भदोही। 17 वर्ष पहले बसपा की दलित ब्राह्मण सोशल इंजिनियरिंग के तहत भाजपा को छोड़कर बसपा में गये पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा घर वापसी करके फिर भाजपा के हो गये। भले ही इसकी चर्चा मीडिया में उस तरह नहीं हुई जैसी की दल बदलने वाले और नेताओं को लेकर होती रही है, किन्तु इससे श्री मिश्रा के व्यक्तित्व का आंकलन करना गलत होगा। भदोही में भाजपा के पौधे को सींचकर एक मजबूत वृक्ष बनाने में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। पिछले काफी दिनों से संगठनात्मक स्तर पर विवादों में रही पार्टी को बल देने के लिये एक ऐसे नेता की इन्ट्री हुई है जिसके व्यक्तित्व को पार्टी और संघ के संस्कारों से सींचा गया है। इसलिये यह चर्चा करना समीचीन होगा कि रंगनाथ के आने से भदोही की राजनीति में कितना परिवर्तन होगा।
बता दें कि मूल रूप से भदोही जिले के सहसेपुर गांव निवासी रंगनाथ मिश्रा ने उस समय राजनीति शुरू की थी। जब भदोही बनारस जिले का अंग था। भदोही को एक अलग जिला बनाने में उनकी भी मजबूत भूमिका रही और वे इस जिले के पहले भाजपा जिलाध्यक्ष भी रहे। प्रदेश सरकार में गृह, उर्जा, वन आदि मंत्रालयों को संभाल चुके श्री मिश्रा पूर्वांचल के ऐसे कद्दावर नेता भी कहे जाते रहे हैं जिनका प्रभाव समाज के हर वर्गों और जातियों पर रहा। आजकल नेता बनने के लिये बाहुबल की धमक भी एक विशेष डिग्री मानी जाती है, और उसपर भी जब किसी को मंत्री होने का रूतबा मिल जाय तो बात ही अलग हो जाती है। किन्तु राजनीति के माहिर खिलाड़ी कहे जाने वाले रंगनाथ के उपर कभी बाहुबली होने का ठप्पा नहीं लग पाया। बकौल श्री मिश्रा के उपर 2012 से पहले कभी उनका नाम पुलिस की डायरी में दर्ज भी नहीं हुआ था। सरकार न रहने पर वे शांत होकर राजनीति के समीकरण का आंकलन करते रहे और समय की मांग के अनुरूप पुन: भाजपा में प्रवेश कर भदोही की राजनीति को आम लोगों में चर्चा करने का एक विषय दे दिये। किन्तु एक बात भी गौर करनी होगी कि किसी दबंग, अपराधी और बाहुबली नेता को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने पर जहां टीवी चैनल चर्चा शुरू कर देते हैं वहीं श्री मिश्रा के निर्णय पर मीडिया शांत दिखायी दी। जबकि वे कई वर्षों तक मंत्री रहे और पूर्वांचल के कद्दावर ब्राह्मण नेता भी माने जाते हैं।
जनपद आगमन पर जोरदार स्वागत
पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा के जनपद आगमन पर जोरदार स्वागत होते देखा गया। उनके समर्थक और भाजपा से जुड़े लोगों में काफी जोश देखा गया। जिले के उंज बार्डर पर सैकड़ों की संख्या में वाहनों से लोग पहुंचे। पहली बार भाजपा के लोगों में दिल से उत्सुकता देखी गयी। जिस तरह अपने किसी घर के वरिष्ठ व्यक्ति का घर आने पर स्वागत किया जाता है। उसी तरह से जोश के साथ पार्टी कार्यालय में उनका स्वागत भी हुआ। जिलाध्यक्ष विनय श्रीवास्तव के उद्बोधन में पहली बार भदोही के किसी नेता को लेकर आंतरिक खुशी और जोश भी दिखायी दिया। आखिर हो भी क्यों न। श्री मिश्रा संघ कैडर से हैं और पार्टी भले ही बदले किन्तु किसी के प्रति अपना व्यवहार नहीं बदला। चाहे इसे जिस रूप में देखा जाय किन्तु भाजपा के नये कार्यालय में पहली बार किसी स्थानीय भाजपा नेता को लेकर समान जोश लगभग सभी में दिखायी दिया। श्री मिश्रा का कद व्यक्तित्व उंचा उठाने में सभी समान रूप से दिखे, लेकिन कुछ चेहरों पर चिंता की लकीरें भी दिखी और कुछ गायब भी रहे।
रंगनाथ के भाषण के मायने
घर वापसी, जोशपूर्ण स्वागत के बाद जब माईक रंगनाथ मिश्रा के हाथ में आयी तो वे पूर्णरूप से अपने उसी पुराने भाजपाई अंदाज में दिखे। भदोही में मूलरूप से ब्राह्मण नेता होने का तमगा यदि किसी को मिला है तो दो लोग प्रमुख रूप से हैं। एक रंगनाथ मिश्रा और दूसरे आगरा जेल में बंद ज्ञानपुर के बाहुबली विधायक विजय मिश्रा। एक ने अपने संघर्ष और व्यवहार से लोगों के दिलों में जगह बनायी है तो दूसरे के साथ अपराधों की एक लंबी लिस्ट भी जुड़ी हुई है। हालाकि दोनों के अपने अपने समर्थक हैं। रंगनाथ ने विजय को दुर्दान्त अपराधी बताया और कहा कि कुकृत्य करने वालों की जहां जगह होती है वहां वह पहुंच गये हैं। उन्होने अपनी तारीफ में काफी कसीदे भी पढ़े और कहा कि वे कभी बदले की राजनीति नहीं करते। उन्होने वर्तमान भदोही विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी का नाम भी लिया और कहा कि श्री त्रिपाठी किसी भी पार्टी में रहे लेकिन उनका सहयोग वे करते रहे। कन्हैयालाल मिश्रा को लेकर भी उन्होने अपने पक्ष की सफाई दी। तीनों विधानसभा सीटें जीताने का दावा भी किया और कहा कि वे बिना किसी शर्त के पार्टी में आये हैं। क्योंकि घर आने के लिये कोई शर्त नहीं रखी जाती। पार्टी ज्वाइन करने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात का फोटो पोस्ट करके उन्होने संदेश पहले ही दे दिया था कि उनके कद को कम आंकने की कोशिस न की जाये। वहीं गृहमंत्री व भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को अपने संबोधन में अमित भाई बोलकर यहा भी उन्होने अपनी पहुंच दर्शाने में कोई गुरेज नहीं किया। संबोधन के दौरान उन्होने सभी को आभास करा दिया कि उन्हें हल्के में लेने और कमतर आंकने की कोशिस करना व्यर्थ साबित होगा।
उन्होने अपने बारे में बोलते हुये कहा कि वे हमेशा कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने की कोशिस किया। अपने परिवार के लोगों को कभी विधायक या सांसद बनाने की कोशिस नहीं की। कभी जिले में ठेकेदारी करने की कोशिस नहीं की। जबकि वे चाहते तो कर सकते थे, क्योंकि वे कई विभागों के मंत्री रह चुके हैं। उन्होने यह भी आभास कराया कि कभी वे खुद टिकट बांटते थे और टिकट कटवाकर दूसरों को भी दिला देते थे। खैर उनके इस वक्तव्य के पीछे चाहे जो मकसद रहा हो किन्तु परिवारवाद और ठेकेदारी आदि का जिक्र किया तो चर्चा भदोही विधायक रवीन्द्रनाथ की भी होने लगी। क्योंकि इस वक्तव्य के देते ही भाषण सुन रहे कई लोगों की निगाहें श्री त्रिपाठी की ओर घूमती नजर आयी। अक्सर लोगों में यह चर्चा होती है कि श्री त्रिपाठी ने किसी को आगे बढ़ाने के बजाय अपने परिवार के बारे में हमेशा सोचा है और घर के लोगों को राजनीति में लाने के साथ ठेकेदारी भी अपने घर में रखते हैं।
क्या विधानसभा चुनाव लड़ेंगे रंगनाथ
यह एक ऐसा सवाल है जो भदोही जिले में लगभग हर व्यक्ति के जहन में घूम रहा है। जब लखनउ में रंगनाथ ने भाजपा की सदस्यता ली तो लोगों में चर्चा होने लगी कि वे भदोही विधानसभा में दावेदारी कर सकते हैं किन्तु उन्होने साफ तौर पर बोल दिया कि वे बिना किसी शर्त के पार्टी में आये हैं और पार्टी द्वारा मिले दायित्वों को निभाने में विश्वास रखते हैं। श्री मिश्रा भले ही यह कहे किन्तु जबतक भदोही और ज्ञानपुर का टिकट घोषित नहीं हो जाता तबतक उनकी बातों पर कोई सहज विश्वास नहीं पा रहा है। लोग यह भी चर्चा कर रहे हैं कि जब वे पार्टी की सदस्यता लिये तो उसके बाद भाजपा के बड़े नेताओं से मिलने और बात करने के लिये दिल्ली जाने के पीछे कोई न कोई राज तो जरूर ही छुपा है। श्री मिश्रा राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। समय की गति को सूझबूझ के साथ अपने अनुकूल बनाते हैं और उनके साथ रहने वाले भी यह नहीं सोच पाते कि उनके मन में क्या चल रहा है। इसलिये उन्हें लेकर तमाम तरह की चर्चायें होनी आम बात है।
प्रत्याशी चयन में रंगनाथ की भूमिका
भदोही विधानसभा में तीन सीटें हैं जिसमें एक सीट आरक्षित है जबकि दो सीटें सामान्य हैं। अभी तक एक भी सीट पर प्रत्याशी घोषित नहीं हुआ है। यह तो निश्चित है कि श्री मिश्रा की घरवापसी से भदोही का समीकरण बदला है। उनके उपर तीनों विधानसभा जिताने का लक्ष्य भी है। क्योंकि यह जीत हार ही उनके राजनीतिक भविष्य का निर्धारण करेगी। अपने भाषण् के दौरान श्री मिश्रा ने कहा था कि भाजपा में कभी वे टिकट दिलाते ही नहीं थे बल्कि मिले हुये टिकट को कटवाकर दूसरों को दिला देने की क्षमता भी रखते थे। सवाल उठ रहा है कि क्या यह ”थे” कहीं ”है” की तरफ इशारा तो नहीं था। चर्चा है कि आजकल औराई विधायक दीनानाथ भाष्कर को लेकर उनके मन में कुछ मंथन चल रहा है। एक बात और जिक्र करना चाहूंगा। पार्टी कार्यालय में अपने भाषण के दौरान भदोही के पूर्व चेयरमैन स्व. लालता प्रसाद यादव का उन्होने जिक्र किया था। कहा था कि जब वे जिलाध्यक्ष का चुनाव लड़ते थे तो लालता यादव हमेशा उनके खिलाफ वोट करते थे। जब वे जिलाध्यक्ष हुये तो लालता यादव को उम्मीद नहीं थी कि उन्हे टिकट मिलेगा इसलिये वे स्वयं चुनाव से किनारा करने की बात करने लगे थे। लेकिन सर्वे में जब दिखा कि चुनाव सिर्फ स्व. यादव ही जीत सकते हैं तो उनके घर जाकर टिकट दिया। इस बात से श्री मिश्रा ने संकेत दिया कि पार्टीहित के साथ वे कभी समझौता नहीं करते। औराई विधानसभा सीट श्री मिश्रा के प्रभुत्व वाली सीट मानी जाती है। भदोही विधानसभा में विशेषकर पूर्वी क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत है। वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह भले ही अधर में हो किन्तु औराई के प्रत्याशी चयन में अपनी धमक तो दिखा ही सकते हैं। चर्चा है कि अपनी पसंद का प्रत्याशी घोषित कराने का प्रयास अवश्य करेंगें ।
घरवापसी जरूरी भी और मजबूरी भी
पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा की भाजपा में घरवापसी कोई चौंकाने वाला निर्णय नहीं है। अपने उद्बोधन में उन्होने खुद बता दिया था कि 2016 में ही उन्होने भाजपा में आने का निर्णय लिया था। पार्टी की तरफ से बात भी आयी थी। किन्तु आय से अधिक संपत्ति के मामले में चले रहे मुकदमें की वजह से फैसला लेने में असमर्थ रहे। अब बाइज्जत बरी होने के बाद ससम्मान घरवापसी की। चर्चा करना लाजिमी होगा कि बसपा में रहते हुये भी उनकी राजनीतिक सक्रियता कम ही देखी जा रही थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भदोही से मिली हार फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा बसपा गठबंधन होने के बाद भी हुई हार से उनका राजनैतिक भविष्य दांव पर लगा था। बसपा में रहते हुये भी पार्टी के किसी कार्यक्रम से दूर रहना और शांत रहना निश्चित ही उन्हें परेशान करने वाला रहा होगा। यदि वे इस चुनाव के दौरान भी भाजपा में नहीं आते तो अगला पांच साल उनके राजनितिक जीवन के लिये अंधकारमय साबित होता। बसपा में रहते हुये वे अपनी अगली पीढ़ी को भी सक्रिय राजनीति में नहीं ला सकते थे। इसलिये उनके इस निर्णय को सही समय पर लिया गया सही निर्णय कहा जा रहा है। इसलिये घरवापसी उनके लिये जरूरी और मजबूरी भी थी। यह निर्णय जहां उनके राजनितिक जीवन को नई संजीवनी देगा वहीं अगली पीढ़ी के लिये भी एक उपजाउ राजनीतिक जमीन तैयार कर दिया है। भाजपा के लिये भी यह लाभदायक है कि जिले में उसे रंगनाथ मिश्रा के रूप में एक मजबूत कैडर का नेता मिला। क्योंकि टिकट के दावेदार भले ही जिले में कितने हो गये हों, लेकिन रंगनाथ मिश्रा के व्यक्तित्व की तरह कोई मजबूत चेहरा भदोही को अभी तक नहीं मिल पाया था।