भारत ही मेरी मां है और जिन्दगी हमारी..।
भारत की गोद दुनियां में जन्नत से लगे प्यारी..।
शहीदों की मजारों पर जलेंगे घी के दिये..।
मिटते रहेंगे फिर जनम लेने के लिये।
जिस देश में राष्ट्रप्रेम ही सबसे बड़ा धर्म, सबसे बड़ा तीर्थ और स्वर्ग से बड़ी खुशी मांगने की संस्कृति हो, यदि उस देश के राज नुमाइंदे महज सत्ता के लिये शत्रुराष्ट्र की भाषा बोलें अथवा कुछ ऐसा आचरण करें। जिससे शत्रुओं को विश्व मंच पर घेरने का मौका मिले तो उसे क्या कहा जाय..। यह अहम सवाल इन दिनों भारत ही नहीं बल्कि दुनियां में भारत को चाहने वाले जन-जन के जेहन में कुलांचे मार रहा है।
सवाल यह भी कि क्या सत्ता के लिये राष्ट्रद्रोह की राह पकड़ने की छूट भारतीय लोकतंत्र की देन है। जो प्रत्येक भारतीय को अपना विचार खुलकर रखने बोलने अथवा मनमर्जी की छूट देता है। प्रश्न यह भी कि कया सत्ता के लिये उस आचरण की भी छूट है जो देशहित को प्रभावित करता है। उक्त अनेकानेक सवालों के उचित जवाब देश के लोग बेहतर समझते और जानते हैं। जिन्हें सत्ता के खिलाड़ी महज बेवकूफ मानते हैं अथवा अपनी चालों में फंसा लेने की खुशफहमी पाले हुये हैं। हाल के दिनों में कांग्रेसी नेता एवं पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू खूब चर्चा में हैं। उनके चर्चा में आने की वजह उनकी वह भाषा अथवा आचरण है। जो उन्हें राष्ट्रद्रोह के राहगीर के उपाधि तक पहुंचा दिया है। सिद्धू की पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की दोस्ती जगजाहिर है। दोनों को एक क्रिकेटर होने के नाते उनके बीच हुई दोस्ती तो स्वाभाविक है। किन्तु उस इमरान से दोस्ती जो भारत अथवा उसके खिलाड़ी को एक खिलाड़ी के रूप में नहीं बल्कि शत्रु के रूप में देखते आया है। उससे सिद्धू की दोस्ती समझ से परे है।
पुराने क्रिकेट प्रेमियों को शायद इमरान खान की वह बात याद होगी जब उन्होंने पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान रहने के दौरान कश्मीर का फैसला क्रिकेट मैदान पर कर लेने का दंभ भरा था। उस दौरान इमरान के नेतृत्व में पाकिस्तान क्रिकेट टीम शिखर पर थी। इमरान को लगता था कि भारतीयों को मैदान में धूल चटाना उनके बायें हाथ का खेल है। इमरान की उक्त टिप्पणी पर उस दौरान पाकिस्तान में उनकी खूब सराहना हुई थी। और पाकिस्तानियों को इमरान से वतनपरस्ती की सीख लेने की अपील की गयी थी। तभी से इमरान पाकिस्तान के उन कट्टरपंथियों की नजर के तारे बन गये थे जो भारत के खिलाफ किसी हद तक उतर कर बरबाद करने की कोशिस करते रहते हैं।
पाकिस्तान के ऐसे लोग ही इमरान खान को राजनीति में लाये। समय आने पर अपनी पूरी ताकत लगाकर उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाया। यहां यह बताना भी लाजिमी है कि पाकिस्तान की सत्ता में सदा ताकतवर मानी जाती आयी वहां की सेना कट्टरपंथियों को अपनी ताकत और राजनीतिकों को हाथ की गेंद बनाती रही है। यहीं कारण है कि 70 साल बाद भी पाकिस्तान एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश नहीं बन पाया। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में लोकमत से चुनी सरकारें जब-जब पाकिस्तान को विकास और विश्व समुदाय की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया। तब तब वहां की सेना उनके मंसूबों पर पानी फेरती उसे भारत विरोध पर केन्द्रीत करने पर मजबूर करती रही। पाकिस्तान में आज जिस इमरान की सरकार है। वह वहां की सेना और कट्टरपंथियों के हाथ के मात्र खिलौना माने जाते हैं।
ऐसे इमरान जिनकी रगों में बहने वाला लहू भारत विरोध के लिये उनके खेल जीवन से ही उबाल मार रहा हो उससे भारतीय सिद्धू की दोस्ती समझ से परे है। समझ से परे तो कांग्रेस का वर्तमान आचरण भी है। जो देश के सामने बार-बार यह याद दिलाती रहती है कि उसने देश के लिये पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे विश्व स्तर के लोकप्रिय नेताओं की कुर्बानी दी है। पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोशित भारतीय जनमानस जब पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिये सरकार पर जोरदार दबाव डाल रहा हो।
उस दौरान कांग्रेसी नेताओं द्वारा कुछ ऐसा कहा जाना जो भारतीय सेना के पौरूष अथवा विश्वसनीयता पर सवाल उठाता हो। कितना उचित है। कांग्रेसी नेता सिद्धू द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को शांति का मसीहा कहा जाना अथवा जैश ए मोहम्मद तबाह किये गये ठिकाने में मारे गये आतंकियों की संख्या पर सवाल उठाना या यह कहना कि भारत के हवाई हमले में आतंकी मरे अथवा पाकिस्तानी हरे पेड़ों को तबाह किया गया क्या संकेत देता है। इससे तो यही लगता है कि सिद्धू की नजर में पाकिस्तान शान्ति चाहता है किन्तु भारत पाकिस्तान के हरे पेड़ों को उजाड़ कर वहां पर्यावरण के लिये खतरा पैदा कर रहा है।
कमोवेश कुछ ऐसी भाषाये कांग्रेस के कतिपय नेता और उनके प्रवक्ता भी बोलते सुने जा रहे हैं। कांग्रेस ऐसा क्यों कर रही है इसे तो वहीं जानें किन्तु अधिकाधिक भारतीय यहीं मान रहे हैं कि कांग्रेस की सोच देश के उनलोगों को अपने साथ जोड़ने की है जो भारत में रहते हुये भी पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी रखते हैं। यदि ऐसा है तो कांग्रेस की इस सत्तालोलुप बचकानी सोच पर हंसी आती है। कांग्रेस को तो देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों एवं देवबंद से गाहे बगाहे जारी होते बयानों पर गौर करना चाहिये जो पाकिस्तान को आगाह करते हुये उसके खिलाफ भारत सरकार से कड़ी कार्रवाई का दबाव बनाते रहे हैं। कांग्रेस शायद यह समझने की भूल कर रही है कि इस्लाम के कारण भारत के कुछ कट्टरपंथी पाकिस्तान को नरम आंखो से देखते हैं। किन्तु कांग्रेस क्यों यह समझ नहीं पा रही है कि वतनपरस्ती इस्लाम के मूल भावनाओं में से एक है। एक सच्चा मुसलमान सच्चा वतनपरस्त भी होता है।
जो भी हो किन्तु भारत पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के दौरान सिर पर पहुंचे लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यदि महज सत्ता के लिये कुछ ऐसा बोला अथवा किया जाय जो देश हित के खिलाफ हो वह उचित नहीं लगता। सत्ता के लिये मुद्दे अथवा सरकार के किये कार्यों पर अंगुली उठाना तो समझ में आता है किन्तु राष्ट्रहित को ही खतरे में डाल देना समझ से परे है। भारत पाकिस्तान के बीच तनाव का दौर, चुनाव का शोर और सत्ता के लिये जारी कसरत वाले शह और मात के खेल में आगे और भी बहुत कुछ देखना और सुनना है। किन्तु सत्ता के लिये राष्ट्रद्रोह की राह पकड़ना क्या परिणाम देगी इसे तो वक्त ही बतायेगा।