चुनाव’ में ‘नाव’यात्रा का प्रभाव
‘वोट’ के राजनीति के लिए ‘बोट’ की सवारी कितना कारगार होगा कांग्रेस के लिए यह तो समय ही बताएगा। लेकिन राहुल व प्रियंका गांधी ने बेशक लोगों में कांग्रेस के प्रति ललक पैदा करने की पुरजोर कोशिश की है। चुनाव तिथि की घोषणा होने के कुछ दिन पहले ही प्रियंका गांधी का कांग्रेस की राजनीति में आगमन कार्यकर्ताओं व समर्थकों में जान फूक दी है।
लेकिन देश में कांग्रेस की दशा को ऊपर लाने में कांग्रेस को बहुत ही मेहनत करनी पडेगी। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस इस वर्ष के आम चुनाव में कितना दम खम दिखा सकती है? इसका पता तो चुनाव परिणाम के बाद ही निश्चित हो पायेगा। लेकिन प्रियंका गांधी के जज्बे व सक्रियता से लगता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की स्थिति बेहतर हो सकती है, लेकिन इस पर बहुत ही सावधानी से कांग्रेस को काम करना पडेगा। यदि प्रियंका गांधी कुछ दिन और पहले कांग्रेस में सक्रिय हो गई होती तो आज कांग्रेस की स्थिति कुछ बेहतर होती। लेकिन समय समय पर कांग्रेसियों की बयानबाजी लोगों के लिए चर्चा का विषय बन जाती है। जो केवल राजनीतिक नुकसान का कारण बनती है।
हालांकि कांग्रेस की महासचिव व उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी आम चुनाव प्रचार का राजनीतिक सफर लखनऊ से प्रारम्भ किया है। जो प्रयागराज, भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी में गंगा मार्ग द्वारा लोगो को साधने की जुगत मे लग गई है। लेकिन कांग्रेस को यह विदित होना चाहिए कि जो भीड या जनसमर्थन दिख रहा है वह केवल इसका द्योतक है कि प्रियंका गांधी देश के गांधी परिवार से जुडी है जिसे देखने के लिए यह भीड है न कि यह भीड कांग्रेस की समर्थक हैं। सच में समर्थन पाने के लिए जमीनी हकीकत व समस्याओं से दो चार होना पडेगा।
यूपी के इन जिलों के कांग्रेस की स्थिति पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि कांग्रेस को ‘बोट’ से उतरकर जमीनी हकीकत से रूबरू होना बेहद जरूरी है। क्योकि यह क्षेत्र सपा, बसपा और भाजपा से ज्यादा प्रभावित है। इसमें सेंध लगाने के लिए कांग्रेस को ‘सच’ में मेहनत करनी पडेगी।
विदित हो कि मार्च 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भदोही में इंदिरा मिल के संबन्ध में आई थी। और 43 वर्ष बाद प्रियंका गांधी का आगमन कही न कही भदोही के लोगों के मन में इंदिरा की याद ताजा कर दी और कुछ लोग प्रियंका को इंदिरा गांधी के रूप मे भी देखते है। उस समय की राजनीति में केवल लोग विकास को तरजीह देते थे लेकिन आज के लोग जातिवाद को प्रथम वरीयता देते है। जो देश के लिए बहुत ही घातक है। आजकल सभी दल भी अपने जिताऊ प्रत्याशी को ही उतारकर सीट जितना चाहते है भले ही वे टिकाऊ न हो।
भारतीय राजनीति में आज ऐसे भी दल है जो केवल अपने स्वार्थ के लिए जातिवाद, परिवारवाद को प्रमुखता से बढाकर देश को ठगने के लिए लालायित है। और पढी लिखी जनता भी इन नेताओं के चक्कर में पडकर राष्ट्रवाद व विकास को भूलकर ‘बूरे’ लोगो को नेता बना देती है। कांग्रेस को यदि बेहतर प्रदर्शन करना है तो सच में ‘बोट’ से उतरकर जमीन पर आना होगा।