिसका हक छीना गया हो। जिसे समाज की मुख्यधारा से अलग किया गया हो। चाहे वह किसी भी जाति का हो। अफसोसजनक है कि राजनीति के लिये उसे दलित बताया जा रहा है जो लोगों के अधिकार दिलाता है, लोगों की सहायता करता है। लोगों की रक्षा करता है। लोगों को ज्ञान देता है।