संतोष कुमार तिवारी
किसी भी वन्य जीव जन्तु को पालना गैरकानूनी है, नदियों की जैव विविधता बना़ये रखना हम सब की जिम्मेदारी है, यह बात कानपुर के वानिकी प्रशिक्षण संस्थान में आयोजित ‘गंगा हरीतिमा अभियान’ के प्रशिक्षण कार्यक्रम में आये जानकारों द्वारा बताई गईl जैव विविधता के बात पर मुझे यह बात याद आ गई कि जमीन पर जीवों द्वारा जो खाद्य चक्र चलता है, वैसे ही पानी में रहने वाले जीवों का भी खाद्य चक्र होता होगा, जो वास्तव में एक दूसरों के पूरक होते होंगेl
गंगा या अन्य नदियों की धारा अविरल हो, स्वच्छ हो इसके लिये सरकार कई वर्षों से प्रयासरत हैl लेकिन कोई खास प्रगति नही देखने को मिल रही हैl गंगा की स्वच्छता के लिये वर्तमान सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे का आगाज किया लेकिन तीन वर्ष बीतने के बावजूद भी दशा में इच्छित प्रगति नही है, सरकार द्वारा इस योजना के लिये धन की कमी नही है, गंगा की सफाई के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च हो गये लेकिन सुधार न के बराबर l
यहां केवल कमी है तो हम सब की लापरवाही युक्त जिम्मेदारी की जिसमें केवल जमीन पर कम कागजों पर ज्यादा काम करना देश के लिये, पर्यावरण के लिये, गंगा के लिये और हम सब के लिये दुखदायी है l गंगा देश के पांच राज्यों के 97 शहरों से होकर बहती है, गंगा की स्वच्छता को बनाये रखने के लिये सरकार के साथ साथ कई सामाजिक संगठन भी लगे हैl
1883 में अपने जमाने के हिन्दी के विद्वान व लेखक पंडित प्रताप नारायण मिश्र ने जून में प्रकाशित “ब्राह्मण” पत्रिका में गंगा की सफाई का उल्लेख किया लेकिन आज 135 साल बाद भी हमारी गंगा दिनोंदिन और खराब स्थिति को प्राप्त होती जा रही हैl वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण में ईको सिस्टम को प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, यह बहुत ही सराहनीय व अच्छा कदम हैl गंगा में रहने वाले जीवों को मारना गैरकानूनी है तो सरकार ने खुलेआम म मछली मारनेे वालों पर कार्यवाही क्यों नही करती है?
मालूम होे कि गंगा में गंगा डाल्फिन, उदविलाव की तीन प्रजातियां, घडियाल, मगरमच्छ, कछुयें कि तेरह प्रजातियां और मछली की 143 प्रजातियां पाई जाती हैl जिनका संरक्षण बहुत जरूरी है, हाल ही में हुये एक परीक्षण में गंगा नदी में 43 किमी तक किसी भी जलीय जीव का न पाया जाना चिंता का विषय हैl विदित हो कि वेद पुराण में 84 लाख के जीवों का जिक्र है लेकिन वैज्ञानिकों ने अबतक केवल 60 लाख के जीवों का पता लगा सके है लेकिन यदि यह विलुप्तीकरण ऐसे होता रहा तो लह दिन दूर नही जब हमारे वैज्ञानिकों को उक्त आंकड़ों से आगे जाने का मौका मिल पायेगाl जैव विविधता बनाने में सब को सामूहिक रूप से पुरी जिम्मेदारी के साथ सरकार के तरफ से चलाई जाने वाली योजनाओं का सहयोग करना ही होगा न कि केवल खानापुर्ति तरने से होगाl
अब यहां प्रश्न यह बनता है कि गंगा की बालू चाहे वह गंगा में हो या किनारे घाटों पर यह भी जलीय जीवों के लिये लाभदा़यक है लेकिन फिर भी गंगा घाटों से बालू की निकासी होती है जो जलीय जीवों के रहने में असुविघा पैदा करता है l केवल मछली मारना, बालू की निकासी ही नही अपितु अन्य कई कारण और भी है जो गंगा को दूषित करने में सहयोगी हैl जिसमें नालों की निकासी, खेतों या मैदान का गंदा पानी, शवों का प्रवाह, कूडा कर्कट, मूर्ति इत्यादि का डालना प्रमुख है l इसके लिये जनजागृति जरूरी है तभी गंगा को स्वच्छ व निर्मल बनाया जा सकता हैl
गंगा को पुन: पवित्र, निर्मल एवं प्रदुषण मुक्त बनाने के लिये गंगा के तटबंधों पर वृक्षारोपण, पौधरोपण करना, खुले में या गंगा के किनारे शौच न करना, केमिकल या पिदुषकों का प्रयोग न करना, जैविक खेती पर बल देते हुये रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग कम करना या न करना, पूजा सामग्री या मूर्ति विसर्जन न करना, प्लास्टिक बोतल या पालीथीन का प्रयोग न करना तथा मृत पशुओं को गंगा में प्रवाहित न करना प्रमुख रूप से जरूरी हैl
हमें ज्ञात होना चाहिये कि गंगा की निर्मलता व स्वच्छता में आम जनमानस का सहयोग नितान्त आवश्यक है केवल सरकार के सहारे रहकर यह बड़ा अभियान पुरा नही हो सकता है, गंगा की स्वच्छता के साथ साथ पर्यावरण की शुद्धता बनायें रखने में हमसब का सहयोग जरूरी हैl सरकार भी बनाये गये कानून का उल्लंघन करने वालों या लापरवाही करने वालों के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करके राष्ट्रहित में कदम उठायेl वैसे हमसब की लापरवाही का परिणाम हम सब की आगे आने वाली पीढी झेलेगीl अत: हम सब को मिलकर सरकार के तरफ से चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं में सहयोग देकर देश को प्रगति के तरफ ले जायेंl