किसी भी काम का नशा जिसे चढ जाएं व समाज और लोगों की परवाह किए बिना अपने कार्य में जुटकर दिन रात एक करके मुकाम तक पहुंचने में कामयाब होता है। इसमें उसकी मेहनत लगन और लोगों का सहयोग व दैवीय कृपा भी प्रमुख सहयोगी होती है। एक ऐसा ही वाकया हुआ कोईरौना थाना क्षेत्र सदाशिवपट्टी निवासी अभयराज सिंह के साथ। जो साडी को थोक में सूरत से लाकर भदोही में बेचते थे लेकिन भक्ति का चस्का ऐसा लगा कि सबकुछ छोडकर मां संतोषी के दरबार में पूजन सामग्री बेचकर मां की सेवा करने में सुकुन पाते है। और मां संतोषी की कृपा व शक्ति का बखान करने से कभी चुकते नही।
सदाशिवपट्टी मोन निवासी अभयराज सिंह साडी के व्यापारी थे और उनकी पत्नी सुशीला देवी गृहणी। सुशीला भक्ति में काफी लीन रहती और वैभव लक्ष्मी और मां संतोषी का व्रत व पूजन बडे भाव से करती थी। एक दिन सदाशिवपट्टी में जब सुशीला थी तो स्वप्न में मां संतोषी ने मन्दिर बनाने की बात कही और सुशीला से गुड व चना मांगी। यह सब बात सुशीला ने अपने पति अभयराज सिंह से कही लेकिन लोग सुशीला की बात पर ध्यान नही दिये। फिर कुछ दिन बाद स्वप्न में सुशीला से संतोषी मां ने मंदिर की बात कही। तो बार-बार स्वप्न आने पर अभयराज ने भी एक छोटी सी मूर्ति लाकर मंदिर बनाने की इच्छा बनाई। लेकिन अभयराज के पास पैसा नही था। तो उन्होने सोचा कि कुछ लोगों से चंदा लेकर मंदिर का निर्माण शुरू किया। यह सोचने के बाद अभय राज कुछ दिन बाद चंदा लेने के लिए निकले तो सबसे पहले पडोस गांव के श्रीचन्द पाण्डेय के यहां गये और मन्दिर की बात बताई लेकिन श्रीचन्द ने उस समय कोई भी चन्दा न दिया और अभयराज निराश होकर और लोगों के पास चंदा के लिए गये। लेकिन मनमाफिक लोगों का सहयोग न मिला।
एक दिन श्री चन्द ने मन्दिर के निमित्त एक ट्रैक्टर ईट भे दिया फिर मंदिर के निर्माण की बात पक्की हो गई। मन्दिर बनने की चर्चा जब आसपास में फैल गई तो लोग यहां आने लगे और केवल फोटो की मूर्ति की पूजा करके जाते और कई लोगो की मनोकामना भी पूरी हुई। कुछ दिन तक यही चर्चा होती रही कि पैसा न होने से मूर्ति नही लग पा रही है। यह बात जब आ रहे भक्तों को पता चली तो सभी ने चंदा करके मां संतोषी को मूर्ति मंगाये जबकि अभयराज ने तो एक छोटी सी मूर्ति रखकर मंदिर की बात सोची थी। मूर्ति आ जाने के बाद जहां मन्दिर बनना था वहां पर कुछ लोगो ने विरोध किया लेकिन मां की कृपा से लोग विरोध बंद कर दिए। और मां संतोषी का एक मन्दिर बना है जो केवल अभी एक कमरे जैसे रूप में है।
धीरे धीरे मंदिर का निर्माण होगा। मां संतोषी की मुख्य पुजारी अभयराज की पत्नी सुशीला ही है। यहां पर शुक्रवार को काफी दूर दूर से भक्त दर्शन व पूजन करने आते है। यही अभयराज मां संतोषी के लिए पूजन सामग्री बेचकर मां की कृपा व शक्ति का बखान करते रहते है। अभयराज बताते है कि जब उन्हें लगा कि पैसे के अभाव में मां संतोषी का मन्दिर नही बन पायेगा तो उन्होने सोचा कि यदि मन्दिर नही बन पाया तो मै सपरिवार जहर खा कर आत्महत्या कर लूंगा। लेकिन मां संतोषी की कृपा से पैसे की व्यवस्था कैसे हो गई यह पता ही नही चला।
एक वाकया के बारे में बताया कि मन्दिर जहां बना है वहां काफी गड्ढा था जिसके लिए यहां पर मिट्टी डाली जा रही थी एक दिन एक ट्रैक्टर पलटते पलटते बच गया जब लोगों ने मां संतोषी से गुहार लगाई। ऐसे ही कई बातें अभयराज ने मां संतोषी की कृपा व शक्ति के बारे में बताई। लगभग बारह -तेरह वर्ष से लोग यहां आते है और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की मन्नत मांगते है। यहां पर दूर दूर के भक्त पूजन व दर्शन करने आते है।