हिंदू देवताओं के वाहनों में पशु व पक्षियों के उपयोग को लेकर अक्सर जिज्ञासाएं उठती रही हैं। ये सभी देव शक्तियों के साथ प्रतिकात्मक है, लेकिन इनके स्थूल अर्थ ग्रहण किए जाने से प्रतीकों में जो अर्थ होता है उसे समझने में आम लोगों को मुश्किल होती है। लक्ष्मी के वाहन रूप में उल्लू की मान्यता इसी तरह की एक जिज्ञासा है।
उल्लू की सवारी का ज्योतिष का विचार: महालक्ष्मी जी मूलतः शुक्र ग्रह की अधिष्टात्री देवी हैं तथा लक्ष्मी जी की हर सवारी गरुड़, हाथी, सिंह और उल्लू सभी राहू घर को संबोधित करते हैं। कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार शुक्र धन और वैभव के देवता हैं और व्यक्ति की कुण्डली में शुक्र धन और दाम्पत्य के स्वामी है तथा शुक्र का पक्का घर आकाश है अर्थात बारवां भाव। कापुरुष सिद्धांत के अनुसार राहू को पाताल का स्थान प्राप्त है तथा कुण्डली में राहू का पक्का घर छठा स्थान होता है और राहू को कुण्डली के भाव नंबर आठवें, तीसरे और छठे में श्रेष्ठ स्थान में माना गया है। कुण्डली में काला धन अथवा छुपा हुआ धन छठे और आठवें भाव से दिखता है।
एक पौराणिक मान्यता है कि लक्ष्मीजी समुद्र से प्रकट हुई और भगवान विष्णु की सेवा में लग गईं। लक्ष्मीजी का स्वभाव चंचल माना गया।
इसलिए उनकी आराधना व उपयोग के मामले में भी सावधानी की आवश्यकता होती है। लक्ष्मी का वाहन उल्लू स्वभाव से रात में देखने में सक्षम होता है। उल्लू अज्ञान का प्रतीक है। वह अंधकार में ही जाग्रत होता है। लक्ष्मी उल्लू पर बैठी है, इसका अर्थ यह है कि वे अज्ञान की सवारी करती हैं और सही ज्ञान को जाग्रत करने में सहयोगी होती हैं।यदि लक्ष्मी का उपयोग अज्ञान के साथ होगा तो वह भोग और नाश तक ही सीमित रह जाएगा।
यदि ज्ञान के साथ होगा तो दान व परोपकार की दिशा में लगेगा। संकेत यही है कि रीति से कमाया हुआ धन नीति से खर्च करें।
उल्लू की सवारी का धार्मिक विचार: धार्मिक शास्त्रों में लक्ष्मी जी के वाहन के चार भेद बताएं गए हैं अर्थात चतुर्भुजी लक्ष्मी जी के चार प्रकार बताए गए हैं। पहला गरुड़-वाहिनी दूसरा गज-वाहिनी तीसरा सिंह-वाहिनी और चौथा उलूक-वाहिनी। लक्ष्मी जब गरुड़ पर सवार होती हैं, तब वो भगवान विष्णु के साथ विराजमान होती हैं। तब वह आकाश भ्रमण करती हैंं तथा गरुड़ वाहिनी कहलाती हैं।
लक्ष्मी जी जब श्वेत हाथी पर सवार होती है, तब वह धर्म लक्ष्मी कहलाती है। हाथी कर्मठ और बुद्धिमान प्राणी है। हाथी के समूह में हथनीयों को प्राथमिकता तथा सम्मान दिया जाता है। हाथी अपने परिवार के लिए कर्म करके भोजन अर्जित करता है। हाथी समूह में रहकर एकता बनाए रखता है तथा पारिवारिक धर्म का निर्वाह करता है।
लक्ष्मी जी जब सिंह पर सवार होती हैं तब वह कर्म लक्ष्मी कहलाती हैं। ये लक्ष्मी का अघोर स्वरुप हैं जब व्यक्ति साम दाम दंड भेद और नीति से पैसे कमाता है तब सिंह पर सवार लक्ष्मी का उद्गमन होता है।
चौथा जब लक्ष्मी जी घुग्घू अर्थात उल्लू की सवारी करती हैं। महालक्ष्मी मूलतः रात्रि की देवी हैं तथा रात के समय उल्लू सदा क्रियाशील रहता है। उल्लू पेट भरने हेतु दिन के समय में अंधा बनकर अर्थात कोलुह का बैल बनकर कार्य करता है तथा संपूर्ण दिमाग के साथ रात में जागकर और आंखें खोलकर कार्य करता है। उल्लू पर सवार लक्ष्मी को उल्लूक वाहिनी कहा गया है।
चमत्कारी उल्लू: तंत्र शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी वाहन उल्लू रहस्यमयी शक्तियों का स्वामी है।
प्राचीन ग्रीक में उल्लू को सौभाग्य और धन का सूचक माना जाता था। यूरोप में उल्लू को काले जादू का प्रतीक माना जाता है। भारत में उल्लूक तंत्र सर्वाधिक प्रचलित है। चीनी वास्तु शास्त्र फेंगशुई में उल्लू को सौभाग्य, स्वा स्य्उल और सुरक्षा का भी पर्याय माना जाता है। जापानी लोग उल्लू को कठिनाइयों से बचाव करने वाला मानते हैं। चूंकि उल्लू को निशाचर यानी रात का प्राणी माना जाता है और यह अंधेरी रात में भी न सिर्फ देख सकता है बल्कि अपने शिकार पर दूर दृष्टि बनाए रख सकता है।
पौराणिक कथा में लक्ष्मी का वाहन वैसे तो भारतीय परंपरा में उल्लू माना जाता है, लेकिन भारतीय ग्रंथों में ही इनके कुछ अन्य वाहनों का उल्लेख है। महालक्ष्मी सोत्र में गरूड़ को इनका वाहन बताया गया है, जबकि अथर्ववेद के वैवर्त में हाथी को लक्ष्मी का वाहन कहा गया है। प्राचीन यूनान की महालक्ष्मी एथेना का वाहन भी उल्लू है, लेकिन प्राचीन यूनान में धन संपदा की देवी के तौर पर पूजी जाने वाली हेरा का वाहन मयूर है। लक्ष्मी पूजन के बारे में मार्कंडेय पुराण के अनुसार लक्ष्मी का पूजन सर्वप्रथम नारायण ने किया। बाद में ब्रह्मा फिर शिव समुद्र मंथन के समय विष्णु उसके बाद मनु और नाग तथा अंत में मनुष्यों ने लक्ष्मी पूजन शुरू किया। उत्तर वैदिक काल से ही लक्ष्मी पूजन होता रहा है।
दीपावली पर धन वृद्घि के लिए उल्लू के टोटके किए जाते रहे हैं…
उल्लू देवी लक्ष्मी का वाहन है। माना जाता है कि दीपावली की रात इसके दर्शन हो जाएं तो पूरे साल धन का आगमन बना रहता है। लेकिन इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं। इसलिए दीपावली की रात उल्लू से संबंधित टोटके भी प्रचलित हैं जिनसे लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
उल्लू को लेकर मान्यताएं…
उल्लू की तस्वीर लगाएं- दीपावली की शाम दीप जालने के बाद तिजोरी अथवा जहां भी आप धन रखते हैं वहां उल्लू की एक तस्वीर लगाएं। पूरे साल आर्थिक लाभ के अवसर मिलते रहेंगे।
रोग भगाएं समृद्घि लाएं- दीपावली की रात में गणेश लक्ष्मी की पूजा से पहले उल्लू और मोर के पंख को लाल धागे में बांधकर घर के मुख्य द्वार पर लटकाएं। इससे नजर दोष एवं नकारात्मक उर्जा का घर में प्रवेश नहीं होता है। घर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य एवं धन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
व्यापार में उन्नति के टोटके- व्यापार में उन्नति की रफ्तार को बढ़ाने के लिए दीपावली की मध्य रात्रि में काले कपड़े में काली कौड़ी और उल्लू के पंख को बांधकर तिजोरी में रख दें। इस पोटली को दुकान या ऑफिस के मुख्य दरवाजे पर बांधने से भी कारोबार में उन्नति होती है। धन लाभ बढ़ता है।
दांपत्य जीवन में प्रेम और समृद्घि लाएं- पति-पत्नी अपने दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ाने के लिए दीपावली की रात उल्लू के नाखून को सिंदूर के साथ लाल कपड़े में लपेटकर बाजू में बांध लें या फिर श्रृंगार पेटिका में रखें तो पति-पत्नी के संबंध मजबूत होते हैं। आर्थिक तंगी के कारण परिवार में मनमुटाव नहीं होता है।
जेब रहेगी हरी भरी- अगर आपकी शिकायत रहती है कि जो भी कमाते हैं खर्च हो जाता है। पैसा जेब में टिकता ही नहीं तो दीपावली की रात एक आसान सा उपाय आजमा सकते हैं। तांबे के एक ताबीज में गोरोचन और उल्लू के पंख को भरकर अपनी जेब में रख लें। लक्ष्मी माता की कृपा से जेब हरी भरी रहेगी।
ज्योतिष सेवा केंद्र
पंडित अतुल शास्त्री
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