अपराधी माफिया और सरकारी भूमिखोरों के खिलाफ बुलडोजर चलाकर दूसरी बार सत्ता में लौटी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपनी नीति रीति से जनता के हितों पर ही बुलडोजर चलाना शुरु कर दिया है। यह बात दीगर है कि यह बुलडोजर मशीनी न होकर शासन प्रशासन में बैठे शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारी और बाबू के रूप में है। जो अपने पद दायित्व का बेजा उपयोग अपनी मनमानी एवं जनहित की अनदेखी कर शासन को भी अपनी कथित झूठी रिपोर्टों से गुमराह करने में कर रहे हैं। विभाग कोई हो, हर जगह बात वहीं है। कागज पर लिखी शिकायत तभी फाइलों का हिस्सा बनेगी। जब प्रार्थी पैरवी में कुछ विशेष की व्यवस्था करें, अन्यथा दौड़े। खूब लिखा पढ़ी करें परंतु होना कुछ नहीं है। छोटी सी पुलिस चौकी से लेकर ब्लाक तहसील तक में व्याप्त स्वेच्छाचारिता, अधिकारियों की मनमानी और तानाशही की कहानी कह रही है।
प्रताड़ना की छोटी शिकायत का निस्तारण पुलिस तभी करेंगी, जब उसे उसके लिए कुछ विशेष से उपकृत किया जाएगा। राजस्व विभाग का सबसे निचला कारिंदा लेखपाल तभी किसी भूमि विवाद निस्तारण के लिए अपनी जरीब थामेगा, जब उसकी मनचाही इच्छा पूरी की जाएगी। भले इसके लिए गरीब किसान को अपनी जमीन गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़े। वरासत जैसे सामान्य मसले आसानी से दर्ज नहीं हो पा रहे हैं। दफा 24 के तहत बाकायदे भूमि सीमांकन के लिए सरकारी फीस भरने वाला किसान तभी अपनी जमीन की नपाई अथवा सीमांकन करा पाएगा। जब कानूनगो से लेकर लेखपाल तक को मोटे लिफाफे की भेंट अर्पित करे। एक गरीब पात्र को अपना राशन कार्ड बनवाना टेढ़ी खीर है। इसके लिए उसे पहले तहसील से आय प्रमाण पत्र बनवाना जरूरी है। जिसके लिए उसे तहसील और लेखपालों के चक्कर लगाते लगाते ही निराशा हो जाती है।
कहने के लिए सरकार ने आनलाइन व्यवस्था कर रखी है। किन्तु इसका संचालन तो वे ही कर रहे हैं। जिन्हें सरकारी मुलाजिम होने का तमगा मिला हुआ है। सरकार तो निस्तारण के आंकड़े देखती है। जो उसे खुश और संतुष्ट करने के लिए झूठी रिपोर्टों से दिए जा रहे हैं। आनलाइन शिकायतों का भी निस्तारण रटे रटाये वाक्य.. मौके पर जाकर मामले को निस्तारित कर दिया गया..! की रिपोर्ट से कर दिया जाता है। भले ही शिकायतकर्ता बार-बार अपना रोना रोता रहे। शिकायत पर शिकायत करता रहे। किन्तु हर कार्रवाई रिपोर्ट निकालने पर उसे वहीं रटा रटाया वाक्य ही मिलेगा। शिकायत कर्ता की शिकायत वैसी की वैसी, किन्तु शासन की नजर की नजर में विभाग तत्पर है। यहीं नहीं शासन स्तर से चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं का भी हाल बेहाल है। पात्र लाभ के लिए भटक रहे हैं। बिचैलियों के मार्फत अपात्र सरकारी लाभ तोहफे के रुप में लूट रहे हैं। सरकार अधिकारियों की झूठी रिपोर्ट पर संतुष्ट है। जनता बेहाल है। उसकी परेशानियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं।
अभी हाल ही में सर्दी ने जोर पकड़ा है। नगरीय और शहरी क्षेत्रों के लिए नगर पंचायत और नगर पालिकाओं के मार्फत अलाव के लिए लाखों के टेंडर हुए हैं। अकेले भदोही शहर के लिए 9 लाख का टेंडर हुआ है। इसी तरह हर नगर पंचायतों में लकड़ी के नाम पर लाखों के धन आये हैं। किन्तु अलाव कहां है, लकड़ी कहां गई, खरीदी भी गई कि नहीं, किसी को पता नहीं है। जबकि इस ठिठुरते वक्त में भी हर चैक तिराहा सूना पड़ा है। कहीं अलाव नहीं है। लाखों का धन कहां और किस के जेब में गया या जा रहा है। इसका जनता को क्या लाभ मिला। यह बात और है कि सरकार अपने मातहतों की झूठी रिपोर्ट पर संतुष्ट होगी कि उसने जनता के लिए अलाव की व्यवस्था की है।
कुछ ऐसा ही हाल गरीबों में कंबल बांटने के सरकारी व्यवस्था का है। अधिकारी कंबल बांटने निकलते हैं। वह कहां बटा किसे मिला, यह किसी को पता नहीं। गरीब सुनता है कि कंबल मिलेगा किंतु पाता नहीं। जबकि सरकारी मुलाजिमों के चहेतों के घर की फर्शों पर वही कंबल बिछे दिखते हैं, जिन पर उनके बच्चे खेलते रहते हैं। कभी कभार कुछ वनवासियों के हाथ कंबल तब लग पाते हैं। जब स्वयं जिला अधिकारी अथवा अन्य जिले के बड़े अफसर खुद कंबल वितरण आयोजन में मौजूद रहते हैं।
भय, भूख और भ्रष्टाचार का नारा देकर जनता के मन में अपना स्थान बनाई भाजपा आज जनता के लिए ही बेहाली का कारण बन गई है। महंगाई ऐसी कि गरीबों के चूल्हों को रोना आ रहा है। नख से सिर तक परवान चढ़ा भ्रष्टाचार जनता को बदहाल कर दिया है। कोई एक जगह ऐसी नहीं दिखती जिसके बाबू साहब के नाम पर फरियादियों से कुछ इशारा करते न दिखते हों। ग्राम पंचायतों का आलम यह है कि कमीशन का पैसा बिना अग्रिम पहुंचे कार्य योजनाओं अथवा किए गए कार्यों की एमबी नहीं बनती। भुगतान नहीं हो पाता। इसका फायदा ग्राम प्रधान और ग्राम सेक्रेट्री तक खूब उठा रहे हैं। फर्जी कार्यों के दम पर लाखों की बंदरबांट हो रही है। पैदल प्रचार करने वाले ग्राम प्रधानों के हाथों में पद आते ही महंगी बाइक और चारपहिया वाहन आ गये हैं।उनका खानपान और रहने का स्तर बदल गया है।
भारत सरकार की अति महती मनरेगा योजना का भ्रष्टाचार तो सिर चढ़कर बोल रहा है। गांव में फावड़ा लिए मजदूर कहीं दिखते ही नहीं। किंतु पंचायतों में प्रतिदिन 40 से 70 तक फर्जी मजदूरों की हाजिरी लग रही है। ग्राम प्रधान और सेक्रेटरी मिलकर प्रतिदिन हजारों का वारा न्यारा कर रहे हैं। सरकार समझती है कि मजदूरों का पैसा सीधे उनके खातों में पहुंच रहा है। किंतु होता यह है कि संबंधित मजदूरों को दो से 500 देकर शेष राशि ग्राम प्रधान ले लेता है। बिना काम के 500 पाकर ही मजदूर खुश है। उसे क्या पता कि यदि वह ऐसा न करता तो मुफ्त में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हजारों रुपए से उसके गांव का विकास होता।
ऐसा भी नहीं है कि इसकी जानकारी ब्लाक के बड़े अधिकारी से लेकर जिले के संबंधित अधिकारियों को नहीं होगी। सुनी सुनाई कुछ बातों पर गौर हो तो रास्ता भी तो रास्ता भी वही बताते हैं जिनके कंधे पर मनरेगा जैसी महती योजना की जिम्मेदारी है।
शासन की मंशा के विपरीत सरकार को झांसे में रखकर जारी भ्रष्टाचार के खेल में सिर्फ निचले ही शामिल हैं, ऐसा भी नहीं है। जब खेल बड़ा है तो खिलाड़ी भी छोटा नहीं होगा। दाद तो उसकी चाल को देनी चाहिए, जो एक हाथों से मातहतों को मनमानी का संकेत देता है। और दूसरे हाथ से सरकार को बड़ी साफगोई से समझाने में कामयाब रहता है कि सब कुछ दुरुस्त और जनता संतुष्ट है।
देखा जाय तो जनतंत्र है। जनता सरकार बनाती है ओर वोट देकर अपना सेवक चुनती है। किन्तु इस बात में कितनी सच्चाई है। वोट लेने के समय जो नेता जनता के आगे हाथ जोड़े खड़ा रहता है, वहीं चुनाव जीतने के बाद खुद को राजा समझने लगता है। अपनी लक्जरी गाड़ियों पर जनता पर धूल उड़ाते हुये निकल जाता है। सरकारी कर्मचारियों से वह भी तालमेल कर लेता है और जनता के साथ हो रही खुली लूट पर कभी आवाज उठाने की जुर्रत भी नहीं करता है।
सोचने वाली बात है कि बात है कि सरकार अपराधियों माफियाओं के घरों पर बुलडोजर चला कर वाहवाही लूट रही है किन्तु जो लोग जनता के हितों की अनदेखी कर रहे हैं, जो लोग आम जनता को लूट कर प्रताड़ित कर रहे हैं। उन सफेदपोश अपराधियों पर बाबा का बुलडोजर क्यों नहीं चल रहा है। क्या बाबा के बुलडोजर का पहिया यहां पर जाम हो जाता है..!