उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्य सम्मेलन में मुंबई, महाराष्ट्र के साहित्यकार भी सहभागी बने। मुंबई की साहित्य सेविका श्रीमती आभा दवे ने बताया कि विश्व मैत्री मंच द्वारा आयोजित उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद के ग्रैंड प्लाज़ा सभागार में भारत, अमेरिका तथा उज्बेकिस्तान देशों से आए 32 साहित्यकारों ने साहित्य के विभिन्न विषयों पर चर्चा विमर्श कर हिंदी को वैश्विक स्तर पर एक सूत्र में लाने का प्रयास किया।
विदेशी धरती पर माँ सरस्वती की फोटो पर माल्यार्पण बिजली के दीपों एवं अनिता राज द्वारा सरस्वती वंदना की नृत्यमय प्रस्तुति सभागार जगमगा उठा। उद्घाटन सत्र में मुंबई से आई लक्ष्मी यादव के कथा संग्रह रिश्तो की जंजीर, ज्योति गजभिए के कथा संग्रह बिन मुखौटे के दुनिया, सविता चड्डा के लेख संग्रह पांव जमीन पर निगाह आसमान पर, साधना वैद के लघुकथा संग्रह तीन अध्याय, डॉ यास्मीन खान के कविता संग्रह संवेदना के स्वर तथा अनिता राज की यात्रा संस्मरण की पुस्तक का लोकार्पण संस्था अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव, कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ विद्या सिंह, मुख्य अतिथि डॉ स्वामी विजयानंद तथा विशिष्ट अतिथि डॉ सुभाष कुमार पांडेय और विजय कांत वर्मा के कर कमलों द्वारा हुआ।
मुंबई से आई प्रभा शर्मा सागर ने “पानी की कहानी, पानी की जुबानी ” नाटक की एकल नाट्य प्रस्तुति की। संतोष श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में कहा– ” विश्व मैत्री मंच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को एक मंच पर लाने में प्रयासरत है। साथ ही भारतीय चित्रकला, नाट्य कला एवं संगीत को भी विश्व मंच पर प्रतिष्ठित करने में कटिबद्ध है।”
परिचर्चा के विषय “21वीं सदी की कविताओं में स्त्री विमर्श” पर विषय प्रवर्त्तक वरिष्ठ लेखिका डॉ प्रमिला वर्मा ने कहा–
बीसवीं सदी में लिखी कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं, तो क्या हम मान सकते हैं कि समाज बदल गया है? उन्होंने प्रसिद्ध विचारक कार्ल मार्क्स का उदाहरण देते हुए उनके द्वारा लिखी हुई “पूँजी” के पहले खंड में कहा कि अब उस हाथ को विश्राम करने दो जिससे तुम चक्की पीसती हो …और धीरे से सो जाओ… मुर्गा बांग देकर सूरज निकलने का ऐलान करें तो भी मत उठो।…आज औरत चक्की नहीं पीस रही है फिर भी चक्की की तरह पिस रही है। ”
फ्लोरिडा अमेरिका से आई आशा फिलिप ने स्त्री की सार्वभौमिक अथिति को लगभग एक जैसा बताते हुए अपने विचार व्यक्त किए। उज्बेकिस्तान के लेखक अबरार तथा थॉमस ने अपने देश में नारी को पुरुष से कमतर नहीं आंका अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ लेखिका सविता चड्डा ने कहा
“स्त्री विमर्श के लेखन ने ऐसी रोशनी का काम किया है, जिसमें महिलाओं को प्रत्येक क्षेत्र में अपनी भूमिका को सम्मानपूर्वक निभाने में सहायता की है। उन्होंने अपनी कविता का उल्लेख भी किया “माथा झुका के कुछ पाना, पाना नहीं होता। सम्मान गवां के कुछ पाना, पाना नहीं होता। यूं तो मिल सकते हैं सबको, दुनिया में समुंदर। पर समुंदर ही तो दुनिया में सब कुछ नहीं होता।”
प्रमुख वक्ताओं में डॉ क्षमा पांडे ने कहा– 21वीं सदी की काव्य धारा में स्त्री विमर्श प्रमुख विषय के रूप में विद्यमान है। उसका प्रमुख कारण एक तरफ समाज में व्याप्त भीषण अत्याचार जघन्य अपराध यौन उत्पीड़न घरेलू हिंसा जैसी विकराल समस्याएं समाज में फैली हुई हैं, वहीं दूसरी ओर आज की नारी राजनैतिक, सामाजिक तथा प्रशासनिक उच्च पदों पर पदस्थ है तथा अंतरिक्ष की उड़ान भरने में सक्षम है। आधुनिक कवियों और कवयित्रियों में प्रमुख रूप से हरकीरत हीर, चंद्रकांत देवताले, मनोरमा द्विवेदी क्षमा पांडेय, संतोष श्रीवास्तव ने स्त्री को अपनी कविता का केंद्र बिंदु बनाया है।
डॉ राकेश सक्सेना ने कहा– “इक्कीसवीं सदी के काव्य में स्त्री विमर्श हमारे समय, देशकाल व पूरे परिदृश्य से जुड़ा है। ये विमर्श पुरुषों का विरोध नहीं करता अपितु पुरुषों की मानसिकता का विरोध करता है। इस सदी के लेखन का उद्देश्य मानवीय समाज की स्थापना है। ” संस्था ने सभी प्रतिभागियों का स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया। दोनों सत्रों का संचालन क्रमशः मधु सक्सेना, आभा दवे ने तथा आभार संतोष श्रीवास्तव ने व्यक्त किया।