भारतीय राजनीति में एक अलग छाप छोडने वाली सुषमाजी स्वराज की कमी को कभी पुरा नही किया जा सकता है। सुषमाजी स्वराज 25 वर्ष की उम्र में जनता पार्टी की विधायक बनी फिर कभी भी राजनीति में पीछे मुडकर नही देखा हरियाणा राज्य की जनता पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष चुने जाने पर हरियाणा में जनता पार्टी को मजबूती दी। जिसका इनाम सुषमाजी स्वराज को 1979 में हरियाणा की चौधरी देवीलाल की सरकार में श्रम मंत्री बनाया गया। और इस दौरान सुषमाजी स्वराज ने श्रमिकों के लिए काफी कुछ किया।
1996 में दिल्ली की राजनीति में प्रवेश किया और दक्षिणी दिल्ली से सांसद चुनी गई लेकिन तीन वर्ष के अन्दर ही दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनी। तत्पश्चात अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में विभिन्न मंत्रालयो की जिम्मेदारी निभाई। फिर 15 वीं लोकसभा में विदिशा से सांसद चुनी गई और 21 दिसम्बर 2009 से 26 मई 2014 तक प्रतिपक्ष की नेता रही। नरेन्द्र मोदी की सरकार बनते ही सुषमाजी स्वराज को विदेश मंत्री बनाया गया और यह भारतीय राजनीति में पहली बार था जब किसी महिला को विदेश मंत्री बनाया गया। हालांकि अपने कार्यकाल के दौरान सुषमाजी स्वराज ने भारत के साथ अन्य देशों के रिश्ते में सकारात्मकता और विदेश में रह रहे भारतीयों के लिए काफी कुछ किया।
सुषमाजी स्वराज ने स्नातक और कानून की पढाई की थी। और हिन्दी की तरह अंग्रेजी, पंजाबी और संस्कृत पर भी अच्छी पकड थी। कई बार ऐसे भी मौके देखने को मिले जब सुषमाजी स्वराज संस्कृत में बोलती थी। सुषमाजी स्वराज ने हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और केरल की राजनीति को काफी नजदीक से देखी थीं सुषमाजी स्वराज नें भले ही कई पदों को सुशोभित किया, कई विदेश यात्राएं भी की लेकिन भारतीय संस्कृति की पहचान उनका खान-पान, पहनावा और रहन-सहन पक्का भारतीय रहा। चाहे विदेश का मंच रहा हो या भारत का, हमेशा ही ठोस व तथ्यपरक विचार के माध्यम से लोगों को अपनी बात बताती। हालांकि राजनीति में इस तरह की सख्शियत मिलना बहुत ही कठिन है। देश सुषमाजी स्वराज के कार्यों और बातों को याद करके हमेशा उनकी कमी महसूस करेगा। वैसे कुछ भी हो भारत ने आज एक ऐसी सख्शियत को खोया है जिसकी भरपाई असंभव है।