भदोही। जिले में कई चुनाव हुए और कई नेता भी हुए। लेकिन रमाकान्त यादव जैसे बदजुबान नेता नही दिखे। जो अपनी इन्ट्री ही बिगडे बोल से किया। रमाकांत यादव कई दलों में राजनीतिक स्वाद लेते हुए अब कांग्रेस से भदोही से लोकसभा का सांसद बनने का ख्वाब देख रहे है। और उन्होने स्वयं सोमवार को अपने बयान से परिणाम का खाका खीच लिया। रमाकान्त को लगता है कि जातिवादी कार्ड खेलकर लोगों को अपने पक्ष में कर लेंगे लेकिन रमाकान्त शायद भूल रहे है कि यह आजमगढ नही भदोही है। जहां पर सभी जाति व धर्म के लोग आपस में एक धागे की तरह जुटे है। यहां से वही जीतता है जो सच में यहां की एकता व विकास को बनाये रखने में अहम भूमिका निभाता है।
रमाकान्त ने ब्राह्मणों के ऊपर विवादित टिप्पणी करने के पहले यह नही सोचा कि वे जिस दल में आज आये है उस दल में भदोही के ब्राह्मण पंडित श्यामधर मिश्र की तूती बोलती थी और आज भी कांग्रेस की जिलाध्यक्ष डा नीलम मिश्रा है जो एक ब्राह्मण है। अपने जातिवादी भाव में इतना खो गये कि कांग्रेस की जिलाध्यक्ष का भी ध्यान नही दिया। रमाकान्त को पता होना चाहिए कि बसपा, सपा, भाजपा ने शायद इसी गंदी सोच व मानसिकता के लिए टिकट नही दिया।
भदोही में लोगों को बांटने की नीति कभी भी कामयाब नही होगी। जातिवाद का यह जहर घोलना केवल रमाकान्त को ही नही अपितु कांग्रेस को भी भदोही से इसका खामियाजा मिलना तय है। दो दिन भदोही में रहे नही कि यहां के ब्राह्मणों पर विवादित टिप्पणी करके पिछडों, दलित व मुसलमानों को अपने चंगुल में फंसाकर वोट की राजनीति कर रहे है। बयान देने के पहले रमाकांत ने भदोही लोकसभा का आकलन नही किया नही तो ऐसी तुच्छ भाषा न बोलते। भदोही के बारे में बोलने के पहले यहां के इतिहास, भूगोल, सामाजिक ढांचा के बारे तैयारी करके बोलना चाहिए। केवल कुछ जातिवादी लोगों को खुश करने के लिए रमाकान्त का यह बयान ध्रुवीकरण की राजनीति का एक अंग है। जो बेशक उनको काफी नुकसानदायक साबित होगा।
राजनीति के स्तर को इतना नीचे अभी तक किसी भी दल के नेता ने नही गिराया जितना कांग्रेस के प्रत्याशी रमाकान्त यादव ने गिरा दिया। भदोही में सपा-बसपा के खिलाफ कांग्रेस से चुनाव लड रहे है और आजमगढ में सपा का समर्थन कर रहे है। इस तरह की राजनीति का क्या कारण है? क्या रमाकान्त फिर से सपा में जमीन तलाशने की तैयारी तो नही कर रहे है? आखिर क्या कारण है कि रमाकान्त यादव ब्राह्मणों का विरोध कर रहे है?
वैसे कुछ भी हो रमाकान्त यादव का यह बयान जिले में जातियों के बीच दरार पैदा करने में तो काफी सहायक सिद्ध होगा। इसकी मुख्य वजह कुछ जातिवादी लोग जिनका न कोई नीति है न नियम। वे लोग रमाकान्त यादव को अपना मुखिया मानने मेशकुरेज नही करेंगे क्योकि इससे उनके जाति का नाम जुडा है। इस बयान से कुछ लोग प्रभावित होकर रमाकान्त को वोट कर सकते है लेकिन अब ब्राह्मणों का वोट रमाकान्त को मिलना असंभव है। नेताओं की मानसिकता आज इतनी नीचे तक गिर जायेगी। यह सोचकर बडी ही ग्लानि होती है। भदोही में जातिवाद का जहर घोलकर रमाकान्त यादव कितना कामयाब होते है? और भदोही के लोगों को एकजुट करने की अपेक्षा दरार पैदा करना कितना कारगर साबित होगा?