देश में सातों चरण के चुनाव के बाद विभिन्न एक्जिट पोल के तरफ से आ रहे आंकडें भाजपा के विरोधियों को रास नही आ रहे है। और विरोधी कभी चुनाव आयोग पर तो कही ईवीएम पर प्रश्न चिह्न खडा कर रहे है। जो एकदम फिजूल व निराधार है। भाजपा का विरोध करना तो जायज है लेकिन एक संवैधानिक संस्था जो विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखती है। उस पर भाजपा के विरोधी दलों के नेता व लोग गैरजिम्मेदाराना बयान देकर अपने हार का ठिकरा चुनाव आयोग व इवीएम पर फोड़ना चाहते है।
चुनाव आयोग के द्वारा इस बार के चुनाव को इतना व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न कराया गया कि हर जगह लोग प्रशंसा कर रहे है। लेकिन भाजपा विरोधियों को अब केवल चुनाव आयोग ही दिख रहा है। विरोध को लेकर विभिन्न दलों के नेताओं के बयान को सुनने के बाद तो ऐसा लग रहा है कि कहीं परिणाम के बाद सभी भाजपा विरोधी देश को किसी साजिश की तहत ‘बवाल’ में न ढकेल दें। क्योकि नेताओं की बदजुबानी से इनके नियत पर शक हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान देखने को मिला।
एक नेता ने तो अपने बयान में कह दिया कि यदि परिणाम पक्ष में न आए तो खुन खराबा हो जायेगा। इसी तरह की न जाने कितने बयान आ रहे है। जो देश को जाति, धर्म व सम्प्रदाय के नाम पर बांटने का मंसूबा पाल रखे है। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि पिछले विधानसभा चुनाव भाजपा इसलिए हारी जिससे लोकसभा चुनाव में लोगों का विश्वास ईवीएम पर बना रहे। कहने को तो नेता हो गये लेकिन बोलते समय यह ध्यान नही देते की जो बोल रहे है उस बात में कितना दम है?
भाजपा विरोधियों की बौखलाहट देश में क्या गुल खिलाएगी यह तो समय बताएगा लेकिन जनता का मूढ इस बार फिर मोदी पर विश्वास करके विकास व राष्ट्रवाद के नाम वोट दिया। जबकि विरोधी बेचारे जाति धर्म की राजनीति करके धराशायी हो गये। अब करे तो क्या करें? केवल खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे के तर्ज पर चुनाव आयोग पर अपना गुस्सा उतार रहे है। और कुछ तो ऐसे भी नेता है जो परिणाम बाद ‘कुछ’ करने के मूढ में है। लेकिन उन्हे यह नही मालूम है कि जनता अब उसी की सरकार बनायेगी जो उसके लिए काम करता है। जिसका केवल एक मुद्दा विकास है न कि जाति व धर्म।
वह दिन कभी होता था कि लोग जाति व धर्म के नामपर बंटकर वोट करते थे लेकिन अब लोग शिक्षित हो रहे है और देश की दिशा व दशा को समझ रहे है। अब किसी के बरगलाने से लोग वोट नही करेंगे। लोग अपने मन से जिसे बेहतर नेता समझेंगे उसे चुनेंगे। भाजपा विरोधी दलों का अभी तक प्रधानमंत्री पद का दावेदार नही निश्चित हुआ है लेकिन फिर भी लोग झूठा दंभ भर रहे है। मानते है कि जो एक्जिट पोल आ रहे है वे शत प्रतिशत सही नही होंगे लेकिन शतप्रतिशत गलत भी नही होंगे। दूसरी बात यह है कि सभी एक्जिट पोल में एनडीए को आगे दिखाया गया है। तब कैसे कहां जाए कि एक्जिट पोल पूरा गलत है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव को छोड दिया जाए तो उसके पिछले के एक्जिट पोल का आंकडा कम विश्वसनीय रहा लेकिन 2014 का जो एक्जिट पोल था वह लगभग सटीक था और इस बार तो सभी एक्जिट पोल एनडीए की जीत का अनुमान लगा रहे है।
नेताओं को चाहिए की जनता का जनादेश जो आ रहा है उसे मानकर अपनी राजनीति करें। जिसको देश का प्रधानमंत्री बनना होगा वह तो बनेगा ही। फालतू बयानबाजी करके देश के माहौल को गरम नही करना चाहिए। चुनाव आयोग के कार्यों पर शक करना ही भारत की संवैधानिक व्यवस्था का अपमान करना है। जो विरोधियों द्वारा कहा जा रहा है।
मानते है कि एक बार फिर मोदी की सरकार बनती है तो विरोधियों को यह चाहिए कि देश के हर कोने में जहां जहां उनकी सरकार है मोदी से बेहतर काम करें और इसका परिणाम आगे के चुनाव में देंखे। वैसे जनता केवल विकास चाहती है। चुनाव के बाद जो भी परिणाम आयेंगे उस परिणाम को सर आंखों पर रखकर स्वीकार करें। न कि सत्ता की सुख से दूरी हो जाने से देश में ‘अलग’ माहौल बनाने की कोशिश करें। हार के पीछे के कारणों का मंथन व चिंतन करें कि कौन सी बात है जो सत्ता सुख से दूर पहुंचा रही है। केवल भाजपा व चुनाव आयोग पर भडास निकालने से थोडी हार जीत में बदल जायेगी।
राजनीति का इतना विभत्स रूप कभी भी नही देखा गया था कि एक जिम्मेदार नेता एक ऐसी बयानबाजी करे जिससे लोग उसकी औकात को समझ लें। राजनेता बनना एक देशभक्ति थी कि देश की सेवा करेंगे। लेकिन आज भाजपा के विरोधी राष्ट्रवाद को भी लेकर भाजपा को घेरते नजर आते है। और अपना तो राष्ट्रवाद पर एक शब्द न बोलेंगे लेकिन जो बोलेगा उसपर भी चर्चा होती है। सौ की एक बात कि देश में जो विकास करेगा देश उसी को मौका देगा। बाकी लोग अपना सर पटक के मर जाए कुछ नही होगा। देश में लोगों को विकास चाहिए। जो देश के लोगों को विकास में आगे बढायेगा वही अब देश में शासन करेगा।