भदोही – सोनभद्र में बालू खनन के घाट पर हुये तांडव में कई गाड़ी फूंकी, जिसके बाद भदोही सहित ३ जिले के कई पुलिसकर्मियों सहित अधिकारियों की डियुटी लगी। इसके साथ ही ‘बालू माफिया’ कौन है और वो गाड़ी किसकी है। ग्रामीणों में रोष क्यों एवम् इस मामले के राजनैतिक संबंध को लेकर शुरूआती दौर में चर्चा जोरों पर थी लेकिन उसके बाद प्रिंट मीडिया के कई अखबारों सहित ‘हमार पुर्वांचल’ ने भी विभिन्न तथ्यों को उजागर किया। खैर..’जमीनी हकीकत’ की पड़ताल में कई ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिसमें कहीं ना कहीं भाजपा सरकार की नीतियां कटघरे में नजर आ रही है।
गौरतलब है कि सोनभद्र के कोन थाना क्षेत्र अंतर्गत बरहमोरी स्थित बालू खनन के घाट पर पुन: ट्रकों की आवाजाही प्रारंभ हो गई। यहां पिछले सप्ताह तांडव के बाद कई ऐसी खबरें हवा-हवाई की तरह चली कि रहस्य गहराता चला गया। सबसे ज्यादा इस मानवता विहिन घटना के बाद सोशल मीडिया (फेसबुक एवम् व्हाटसप) पर राजनीतिक रोटियां चुटकेबाजी पोस्ट (१ लिखा, हजारों फारवर्ड) के माध्यम से सेकीं गई। बालू खनन साईट को अवैध बताकर भदोही भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह के बेटे प्रताप सिंह को ‘बालू माफिया’ घोषित किया जा रहा था लेकिन सत्य यह सामने आया कि उक्त बालू खनन साईट तो बकायदा टेंडरिंग के माध्यम से लिया गया है। यह बात अलग है कि उक्त साईट प्रताप सिंह के किसी करीबी का होने नाते संयोगवश घटना के दिन उपस्थित थे। इसके साथ ही ‘जमीनी हकीकत’ में कई अन्य सवालों पर भी रहस्यमयी पड़ताल करने की कोशिश ‘हमार पुर्वांचल’ टीम द्वारा की गई। यह भी तथ्य जानकारी योग्य है कि आगजनी की शिकार जिस गाड़ी को सांसद या उनके बेटे ‘प्रताप सिंह’ की बताई जा रही है, वह गाड़ी भले प्रताप सिंह या सांसद कभी-कभार सदुपयोग करते हों लेकिन बताया जा रहा है कि वह गाड़ी उनकी नहीं बल्कि उनके उनके संयुक्त परिवार के किसी अन्य सदस्य की थी।
बालू खनन मुख्य ठेकेदार कौन.?
सोनभद्र के बरहमोरी घाट के बालू खनन का मुख्य ठेकेदार कौन है यह समझ पाना काफी मुश्किल साबित हो रहा है क्योंकि इस ठेके में २५ से ३० सदस्यों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहभागिता है। इन्हीं में से एक सदस्य की मानें तो यह सरकारी टेंडर करीबन अनुमानित डेढ़ सौ करोड़ में पिछले वर्ष लिया गया है, जिसके आलावा प्रतिदिन सरकार को रायल्टी अथवा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष टैक्स से ५० लाख का राजस्व जाता है।
नक्सलवाद का कनेक्शन.!
इतना तो जगजाहिर है कि मिर्जापुर एवम् सोनभद्र के कई इलाके नक्सल प्रभावित हैं और यहां रंगदारी की वसूली भी जमकर होती है। ऐसे में यहां बालू साइट के एक मैनेजर सदस्य की मानें तो निरंतर महीने का ८ से ९ लाख रंगदारी माफियाओं एवम् कुछ ग्रामीण ठेकेदारों में वितरण करना पड़ता था। जिसमें से अधिकतर रजिस्टर में तो डियुटी पर दर्ज थे लेकिन खनन कार्य के बजाय सीधे महिनावरी लेने आते थे। इन रंगदारी माफियाओं में कुछ तो खुद को स्थानीय नक्सलियों का प्रमुख भी बताते थे।
नक्सलवाद की नब्ज है बालू.!
यहां घुसपैठ किये नक्सलवाद पर भले राजनीतिक वोट बैंक का सियासी संरक्षण हो लेकिन ग्रामीणों की बातों से तो लगता है कि असली नब्ज बालू है और इसी बालू के सहारे ग्रामीणों की जिंदगी चलती थी लेकिन भाजपा सरकार में हुई महंगी टेंडरिंग से जहां बालू की कीमत में इजाफा हुआ है, वहीं अब यहां से बालू मुफ्त में ट्रैक्टर से उठाकर ग्रामीण नहीं बेच पा रहे हैं। ऐसे में मजदूरी करके कुछ ग्रामीण बालू की चोरी को भी अंजाम देते थे लेकिन हटाये जाने के बाद आये दिन विभिन्न बहाने टेंडर प्राप्त कंपनी के ठेकेदारों से भिड़ंत हो ही जाती थी और उस दिन भी एक भिड़ंत हुई थी, जिसकी आड़ में अगले दिन रंगादारी माफियाओं ने नक्सलवाद को जन्म देकर एक बहुत बड़ी साजिश को अंजाम दे दिया। अब सवाल यह उठ रहा है कि यहां ‘बालू के बवाल’ की आड़ में फन फैला रहे उपद्रव एवम् नक्सलवाद की कमर भाजपा सरकार तोड़वाने में असक्षम क्यों नजर आ रही है क्योंकि इससे पहले भी सोनभद्र एवम् मिर्जापुर में कई घटनाएं घट चुकी हैं।
..जांच में सामने आयेगी सच्चाई
इस पूरे मामले पर भदोही सांसद वीरेंद्र सिंह के बेटे प्रताप सिंह से काॅल करके प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गयी, जहां अंतत: ‘हमार पुर्वांचल’ बातचीत करते हुए इस संवाददाता से उन्होंने इतना ही कहा कि “कोई गैरसरकारी या गैरकानूनी कार्य हमनें या हमारे करीबीयों ने नहीं किया है और कैसे हम लोगों की जान बची.. यह सिर्फ हमें पता है..इस वक्त मैं कुछ कहना नहीं चाहता हूँ और जांच में पूरी सच्चाई खुद ब खुद सामने आ जायेगी।”
[…] भी पढ़िये— जमीनी हकीकत (११)🔍 – यहां ‘नक्सलवाद’ को … भदोही: ब्लैक डायमंड का काला कारोबार […]