हमारे देश भारत में जब-जब चुनाव करीब आता है उस समय के महीनों पहले से भले ही सत्ता किसी भी पार्टी की हो रेल दुर्घटनाओं, सैनिकों की हत्याओं, आगजनी आदि की खबरों में अचानक बाढ आ जाती है।
हो सकता है इन सब घटनाओं में अचानक इजाफा आ जाना सरकार के तरफ से ध्यान भटकाने अथवा ध्यान दिलाने की कोई कोशिश भी जरूर हो बावजूद इसके किसी न किसी मार्फत से इसमें मध्यवर्ग के लोग ही पीसे जाते है।
ज्ञातव्य हो कि धनाढय परिवार के लोग नाही रेल यात्रा पसंद करते है और नाही सैनिक बनकर देश की सेवाऐं देने हेतु सैन्य वर्गो में शामिल होते है।
बतातें चलें कि अभी हाल ही में महीनो पहले बिहार में हुए रेल दुर्घटना का मातम अभी थमा भी नही था कि 14 फरवरी को एक ही साथ तकरीबन 42 सैनिको की कत्लेआमो ने पूरे देश के भक्तो को हिला दिया। जबकि सरकार कुछ नोटो की पुलिंदाओ की घोषणाकर अथवा जाँच जारी है का फरमान निकालकर सबको आश्वासन दे देंगी।
परंतु उस मां बाप के इकलौते सपूत, जिसकी लाश आएगी सीमा रेखा से कफन में अवधूत, उस लाश के बारें में नही सोचेगीं कि वह सपूत कभी अपने बाप के कंधे का सहारा बन सकता था। भले ही वर्षो बाद उस लाश के नाम पर सरकार परमवीर चक्र भी बाँट दे फिर भी सच्चाई यह है कि वह लाश भी किसी मध्यमवर्ग के बेटे का ही रहता है।
वह रेल दुर्घटना में मारा गया यात्री भी किसी मध्यमवर्ग का ही परिवार का रहता है।
और यह मध्यम वर्ग वही है जो चुनाव की घोषित तारीखो के महीनो पहले से ही पान की दुकानो पर, चौक चौराहो पर अपने पसंद की नेताओ को वोट देने के लिए तू-तू मैं-मैं कर लेता है और चुनाव के दिन सुबह-सुबह ही लंबी कतारो में अपना समय जाया कर अपना एक बहुमूल्य वोट उस सरकार के लिए देता है। इस आशा के साथ कि शायद अगले पाँच साल तक देश में कोई अनहोनी न हो जिसका कहर मध्यम वर्ग पर टूटे जबकि धनाढय या अमीर वर्ग उस रोज किसी पिकनिक स्पॉट पर होते है।