Home मन की बात रक्षाबंधन का महत्व-पं.शिवप्रकाश जौनपुरी

रक्षाबंधन का महत्व-पं.शिवप्रकाश जौनपुरी

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रक्षाबंधन आज पूरे देश में बडे़ जोशोखरोस से मनाया जाता है।लोग बडे़ उत्‍साह व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। आज के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र बाँधकर अपने भाई की लम्‍बी उम्र और अरोग्‍य जीवन की कामना करती हैं। और भाई भी अपनी बहन की सुरक्षा सलामती का वचन और यथाशक्‍ति उपहार देता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ये रक्षा सूत्र सबसे पहले किसकी कलाई में बँधी और किसने बाँधा?

ये बात सतयुग की है जब चहुँ ओर दानवराज बलि का राज था। एक बार बलि ने यज्ञ किया और मुनादी करवा दी कि जो भी याचक दरवाजे पर आयेगा खाली हाँथ नहीं जायेगा।भगवान श्री हरि विष्‍णु जी ने भी वामन वेश बनाकर विप्र रूप में याचक बनकर पहुँच गये बलि के दरबार,और दान मांगा।बलि के गुरू शुक्राचार्य जी ने बलि को समझाया आज टरका दो पर बलि ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। मैं बचनवद्‍ध हूँ। फिर गुरू ने कहा ये छलिया विष्‍णू है तुम्‍हे छलने आया है। बलि ने कहा तब तो अवश्य दूँगा। ये तो सौभाग्य है हमारा, सबको देने वाला आज हमारे दरवाजे पर याचक बनकर आया है। जीवन सफल हो गया। मैं दान दूँगा। और उसने अपना सर्वस्‍व दान कर दिया।

भगवान बिष्‍णु ने बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर पाताल लोक का राजा बना दिया कई दरवाजों वाला महल प्रदान किया सारा राजसी साजो समान देने के बाद वरदान माँगने के लिए कहा। बलि चाहते तो फिरसे सब कुछ प्राप्त कर सकते थे। लेकिन उन्‍होंने कहा कि हमें कुछ नहीं चाहिए यदि देना ही चाहते हो तो मैं जिस दरवाजे से निकलूँ आपका दर्शन पाऊँ।भक्‍त वत्‍सल भगवान विष्‍णुजी ने तथास्तु कहकर भक्‍त के गुलाम हो गये और बैकुंठ छोड़ बलि की सेवा में लग गये।

उधर कई दिनों से बैकुंठ में न पहुँचने के कारण माता लक्ष्मी जी चिंता में पड़ गईं और खोज बीन करने लगीं। नारद का आवाहन किया नारद जी बैकुंठ पहुँच माँ का दुख सुना और बताये, गये थे बलि को छलने खुद ही छले गये हैं। आजकल दानवराज बलि की दरबानी कर रहे हैं। माता लक्ष्मी ने कारण पूँछा तो नारदजी ने सारा वृतांत सुनाया। सुनकर लक्ष्मी जी विचार मग्‍न हो गई कि कैसे छुडा़या जाय पति को ? नारद भी कुछ युक्‍ति नहीं बता पाये। आखिर में लक्ष्मी जी ने मन में निश्‍चय किया और पाताल लोक ब्राह्मणी का वेश बनाकर पहुँच गईं और वहाँ बलि के भवन के समीप जाकर रोने लगी विलाप करने लगीं। बलि जी आये और रोने का कारण जाना और बोले तुम्‍हारा संताप कैसे जायेगा बतायें दूर किया जायेगा।माता लक्ष्मी ने कहा मेरे पास मेरे योग्‍य कोई भाई नहीं है। जो मेरी रक्षा कर सके। मुझे अभय कर सके। राजा बलि ने कहा यदि तुम मुझे अपना भाई बनाना चाहो तो मैं तुम्‍हे अभय दान देता हूँ। लक्ष्‍मी जी झट से तैयार हो गईं और रक्षा सूत्र बनाकर बलि की कलाई में बाँध कर भाई बनाया और बलि ने लक्ष्मी जी को अभय दान देकर कहा, बहन उपहार माँगो। तिरबचा बंधाकर लक्ष्‍मी जी ने कहा कि मुझे आपका चौकीदार चाहिये। इस प्रकार लक्ष्‍मीजी ने हरि को छुडा़या।

वो तिथि आज की ही तिथि सावन मास की पूर्णमासी थी भगवान विष्‍णु के मुक्‍त होने की खुशी में और बलि को बहन और लक्ष्‍मी को भाई मिलने की खुशी में रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाने लगा जो आज तक सावन मास की पूर्णमासी को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। उसी को इंगित करती मेरी यह कजरी आप सबकी सेवा में समर्पित है।

“कजरी”
राखी बाँधि बलि के भाई बनाइ लिहीं,हरि के छोडा़इ लिहीं ना-२

दइके बलि के वरदान ,फंसि गयें बिष्‍णू भगवान-२
माता लक्ष्मी जी जाइके बचाइ लिहीं।
हरि के छोडा़इ लिहीं ना।।
राखी बाँधि बलि के————

रक्षा सूत्र हैं बनाईं,बाँधी बलि की कलाई-२
राजा बलि को आपन भाई बनाइ लिहीं।
हरि के छोडा़इ लिहीं ना।।
राखी बाँधि बलि के———–

बलि जी बोले बार बार,बहिनि माँगु उपहार-२
माता लक्ष्मी जी तिरबचा बन्‍हाइ लिहीं।
हरि के छोडा़इ लिहीं ना।।
राखी बाँधि बलि के———–

दइदा आपन चौकीदार,ठाढ़ तोहरे बा दुवार-२
डोर पती संग बलि से बँधाइ लिहीं।
हरि के छोडा़इ लिहीं ना।।
राखी बाँधि बलि के————

शुरू हो गया त्योहार,बहिन भाई का प्‍यार-२
राखी बाँधि राखी उत्‍सव मनाइ लिहीं।
हरि के छोडा़इ लिहीं ना।।
राखी बाँधि बलि के———-

१५ अगस्त को हम स्‍वतंत्र हुए। अंग्रेजों ने सत्‍ता कांग्रेस को सौंप दी और देश छोड़ रार लगाकर चले गये। आज ही के दिन भारत के दो टुकडे़ भी हुए। लाखों लोगों का कत्‍ल भी हुआ।हजारों महिला, बच्‍चियों के साथ बलात्‍कार भी हुआ। फिर भी हमलोग आजादी में मस्‍त होके झूमे नाचे गाये। झंडा ऊँचा रहे हमारा।

उन लाखों लाशों पर मातम मनाने के बजाय हम उसी पर नाचे और आज भी नाच रहे हैं।और ७२ साल से नाच रहे हैं। लेकिन उनकी कुर्बानियों को ऐसे भुला दिये। जैसे कुछ हुआ ही नहीं।आज तो हमें शहीद दिवस मनाना चाहिए। और मैं उन्‍हीं शहीदों को याद कर रहा हूँ। कि ये आजादी हमें बडी़ कीमत चुकाने के बाद मिली है। हम उनको भी याद रखें हैं जिनकी कुर्बानी के दम पर हम हर बरस स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। उन्‍हीं वीरों को समर्पित ये रचना

।।हम याद रखेगें।।


हम याद रखेगें हरदम,उन सब वीरों की कहानी।
जिसने दे दी है वतन पर,अपनी अनमोल जवानी।।

जब हम खोए थे यहाँ पर,भरने में अपनी झोली।
वो झेल रहे सरहद पर,दुश्‍मन के गन की गोली।।
जब देख रहे थे हम सब,किरकेट की उड़ती गिल्ली।
मरते थे वहाँ पर वो सब,खा खाके गन की गोली।।
हम सबकी सुरक्षा खातिर,उन सबने दी कुर्बानी।
हम नमन करें उन सबको,जो शहीद हुए बलिदानी।।
हम याद रखेगें हरदम———-

हम नमन करें उस माँ को,जिसने कुर्बानी दे दी।
ले जाके वतन पर अपने,लालन की जवानी दे दी।।
वह पतीपरायण नारी,जिसकी भीगी है सारी।
असुवन में रात गुजारी,वह पूजनीय है हमारी ।।
वह बहन है प्राण पियारी,अपने वीरन की दुलारी।
उसने भी दी कुर्बानी,अपने वीरन की जवानी।।
हम याद रखेगें हरदम———-

पं. शिवप्रकाश जौनपुरी

पावन पर्व रक्षाबंधन की व स्‍वतंत्र दिवस की सभी भारतवासियों को काव्‍यसृजन परिवार की तरफ से हार्दिक बधाई एवं मंगलमय शुभकामना आप सभी का त्‍योहार मंगलमय हो।

आप सबका
पं. शिवप्रकाश जौनपुरी
संस्‍थापक काव्‍यसृजन (भारत)🇮🇳🌹🇮🇳🌹🇮🇳🌹🇮🇳🌹🇮🇳

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