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भारतीय नस्ल की गाय: इस 15 गुणों की वजह से मिली मां की उपाधि

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भारतीय संस्कृति में गाय का बहुत महत्व है। गाय को मां का दर्जा दिया गया है। यह दर्जा किसी विदेशी नस्ल की गाय को नहीं बल्कि भारतीय नस्ल की गाय को मिला है। आईये हम आपको बताते हैं क्यों भारतीय नस्ल की गाय को मां का दर्जा दिया गया है—

  1. भविष्य पुराण में लिखा गया है कि गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं का और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगा, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र का वास हैं।

  2. सृष्टि के निर्माण में, जो 32 मूल तत्व, घटक के रूप में है, वे सारे के सारे गाय के शरीर में विध्यमान है| अतः गाय की परिक्रमा करना अर्थात पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना है| गाय जो श्वास छोड़ती है, वह वायु एंटी-वाइरस है| गाय द्वारा छोड़ी गयी श्वास से सभी अदृश्य एवं हानिकारक बैक्टेरिया मर जाते है| गाय के शरीर से सतत एक दैवीय ऊर्जा निकलती रहती है जो मनुष्य शरीर के लिए बहुत लाभकारी है| गाय के शरीर से पवित्र गुग्गल जैसी सुगंध आती है जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र करती है |

  3. अमेरिका में कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित हुई पुस्तक “The cow is a wonderful laboratory” के अनुसार पृथ्वी पर समस्त जीव-जंतुओं और सभी दुग्धधारी जीवों में केवल गाय ही ऐसी प्राणी है, जिसे ईश्वर ने 180 फुट (2160 इंच) लम्बी आंत दी है, जो अन्य किसी भी पशुओ में नहीं है |

  4. गाय आधिदैविक, अधिदैहिक एवं आधिभौतिक तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय को शास्त्रों में “सर्वसुखप्रदा” कहा गया है।

  5. गाय की सींगो का आकर सामान्यतः पिरामिड जैसा होता है, जो कि शक्तिशाली एंटीना की तरह आकाशीय उर्जा (कोस्मिक एनर्जी) को संग्रह करने का कार्य करते है | गाय के कूबड/ककुद्द में सूर्य- केतु नाड़ी होती है, जो सूर्य के गुणों को धारण करती है। सभी नक्षत्रों की यह रिसीवर है। यही कारण है कि गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं। गाय के कूबड़ में पायी जाने वाली नाड़ी, सूर्य के निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकती है।

  6. गाय के दूध/ घी में पीलापन रंग का राज है कि, उसमें सोने की भी आंशिक मात्रा पायी जाती है। करीब 1600 किलोलीटर दूध में 10 ग्राम सोना पाया जाता है। जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है |

  7. शोधकर्ताओं ने गाय के दूध में मौजूद “लैक्टोफेरिसिन B25” (लेफसिन B25) की खोज की है जो “गैस्ट्रिक कैंसर” की कोशिकाओं को रोकने में मदद करती हैं।

  8. गाय के दूध के अन्दर जल 87 %, वसा 4 %, प्रोटीन 4%, शर्करा 5 %, तथा अन्य तत्व 1 से 2 % प्रतिशत पाया जाता है | गाय के दूध में 8 प्रकार के प्रोटीन 11 प्रकार के विटामिन, पाया जाता है | गाय के दूध में ‘कैरोटिन‘ नामक प्रदार्थ भैस या जर्सी गाय के दूध की तुलना में दस गुना अधिक होता है |

  9. भैस या जर्सी गाय का दूध गर्म करने पर, उसके पोषक तत्व ज्यादातर ख़त्म हो जाते है परन्तु गाय के दूध के पोषक तत्व, गर्म करने पर भी सुरक्षित रहता है |

  10. गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है, इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है, जो कीटाणु नासक है | गौमूत्र चाहे जितने दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है और इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है | गौमूत्र में नाइट्रोजन ,फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटेशियम, सोडियम, लैक्टोज, सल्फर, अमोनिया, लवण रहित विटामिन ए वी सी डी ई, इन्जैम आदि तत्व पाए जाते है | गौमूत्र में मुख्यतः 16 खनिज तत्व पाये जाते है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है | आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन, कई बीमारियों को खत्म कर सकता है। नियमित रूप से 20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है। 1. भूख की कमी, 2. अजीर्ण, 3. हर्निया, 4. मिर्गी, 5. चक्कर आना, 6. बवासीर, 7. प्रमेह, 8. मधुमेह, 9. कब्ज, 10. उदररोग, 11. गैस, 12. लू लगना, 13. पीलिया, 14. खुजली, 15. मुखरोग, 16.ब्लडप्रेशर, 17. कुष्ठ रोग, 18. जांडिस, 19. भगन्दर, 20. दन्तरोग, 21. नेत्र रोग, 22. धातु क्षीणता, 23. जुकाम, 24. बुखार, 25. त्वचा रोग, 26. घाव, 27. सिरदर्द, 28. दमा, 29. स्त्रीरोग, 30. स्तनरोग, 31. छिहीरिया, 32. अनिद्रा। जो लोग नियमित रूप से गौमूत्र का सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।

  11. गौमूत्र से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी बनाई जाती है –

गौमूत्र अर्क (सादा) 2. औषधियुक्त गौमूत्र अर्क (विभिन्न रोगों के हिसाब से) 3. गौमूत्र घनबटी 4. गौमूत्रासव 5. नारी संजीवनी 6. बालपाल रस 7. पमेहारी आदि।
12. देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘’प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है, जो बारिस लाने में सहायक होती है | इसी के मिश्रण से ‘इथिलीन ऑक्साइड‘ गैस भी निकलती है, जो “ऑपरेशन थियटर” में काम आता है |

  1. पिछली सदी के अंत मे ब्राज़ील ने भारतीय पशुधन का आयात किया था । ब्राज़ील गई गायों मे गुजरात की “गिर” और “कंकरेज” नस्ल तथा आन्ध्रप्रदेश की “ओंगल” नस्ल की गाय शामिल थी । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज पुरे विश्व में भारतीय नस्ल की गाय का ब्राजील सबसे बडा निर्यातक देश है , जबकि भारत में देशी गाय की दुर्दशा किसी से छिपी हुई नहीं है | इतना ही नहीं, बल्कि ब्राज़ील में हुए एक प्रतिस्पर्धा में भारतीय नस्ल की एक गाय ने सबसे अधिक दूध देकर ये साबित कर दिया कि जर्सी गाय की वकालत करने वालों के तर्क में खोखलापन है |

  2. दूध को दो श्रेणियों मे बांटा गया है- A1 और A2 { A1 जर्सी का और A2 भारतीय देशी गाय का }

भारत सहित पुरे विश्व में A1 दूध पीकर लोग कैंसर, मधुमेह, गठिया ,अस्थमा, मानसिक विकार जैसे दर्जनों रोगों का शिकार हो गए है| दुनिया भर में डेयरी उद्योग अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों में ” अच्छा दूध अर्थात् BCM7 मुक्त A2 दूध “ के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रही हैं| विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित A2 दूध के दाम साधारण A1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं| जबकि A2 दूध सिर्फ भारतीय नस्ल की देशी गाय से प्राप्त होता है |

  1. भारतीय देशी गाय में वात्सल्य भावना कूट—कूटकर भरी होती है। वह अपने बच्चे को जन्म देने के बाद 18 घंटे तक चाटती—दुलारती रहती है। यही कारण है कि सैंकड़ों बछड़ों के बीच भी अपने बच्चे को पहचान लेती है। और तो और, गाय जबतक अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाती है, तबतक दूध नहीं देती है। जबकि भैंस या जर्सी गाय चारा खाते ही दूध दूहने की अनुमति दे देती है। यही कारण है कि गाय का दूध पीने वाले बच्चे में काफी शांत और सौम्य आचरण एवं व्यवहार ज्यादा देखे गए हैं।

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