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जमीनी हकीकत (१०) – आग लगी, दरवाजा जल गया..फिर भी नहीं हुई आगजनी.!

भदोही – पुलिस-प्रशासन की सक्रियता से जनपद में दर्जनों मामले प्रतिदिन सुलझ जाते हैं लेकिन कई मामलों में विभिन्न कारणों से थाना प्रभारियों की संदिग्ध भूमिका का प्रत्यक्ष प्रमाण समक्ष आ ही जाता है। ऐसी ही सनसनीखेज दास्तां भदोही जिला मुख्यालय बतौर सम्मानित ज्ञानपुर के पुलिस थाना से सामने आई है, जहां आग लगी, दरवाजा जल गया लेकिन थाना रजिस्टर में आगजनी की घटना दर्ज नहीं हुई।

गौरतलब है कि भदोही जनपद के ज्ञानपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत हरिहरपुर गांव है, जिसे शुकुलपुर गांव के नाम से भी जाना जाता है। यहां बुजुर्ग सूर्यनारायण शुक्ल का परिवार रहता है, जिनके दालान (कोठरी) में ५ तारीख की सुबह करीबन ५ बजे भोर में आग लगा दी गई। बताया जा रहा है कि अचानक परिवार सहित कुछ लोगों की नजर पड़ी और आग को बुझा दिया गया। इसकी सुचना डायल १०० पर हुई और पुलिस भी पहुंच गई। पुलिस द्वारा यहां आगजनी में संशयधारी पक्ष एवम् पीड़ित ६० वर्षीय बुजुर्ग सुर्यनारायण शुक्ल को मामले की रिपोर्ट लिखवाने थाने पर पहुंचने के लिए कहा गया। ऐसे में पीड़ित परिवार तो थाने पर पहुंच गया लेकिन पीड़ित परिवार द्वारा आरोपित उसी गांव के निवासी संशयधारी राहुल ,विंध्यावासनी, जलनी व संतोष थाने पर नहीं पहुंचे। आखिरकार २ बजे से ५ बजे तक पीड़ित बुजुर्ग बैठे रहे लेकिन ज्ञानपुर थाना ने उनकी शिकायत दर्ज नहीं की और ना ही शिकायत पत्र ही लिया। आखिरकार थकहार पीड़ित बुजुर्ग मुंबई रहने वाले बेटे की हिदायत पर ५ बजे पुलिस अधीक्षक से न्याय की गुहार लगाने उनके कार्यालय पहुंचे लेकिन वहां वे नहीं थे इसलिए उनसे मुलाकात नहीं हो पाई।

थाना प्रभारी का प्राईवेट ‘पैगामीलाल’.!

दूसरे दिन 6 तारीख को ज्ञानपुर थाना प्रभारी भैय्या छविनाथ सिंह का कोई प्राईवेट ‘पैगामीलाल’ (संभवत: थाना दरबारी) करीबन 10 से 11 बजे दिन के दौरान पीड़ित बुजुर्ग सुर्यनारायण शुक्ला के घर पैगाम लेकर पहुंचा और थानेदार साहब बुलाये हैं ऐसी सुचना दिया लेकिन पीड़ित के मुताबिक उन्होंने स्पष्ट किया कि ”कल देर शाम तक थाने पर बैठा था लेकिन शिकायत दर्ज नही हुई थी, ऐसे में वहां जाकर क्या करेंगे और थाने पर एसओ साहेब मुझसे बोले थे कि आज आकर मौके का मुआयना मैं खुद करूँगा फिर आप मुझे ऐसा क्यों बोल रहे हो..तब उन्होंने अपने मोबाइल से एसओ को फोन लगाकर से बात कराया। एसओ साहेब बोले थाने आ जाओ आज प्रतिवादी भी आ रहे है..फिर हमनें बोला साहेब आपने मुझे बोला था कि मैं स्वयं कल आकर मुआयना करूँगा”।

भड़क गये एसओ साहब..!

पीड़ित बुजुर्ग सुर्यनारायण शुक्ला बताते हैं कि “उसी मोबाइल बातचीत पर जब हमने कहा कि कल देर शाम तक आपके थाने पर ही बैठा ही था तो इस पर एसओ साहेब भड़कते हुए बोले कि तुम अपने काम से आए थे यहां की मेरे काम से ? और फोन काट दिये।”

मुआयना करके बेटे को ले गये थाने..!

जब मामला ‘पैगामीलाल’ के मोबाइल पर हुई बातचीत से मामला नहीं सलटा तो पीड़ित के मुताबिक “1 घंटे बाद एसओ साहेब 4 पुलिसकर्मी लेकर मौके पर आए और मुआयना करके कुछ भी तो नही जला है अभद्र व्यवहार धमकी देते हुए सुलह समझौता करने का दबाव देने लगे और न मानने पर विपक्षी के दो लोगो थाने आने लिए बोलकर मेरे छोटे बेटे वेदप्रकाश शुक्ल को अपने साथ लेकर थाने चले गये। पुलिस को थाने पहुंचने के 15 -20 मिनट बाद आरोपी और सहयोगी अपने स्कार्पियो से थाने पर पहुंचे और पहुंचते शांति भंग के आरोप में चालान कर दिये। हमारे बेटे को बोले कि उनके स्कार्पियो में बैठकर औराई जाओ लेकिन भयभीत बेटे ने इंकार कर दिया तो पुलिसकर्मी के साथ मोटर साइकिल से भेजा गया, जहां मोटर साइकिल से साथ गये पुलिसकर्मी ने १०० रूपये पेट्रोल का भी लिया। इसके बाद जमानत लेकर वह लौटा।”

सुरक्षात्मक रक्षक या न्यायाधीश..!

इस मामले की (जमीनी हकीकत) पड़ताल में इस कलमकार द्वारा ज्ञानपुर थाना प्रभारी भैय्या छविनाथ सिंह से भी संपर्क किया गया, जहां उन्होंने मामले में विभिन्न आरोप पीड़ित परिवार पर ही मढ़ दिया और यहां तक तफ्तीश करके बता दिये कि “उसका बड़ा लड़का ट्विटर पर भदोही जनपद पुलिस को इससे पहले बहुत परेशान किया है और इसलिये इस मामले में मैने जो कर दिया वो कर दिया”..इसके साथ ही आग कैसे लगी या किसने लगाया की जांच के संदर्भ में थाना प्रभारी ने स्पष्ट कहा कि यह कोई जांच का विषय नहीं है और आग पीड़ित परिवार ने खुद लगाया है। अब सवाल यह उठता है कि दूसरे दिन दोनों पक्षों पर शांति भंग चलान करने से गुत्थी क्या सुलझ गई.? इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने यह भी दावा किया कि यह छोटी-मोटी आग लगी है और सिर्फ दरवाजा जला है…पूरा थोड़ी ना जल गया है। खैर यक्ष प्रश्न यह है कि क्या पूरा जलने के बाद ही आगजनी मानी जायेगी.? फिलहाल ऐसे आरोपित फैसले की रिकार्डिंग भी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी है, जिसे सुनने वाले बुद्धिजीवी सिर्फ यही कह रहे हैं कि वर्दीधारी थाना प्रभारी फैसला तो ऐसा सुना रहे हैं कि जैसे वे ज्ञानपुर की जनता के सुरक्षात्मक रक्षक नहीं बल्कि न्यायाधीश हों..!

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