चार साल पहले कश्मीर में पीडीपी और भाजपा ने गठबंधन करके सरकार बनाई लेकिन आन्तरिक मुद्दों पर यह गठबंधन टूट गया, पीडीपी जहां चाहती कि एक तरफा संघर्ष विराम को बढाया जाय लेकिन भाजपा इसे बढाने के मूढ में नही थी क्योंकि इधर कई वर्षो से कश्मीर में बढती पत्थरबाजी, सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा समेत कुछ घटनायें भाजपा को गठबंधन से हटने पर विवश किया क्योंकि महबूबा मुफ्ती भले ही भाजपा के साथ गठबंधन में रही लेकिन अधिकतर फैसलें पत्थरबाजों, विद्रोहियों व हिंसा करने वालों के पक्ष में लेती रही जो भाजपा को पच नही रहा था
क्योंकि इन फैसलों से देश में भाजपा के खिलाफ मानसिकता पनप रही थीl रही बात कश्मीर में 370 की तो पीडीपी खुद भाजपा के इस विचार से सहमत नही थीl इस पर मुफ्ती महबूबा का राजनीति में बने रहने के लिये क्षेत्रीय लोकप्रियता प्रमुख हैl क्योंकि केवल भाजपा को छोडकर किसी भी पार्टी वहां के पत्थरबाजों व हिंसा करने वालों के साथ सख्ती से नही पेश आयेगीl विपक्षी भले कहें कि भाजपा की सरकार के बावजूद कश्मीर में हिंसा बढी बेशक केवल भाजपा विरोध करेगी बाकी सब समर्थन करेंगें तो बढेगी हीl नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्दुल्ला ने गठबंधन टूटने पर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की बात कहकर पुनः प्रदेश में चुनाव की मंशा जाहिर की है, कांग्रेस ने को किसी को समर्थन न देने की बात कही है लेकिन देगी तो भी क्या? 12 सीट से सरकार को बनेगी नही, यदि फारूख अब्दुल्ला की पार्टी 15 सीट का समर्थन दे तो शायद सरकार की संभावना तलाशी जा सकती है लेकिन नेताओं के रूख से लग रहा है कि कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के लिये सब तैयार है केवल पीडीपी को छोडकर लेकिन पीडीपी भी आधे मन से तैयार ही होगी क्योंकि कोई विकल्प दिख नही रहा हैl
कश्मीर में बढ रही हिंसा, चरमपंथ, पत्थरबाजी, विरोध देश के लिये घातक सिद्ध हो रहा है, वहां के कुछ अलगाववादी नेता तथा संगठन कश्मीर के युवाओं को बरगला कर उन्हें हिंसा की आग में झोंक रहे है और अपनी पैठ बनाकर राजनीति में कब्जा करना चाहते हैl सरकार के तरफ से कई बार शांति पहल की गई लेकिन हर बार विफलता हाथ लगीl सरकार का विरोध करके, हिंसा, आगजनी, सैनिकों पर पत्थर मारकर कैसे बात मनवाई जा सकती हैl सरकार की नरमी के कारण देश में रहकर ही देश का विरोध करने वाले लोग व्यवस्था को बिगाड रहे हैl हमारे देश के जवान बाहर के दुश्मनों से लडे कि आन्तरिक गद्दारों से?
कश्मीर में भाजपा को तभी सरकार में शामिल होना चाहिये जब कम से कम 44 सीट पर जीती हो क्योंकि पीडीपी, नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस वहां के पत्थरबाजों व हिंसा करने वालों के साथ सख्ती से नही पेश आ पायेंगे कारण है राजनैतिक महत्वाकांक्षाl आगामी चुनाव के बाद कांग्रेस व नेशनल कान्फ्रेंस को सरकार बनाने के लिये शायद पर्याप्त सीट मिलें, अभी दोनो दलों के पास मात्र 27 सीट है जबकि सरकार के लिये 44 सीट जरूरी हैl भाजपा की कश्मीर से दूरी बनने का प्रमुख कारण विद्रोहियों व हिंसा करने वालों के प्रति कडा रवैया हो सकता हैl देश के खिलाफ रहने वालों के खिलाफ रवैया रहना बहुत जरूरी हैl पीडीपी भले ही कट्टरपंथियों के प्रति सकारात्मक हो लेकिन भाजपा के साथ चार साल सरकार में रहने का खामियाजा पीडीपी को भी आगामी चुनाव के बाद मिल सकता हैl
कश्मीर के युवाओं को विचार करना चाहिये कि कट्टरवादी नेता केवल उन्हे मोहरा बनाकर प्रयोग कर रहे है और भविष्य खराब कर रहे हैl पुरा विश्व आज जहां विकास नई इबारत लिख रहा है वही भारत के युवा कुछ लोगों के बहकावे में आकर सरकार का विरोध और हिंसा करके देश का और अपना नाम खराब कर रहे हैl जह तक देश का युवा खुद से सोच समझकर कार्य नही करेगा तो ये चरमपंथी, कट्टरपंथी, आतंकवादी अपनी तुच्छ महत्वाकांक्षा के लिये युवाओं का माइंड वाश करके देश के खिलाफ तैयार कर रहे है जो देश के लिये घातक हैl वैसे सरकार चाहे जिस दल की रहे लेकिन देश विरोधी ताकतों के साथ नरमी से पेश न आयें, देश के लिये जरूरत पडे तो एक सरकार क्या कई सरकार न्यौछावर कर दें लेकिन देश में रहकर देश के खिलाफ बोलने वालों की किसी भी कीमत पर न छोडेंl
इस देश की आजादी एकता व अखंडता बनायें रखना सरकार की जिम्मेदारी है, न कि सत्ता के लालच में देश के गद्दारों का समर्थन करेंl देश के किसी भी नागरिक का संविधान में दिये गये अधिकारों का हनन न हो लेकिन देश के व्यवस्था में खलल डालने वालों के खिलाफ सरकार को हमेशा कमर कस कर जबाब देने को तैयार रहना होगाl राजनीति अपनी जगह और राष्ट्नीति अपने जगह होनी चीहियेl इन दोनों में राष्ट्रनीति सर्वोपरी हो क्योकि राष्ट्र रहेगा तो राजनीति कर सकते है लेकिन जब राष्ट्र नही रहेगा तो राजनीति कहां होगी ? वैसे कश्मीर में शांति कायम हो इसके लिये सभी दलों को एकजुट होकर प्रयास करने से ही हो सकता हैl