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क्या नियमों के विरूद्ध है डाइंग प्लाण्टों पर कार्रवाई, क्यों बख्श दिये जाते हैं प्रदूषण विभाग के अधिकारी

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प्रदूषण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से किया जा रहा भदोही के पानी को प्रदूषित

पूर्व विधायक जाहिद बेग ने कहा मजदूरों की रोजी रोटी ना छीने सरकार

भदोही। मोरवा नदी का पानी लाल होने की शिकायत पर उत्तरप्रदेश प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों ने कारपेट सिटी में संचालित 8 डाइंग प्लाण्टों को दोष पाते हुये उन्हें सील कर दिया जिसके बाद हजारों मजदूरों को बेराजगार होकर घर बैठना पड़ा। इसे लेकर अब कालीन व्यवसाईयों में काफी आक्रोष देखा जा रहा है। वहीं पूर्व विधायक जाहिद बेग ने तहसीलदार को पत्रक देकर डाइंग प्लाण्टों को चालू किये जाने की मांग की है, क्योंकि एक तरफ मजदूरों की रोजी रोटी छिन गयी है तो दूसरी तरफ जनवरी में होने कारपेट फेयर को लेकर कालीन उद्योग पर संकट के बादल छा गये हैं।

गौरतलब हो कि 15 दिसंबर को ह्यूमन टुडे के ट्विटर अकाउण्ट से हुई शिकायत के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने यह कार्रवाई की है। शिकायत यह की गयी थी कि मोरवा नदी में रंगीन पानी बहने का कारण क्या है। क्या डाइंग प्लाण्ट संचालित करने वाले पानी को बिना संशोधित किये नदी में बहा रहे हैं। यदि नदी के पानी में केमिकल मिला हुआ है तो वह पशु पक्षियों के लिये घातक हो सकता है। इसके बाद प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों का कहना था कि जो डाइंग प्लाण्ट सीज किये गये हैं वहीं नदी में बिना संशोधन के नदी में पानी को प्रवाहित कर रहे हैंं।

जबकि जाहिद बेग का कहना है कि सभी प्लांट नियमानुसार ईटीपी प्लांट मदद से पानी का निस्तारण करते है। जिसका साक्ष्य आधुनिक स्मार्ट सीसी कैमरा से ईटीपी प्लांट का मीटर वाई फाई के माध्यम से केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड दिल्ली कार्यालय से सम्बद्ध है। जिसे देखा जा सकता है।खास यह कि किसी भी तकनीकी खराबी होने पर संचालक के मोबाइल पर मैसेज आता है।बावजूद प्लांट सीज करना सीधे तौर पर धन उगाही व शोषण की ओर इशारा कर रहा है।पूर्व विधायक ने यह भी कहा कि जनवरी में वर्चुअल फेयर होना है।कालीन को तैयार कराने में डाईंग का विशेष योगदान होता है।डाइंग प्लांट उद्योग की रीढ होती है।अभी फेयर के दृष्टिगर फेयर के लिए सैम्पल तैयार कराने की रणनीति चल रही है ऐसे में सभी प्रमुख डाइंग प्लांट सीज करना उद्योग व हजारो मजदूर का अहित है इसे तत्काल बहाल किया जाना आवश्यक है।

यदि ईटीपी प्लाण्ट का मीटर वाई फाई के माध्यम से केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड दिल्ली से जुड़ा हुआ है और उसकी मानीटरिंग दिल्ली से हो रही है तो डाइंग प्लाझट संचालक किस तरह केमिकलयुक्त पानी सीधे नदी में बहा रहे हैं। कया इसकी जानकारी प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों को नहीं थी। या फिर इसमें अधिकारियों और डाइंग प्लाण्ट संचालकों की मिलीभगत से आम इंसानों और पशु पक्षियों की जान के खेलने का गहरा खेल चल रहा था। बताया जाता है कि प्रत्येक माह प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी डाइंग प्लाण्ट की जांच करते हैं, लेकिन जब अखबारों में खबर छपती है या किसी माध्यम से शिकायत होती है तभी अधिकारियों की नींद खुलती है और डाइंग प्लाण्ट के संचालकों पर सीधे कार्रवाई हो जाती है।

चर्चा है कि कारपेट सिटी के अलावा सैकड़ों की संख्या में ऐसे रंगाई कारखाने हैं जो गांव व नगर में लगाकर धड़ल्ले से चलाये जा रहे हैं। इसकी जानकारी होने के बाद भी प्रशासन और प्रदूषण विभाग चुप्पी साधे पड़ा है। यह रंगाई कारखाने जिन्हें कूड़ा व भठ्ठा कहा जाता है, वे भदोही नगर व आसपास के क्षेत्रों में काफी संख्या में हैं। इनका जहरीला पानी पास की नहर, तालाब या खाली जमीन पर बहा दिया जाता है। जिसे पीकर पशु पक्षी बीमार होते हैं। साथ ही यही पानी भूगर्भ में मिलकर पेयजल को भी दूषित कर रहा है। लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि नदी के जिस जगह का फोटो ट्विट किया गया था। वह फोटो ओदारनाथ महादेव मंदिर पल्हैया के पास स्थित नदी का था। वहां पानी का बहाव दक्षिण से उत्तर था। फिर कारपेट सिटी से पानी विपरीत दिशा में बहकर दक्षिण कैसे आ गया। यदि प्रदूषण विभाग ईमानदारी से जांच करता तो नदी के किनारे स्थित किसी डाइंग प्लाण्ट से बहाया गया प्रदूषित पानी पाये जाता किन्तु प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों को कारपेट सिटी में स्थित डाइंग प्लाण्ट ही दिखायी दिये। जिससे यह मामला पूरी तरह पूर्व विधायक जाहिद बेग के आरोपों को सिद्ध करता है। सोचने वाली बात है कि क्या प्रदूषण विभाग खुद लोगों की जिंदगी से खेलकर अपनी जेब भरने में लगा है।

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