Home भदोही औषधि निरीक्षक पर सूचना आयुक्त ने लगाया अर्थदंड

औषधि निरीक्षक पर सूचना आयुक्त ने लगाया अर्थदंड

भदोही। देश में जहां भ्रष्टाचार को कम करने के लिये सरकार तरह तरह के कानूनों को लागू करती है वहीं सरकार के कुछ नुमाइंदे कानून की ऐसी तैसी करने से बाज नही आ रहे है। आम आदमी केवल परेशान होकर कुछ दिन दौडता है, फिर थक हार कर इन देश के भ्रष्टाचारियों को लूटने के लिये छोड देता है, कारण है कि इनको बचाने के लिये कई कानून है जबकि शिकायतकर्ता केवल अकेला है। लेकिन कुछ जाबांज शिकायतकर्ता ऐसे भी है कि जब तक गलत करने वाले को सजा नहीं मिल जाती तब तक पीछा नही छोड़ते है।

ऐसा ही एक वाकया भदोही जिला में देखने को मिला जहां शिकायतकर्ता आदर्श त्रिपाठी ने 25 नवम्बर 2015 को जन सूचना अधिकार के तहत जनसूचना अधिकारी, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन लखनऊ से भदोही जिला के संदर्भ में सूचना मांगी। यह जानकारी 17 दिसम्बर 2015 को औषधि निरीक्षक, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, भदोही को भेज दी गई लेकिन खाद्य निरीक्षक व जनसूचनाधिकारी मनोज कुमार सिंह ने सूचना न उपलब्ध कराई। और औषधि निरीक्षक भदोही के द्वारा यह कथन व्यक्त किया जा रहा हैं कि 2008 से पूर्व हमारा विभाग मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में होने के कारण समस्त पत्रावली उन्हीं के यहाँ हैं। जबकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी भदोही के द्वारा कहा जा रहा हैं कि उक्त समय ही समस्त प्रभार पत्रावली सहित दी गयी थी।

उक्त पर यह यक्ष प्रश्न उठता है कि यदि 2008 से पूर्व की पत्रावली सम्बन्धित विभाग औषधि निरीक्षक भदोही के पास नही था व हैं।तो सम्बन्धित विभाग किन पत्रावलियो के आधार पर संचालित की जा रही हैं। उक्त के क्रम में जब सूचना आयुक्त श्री राजकेश्वर सिंह जी के कोर्ट में वादी एडवोकेट आदर्श त्रिपाठी ने यह कथन व्यक्त किया कि यदि सम्बन्धित विभाग में पूर्व की पत्रावली नहीं थी तो विभाग कैसे संचालित कराया जा रहा था।जिस पर आयुक्त महोदय ने औषधि निरीक्षक भदोही को उक्त कथन को शपथ पत्र के माध्यम से व्यक्त करने हेतु आदेशित किया लेकिन प्रतिवादी मनोज कुमार सिंह तत्कालीन औषधि निरीक्षक भदोही के द्वारा शपथ पत्र ना देने पर सूचना आयुक्त महोदय के द्वारा सम्बन्धित नियमानुसार 25 हजार रूपये दण्ड अधिरोपित करते हुए उनके वेतन से तीन समान किश्तो में कटौती करने कोषाधिकारी भदोही को वसूली हेतु पत्र प्रेषित किया हैl
अब यहां यह बात समझ में नही आ रही है कि आखिर विभागों के अन्दर क्या खेल चल रहा है? इसमें किसकी लापरवाही कही जाये? यदि ऐसी ही दशा रही तो देश का क्या होगा, अधिकारी या विभाग को अपने अधिकारों के अलावा कर्तव्यों पर भी ध्यान देना चाहिये कि नही?

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