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इन्क़लाब,,, ज़िन्दाबाद

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भगत सिंह

इन्क़लाब,,, ज़िन्दाबाद

इन्क़लाब की बलिवेदी पर,
बिस्मिल बम बम बोला था ।
देख बसंती चोला जब,
अंगरेजी शासन डोला था ।
निकल पड़े जब सरफरोश,
सीने पर गोली खाने को ।
कुछ नेता तत्पर दिखते थे,
तब जेलों में जाने को ।
हुए शहीद हजारों जब,
शोणित की नदी बहाई थी ।
ख़ूनी बलिदानों पर,
स्वतन्त्रता की डोली आयी थी ।
ख़ून के बदले आज़ादी लो,
ऐसा गूंजा नारा था ।
एक आज़ाद की पिस्टल से,
सारा निज़ाम जब हारा था ।
राजगुरु-सुखदेव-भगत सिंह,
थे फांसी पर झूल गए ।
उनके बलिदानों को भी हैं,
कुछ नालायक भूल गए ।
रक्त की आहुति दे कर ही,
आज़ादी हमने पायी थी ।
‘देवराज’ झूठ मत बोलो कि,
चरखे से आज़ादी आयी थी ।…

हिन्दुस्थान की आज़ादी के हवनकुण्ड में अपने शोणित की आहुति देकर हमें आज़ादी प्रदान करने वाले अमर क्रान्तिकारी, शहीद ए आज़म भगत सिंह जी की जयन्ती पर उस महान हुतात्मा के चरणों में कोटिशः नमन वन्दन अभिनन्दन

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