ठाणे (महाराष्ट्र) : भारतीय जनभाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाराष्ट्र की बहुभाषी काव्यगोष्ठी नववर्ष के स्वागत, आगमन पर कवियों, ग़ज़लकारों की विशेष काव्यगोष्ठी मुन्ना विष्ट कार्यालय सिडको बस स्टॉप ठाणे (पश्चिम) में आयोजित की गयी। उक्त काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता काव्यसृजन साहित्यिक संस्था के सचिव श्री लालबहादुर यादव “कमल” ने की और विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार श्री त्रिलोचन सिंह अरोरा जी विद्यमान थे। मंचीय सूत्र-संचालन की जिम्मेदारी संस्था सचिव, वरिष्ठ कवि, गज़लकार श्री एन•बी•सिंह “नादान” जी ने बहुत सुन्दर शायराना अंदाज में निभाया।
मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई से उपस्थित कवियों, ग़ज़लकारों, गीतकारों में श्री विनय शर्मा “दीप”, आर•जे•आरती साइया “हिरांशी”, श्रीमती शिल्पा सोनटक्के, श्रीमती आभा दवे, श्रीमती अनीता रवि, श्री भुवनेन्द्र सिंह विष्ट, श्री श्रीराम शर्मा, श्री टी•आर•खुराना, श्री नागेन्द्र नाथ गुप्ता, डा• वफ़ा सुल्तानपुरी, एडवोकेट अनिल शर्मा, श्री ओमप्रकाश सिंह, श्री काविश समर, श्री नज़र हयातपुरी, श्री हनीफ मोहम्मद, श्री सत्यम् दुबे “शार्दूल”, श्री राजीव मिश्रा “अभिराज”, श्री सुशील शुक्ल “नाचीज़”, श्री अल्हड़ असरदार, श्री उमाकांत वर्मा आदि ने नववर्ष के स्वागत में बेहतरीन रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। काव्यसंध्या के आयोजन में श्रोताओं के साथ श्री मुन्ना यादव मयंक (पत्रकार) एवं श्री सतीश चौहान (पत्रकार) की अहम भूमिका थी।
संस्था सचिव श्री एन बी सिंह नादान ने उपस्थित सभी अतिथियों, कवियों, ग़ज़लकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और काव्यगोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया। नववर्ष के आगमन पर, नई सुबह के स्वागत में कवियों, ग़ज़लकारों, गीतकारों द्वारा सुनाई गयी रचनाएँ जो प्रशंसनीय रही उनकी चंद पंक्तियाँ इस प्रकार रही।
श्री भुवनेन्द्र सिंह विष्ट:-
आये जो दिन बहार के,हम भी बहार हो गये।
फूलों की डोलियां सजी,तो हम कहार हो गये ।।
श्रीमती शिल्पा सोनटक्के:-
दिल के चौबारे में आओ चौपाल जमाएं,
सुख-दुःख बांटे कभी अपनों का,
और कभी खुद को ही बहलाएं।
श्री एन•बी•सिंह नादान:-
जिंदगी दर्द की तहरीर,खुदा खैर करे।
जिसमें रांझा हैं फना,हीर,खुदा खैर करे ।।
आये पोरस यहाँ जमने को सिकंदर लेकिन।
किसकी कायम रही जागीर खुदा खैर करे ।।
श्रीमती आभा दवे:-
सारा चमन
कली-कली मुस्काए
भंवरे गीत सुनाए
झूमे धरती सारी
लगे सभी को प्यारी
सारे गम छंट जाएँ
कुछ ऐसा कर जाएँ ।
डा• वफ़ा सुल्तानपुरी:-
शहर उजड़े नगर सा लगता है।
हर महल एक खंडहर सा लगता है ।।
जख्म खाये हैं इस कदर हमनें ।
दर्द अब बेअसर सा लगता है ।।
श्री विनय शर्मा “दीप” का सवैया
आजु क रात विहान बनीं,धरती इहंवा इठलाय रही रे।
भूत गये दिन चार भयो,अब आगम दीप जलाय रही रे।
भोर लिलार सुहाग सजी,ललसा मनवां में पुराय रही रे।
खेलत-कूदत भानु ऊषा संग,आवतु हौं हरषाय रही रे।।
श्री टी•आर•खुराना
चलो चलें बियाबानों की ओर
घोर जंगलों की ओर
नदियों-झरनों-पहाडों की ओर
कुदरती करिश्माओं की ओर
मिल-जुल कर
थोड़ा थोड़ा खिलखिलायें…..
निरख-निरख प्रकृति छवि
तन-मन हर्षायें,आओ थोड़ा मुस्कुरायें।।
श्री त्रिलोचन सिंह अरोरा:-
“साल नए” तू बेशक आना
पर साथ अपने ‘उलझन’ न लाना
हो सके तो ‘उल्फत’ ले आना
झोली भर भर “बरकत” लाना
जब आना मुस्कुराते आना
हमको भी हंसाने आना
दुःख- दर्द हरने तुम आना
आतंक को दफनाने आना
साल नए तू बेशक आना
सुखद परिवर्तन लाने आना
सिर्फ दिन-महीने दर्शाने न आना
केवल तरीकें ही बदलने न आना
“प्यार का पैगाम” साथ अपने लाना।
विश्व की लगी को निःसन्देह बुझाने आना
“मतदान वाली मत” बांटने आना
“जनहित की फिक्रमंद सरकार” दिलाने आना।
एडवोकेट अनिल शर्मा:-
था न कोई हमसफ़र
जो बँटाता हाथ आकर
कृशकाय तन सूखा हुआ
पिचका गाल
दतुला टूटा हुआ
रीते पद फ़टे चीर
चक्षु एक फूटा हुआ
छितराये केश उड़ते फर-फर
वह उठाती गट्ठर ,
मैंने उसे लदवाया रेल पर।
श्री नागेन्द्र नाथ गुप्ता:-
मीर के चेहरे पे पीर नज़र आती है।
उसके अंदाज में शहतीर नजर आती है।।
श्री सुशील शुक्ल नाचीज़:-
नींद ही न आये जिसे उसे
लोरी सुनाना ब्यर्थ होगा।
एक आँख भी न भायें जिसे हम
उसको लुभाना ब्यर्थ होगा।
मिट गया हो जो तुम्हारी चाह में,
चाह कर भी उसे दिल से मिटाना ब्यर्थ होगा।।
श्री राजीव मिश्रा अभिराज:-
छोड़ा बाँसुरिया के मोह हो
हमके देखा साँवरिया,
देखा साँवरिया हो देखा साँवरिया,
नैना तोहार चितचोर हो
हमपे डारा नजरिया।।
कोयल कुहुके पपीहा बोले,
सुरभित मंद पवन अब डोले,
मधुकर गान करें कलियन पर,
बागों में देखो पड़ गए झूले,
नाचे मोरा मन मयूर हो,
हमके देखा साँवरिया।।
श्री ओमप्रकाश सिंह:-
प्यार का जाम निगाहों से छलकने देना।
दिलोँ के खेत मे तुम प्रेम पनफने देना।
कहीं ऐसा न हो उसर हो जाए सारा जहां,
दो बूँद अश्क के तुरबत को बचाए रखना।।
जनाब नजर हयातपुरी:-
तनी बीती कैसे उमिर्या
लूट मचलबा सगरो नगरीया
जी मर के हम खेतिया लगाउनी
खून पसीना देई के पटौनी
फ़स्ल भईल त चर गैल बकरिया।
जनाब जोगाड़ देवबंदी:-
मुंह बनाए मेरे खांसने से महफ़िल में,
ख़ुदा करे के उसे उम्र भर ज़ुकाम रहे।
जनाब काविश समर:-
सितमगर तू मेरा हाल भी कब पूछेगा,
ख़ाक जब ख़ाक में मिलजायेगी तब पूछेगा ।
गीली आंखें लिए बाज़ार न जाना काविश,
जो मिलेगा वही रोने का सबब पूछेगा।।
श्री लालबहादुर यादव कमल:-
हे माँ,तू धरती की देवी, ईश्वर का अनुपम वरदान।
नहीं उऋण हो सकता कोई,
इतने तेरे कर्ज महान ।।
प्रथम गुरु है,तू है हेजननी!
करता हूं तेरी पूजा,
कहाँ तेरे सम धरा धाम पर,
दिखता है कोई दूजा।
तेरे गुस्से में भी हे माँ!
ममता का सुख पाता हूँ।
तीर्थ तुल्य रज चरण तुम्हारी,
उसको शीश चढ़ाता हूँ।।
शब्द नहीं मिलते हैं कैसे,
“कमल”करे तेरा गुणगान।।
हे माँ———–