खुले आसमान के नीचे अपने मासूम बच्चे को साथ में लेकर अश्रुपूरित नेत्रों से अपनी उजड़ गयी गृहस्थी की राख को हाथों में लेकर मसलने के बाद बार बार जमीन पर गिरा रहे रामनाथ के मन में कई सवाल उमड़—घुमड़ रहे थे। अपने पांच साल के बेटे और जीवनसंगिनी की राख गंगा में बहाकर आने के बाद उसकी सूनी आंखे अपनी जली हुई झोपड़ी के पास आ रही पगडंडी को निहार रहा थी। शायद वह सोच रहा था कि अभी सड़क पर उड़ती धूल छटेगी तो सामने से आती गाड़ियां दिखेगी और कोई उतर कर आयेगा। उसके सर पर हाथ फेरेगा और उसपर तरस खाकर खाली पड़ी हथेली पर कुछ रख देगा। अपनी बीबी और मासूम बेटे को खो चुका रामनाथ इस उम्मीद में था कि वह परिवार को तो खो चुका है किन्तु अपनी अधूरी गृहस्थी फिर बसा लेगा और एक बच्चे के सहारे अपना जीवन गुजार लेगा, लेकिन ऐसा कुछ होता दिखायी नहीं दे रहा था।
घटना को घटे तीन दिन बीत चुके थे अब उसकी उम्मीद टूट रही थी। शायद उसे समझ में आने लगा था कि वह भले ही दलित है कि दलितों के उस वर्ग से नहीं आता जिसे वोट बैंक कहा जाता है। वह मुसहर है यह बात शायद वह भूल गया था। यदि वह किसी वोट बैंक की जाति से उसका संबंध होता तो अबतक उसको सांत्वना देने वालों की भीड़ लगी होती। प्रशासन के लोग उसके दरवाजे पर दस्तक दे रहे होते। कोई आवास की घोषणा कर रहा होता तो कोई आर्थिक सहायता कर रहा होता। कोई राशन लेकर आता तो कोई …! लबोलुआब यह कि उसकी जाति का वोटबैंक अपने पक्ष में करने के लिये फोटो खिंचाने की होड़ मची होती, लेकिन उसके पास कोई नहीं आयेगा। क्योंकि लोगों की न किसी के साथ संवेदना होती है और न ही किसी गरीब की मौत पर अफसोस होता है। उसे तो सिर्फ अपने वोटबैंक का जुगाड़ करना होता है जो यहां से संभव नहीं था।
बता दें कि भदोही जिले के गोपीगंज थाना क्षेत्र के चेरापुर बिरनई गांव निवासी रामनाथ मुसहर की झोंपड़ी में आग लग लग गयी। उसकी झोपड़ी में ढिबरी जल रही थी। मिट्टी की दिवाल पर घास फूस डालकर किसी तरह उसने झोपड़ी तैयार की थी, जिसमें ढिबरी के कारण आग लग गयी। पहले तो रामनाथ अपनी पत्नी उर्मिला के साथ मिलकर झोपड़ी में रखे सामान को बाहर निकालने की कोशिस में जुटा रहा। जब उसे लगा कि अब झोपड़ी नहीं बच पायेगी तो अपने एक बच्चे को लेकर बाहर निकल गया। उसकी पत्नी उर्मिला अपने 5 साल के बेटे कलुआ को लेकर झोपड़ी से बाहर निकल ही रही थी कि घास फूस से बनी छत अचानक भरभरा कर जलती हुई दोनों के उपर आ गिरी। बाहर खड़ा रामनाथ दहाड़े मार कर रो रहा था और जलती हुई आग में फंसी उर्मिला अपने मासूम कलुआ को आंचल में समेटते हुये चीत्कार कर रही थी। थोड़ी ही देर में उसकी चीख आनी बंद हो गयी क्योंकि वह अपने मासूम बेटे के साथ दुनियां छोड़ चुकी थी।
लोगों को यह घटना भले ही एक सामान्य घटना लगे किन्तु इस घटना ने मोदी सरकार द्वारा गरीबों के लिये चलायी जा रही योजनाओं के उपर एक काला धब्बा लगा गयी है जिसका दाग कभी नहीं धुलेगा। सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार की हर घर में बिजली पहुंचाने की योजना यदि मूर्तरूप ले रही है तो उसपर इस गरीब का हक क्यों नहीं था जो आज भी ढिबरी युग में जी रहा था। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उसे अभी तक आवास क्यों नहीं दिया जिसके कारण उसकी पत्नी और बच्चे की मौत हुई।
सच तो यह है कि सरकार द्वारा योजनाओं को लागू करने से कुछ नहीं होता है, बल्कि उसका सही लाभ कैसे मिलेगा यह जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के उपर होता है। ऐसा नहीं है कि मुसहरों को आवास नहीं मिले है। मिले हैं, लेकिन उन्हीं को जो थोड़ा जागरूक है और अपने वोट का महत्व समझते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत है जो अनपढ़ और जागरूक नहीं हैं। या फिर संबंधित लोगों की जेब भरने की उनकी औकात नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जब सरकार की योजनाओं को पाने के लिये लोगों को सुविधा शुल्क देना पड़ता है। जो नहीं दे पाता है वह आज भी सरकारी सुविधाओं से वंचित है। इसे लेकर न तो प्रशासन गंभीर है और न ही जनप्रतिनिधि।
अक्सर सुनने को मिलता है कि जब कहीं पर कोई घटना घटित होती है तो नेता या उनके प्रतिनिधियों का जमावड़ा होने लगता है। आम जनता भी उन्हें आर्थिक सहायत देने की मांग करने लगती है किन्तु यहां पर ऐसा नहीं देखा गया। रामनाथ भले ही अपनी सूनी आंखों से किसी नेता या प्रशासनिक अधिकारी की राह देख रहा होगा कि कोई आयेगा और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये सांत्वना के दो शब्द बोलगा। लेकिन वह शायद भूल गया होगा कि काल के गाल में समाये उसकी बीबी और मासूम बेटे से किसी को मतलब नहीं है। उसके यहां आने से किसी की वोटबैंक में कोई इजाफा नहीं होगा। किसी अधिकारी से पूछताछ भी नहीं होगी। किसी की नौकरी को खतरा भी नहीं होगा। कोई समाजसेवक, किसी संगठन का पदाधिकारी उसके लिये आवाज भी बुलंद नहीं करेगा। क्योंकि वह गरीब भले ही है किन्तु किसी का वोटबैंक नहीं है।
ऐसे कोही नही आयेगा सर।
जब मामला हाईलाइट होंगा तो ,
लोग अपने पब्लिसिटी के लियें कुछ पैसे दान दे देंगे…
और फोटो साथ में खींचकर फेसबुक पर दिखावा करेंगे।
सच तो ये हैं कि गरीब का कोही साथी व मित्र नही हैं…
सब अपने स्वार्थ में दिखावा करते हैं…
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