भदोही – काशी-प्रयाग मध्य (भदोही संसदीय) क्षेत्र से सांसद वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ चौतरफा घिरते नजर आ रहे हैं। इसके पीछे देवी-देवताओं का रूठना भी मुख्य कारण माना जा रहा है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि ऐसा तार्किक तथ्य एक सुप्रसिद्ध शास्त्रार्थ पीएचडी विद्वान द्वारा सिद्ध किया जा रहा है।
गौरतलब है कि काशी-प्रयाग मध्य में कुछ महीनों पूर्व स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों ने सार्वजनिक ‘सोलर लाइट’ का अपने कार्यकर्ताओं एवम् करीबीयों के लिए ऐसा सदुपयोग किया कि कई प्राचीन सार्वजनिक मंदिर में बैठे देवी-देवताओं को उक्त ‘सोलर लाइट’ का ऊँजाला नसीब ही नहीं हुआ। जनपद के अकोढ़ा, रोही, सवरपुर जैसे कई दर्जनों गांवों में इस मामले को लेकर काफ़ी जनाक्रोश है। ‘मातृभूमि संकल्प’ के युवा नेतृत्वकार सुरेंद्र पाठक (गुड्डू) की धार्मिक टीम ने इस पर जहां मुहिम छेड़ रखी है, वहीं लाखों सार्वजनिक ‘सोलर लाइट’ भदोही जनपद विकास हेतु वितरण का पुलिंदा बांधने वाले ‘सांसदजी’ ने स्वयं इस संवाददाता से विशेष पड़ताल खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए सार्वजनिक ‘सोलर लाइट’ के दुरुपयोग की बात स्वीकार की और दावा किये हैं कि कुछ सार्वजनिक मंदिरों हेतु प्रयास करके स्वयं अधिवेशन बाद भदोही जनपद लौटते ही व्यवस्था करेंगे। काशी-प्रयाग मध्य चूंकि धर्म ध्वजवाहकों नगरी है इसलिए यहां शास्त्र को भी विशेष महत्व दिया जाता है। ऐसे में ‘हमार पुर्वांचल’ पर निरंतर प्रसारित पड़ताल ‘जमीनी हकीकत’ पढ़ने के बाद शास्त्रार्थ डा. बालकृष्ण मिश्र ने इस मामले पर तटस्थ तार्किक तथ्य सिद्ध किया।
देवी-देवताओं के समर्पण आवश्यक
डा. बालकृष्ण मिश्र के शास्त्रार्थ तार्किक तथ्यों पर ध्यान दें तो मनुष्य २४ घंटे में २१६०० बार सांस लेता है। शास्त्रानुसार यह भी देवताओं को संकल्पित है। जैसे ६०० बार अराध्यदेव गणेशजी के लिए अपनी कुशलता एवम् ६००० बार ब्रम्हाजी के शरणागत मानव तन हेतु…इसी प्रकार मानव जीवन में अपनी आय एवम् सेवा सामग्री का विशिष्ट हिस्सा देवी-देवताओं के दरबार में समर्पित करना चाहिए।
..तो फिर कीर्ति समाप्त हो जाती है
डा. बालकृष्ण मिश्र ‘गरूण पुराण’ का तथ्य स्पष्ट करते हुए कहते हैं दान सामग्री कभी भी अपात्र व्यक्ति या अपात्र स्थान पर नहीं देना चाहिए। इससे उक्त दान को ‘लेने वाले’ एवम् ‘देने वाले’ दोनों पर देवी-देवताओं का प्रकोप बढ़ता है और सामाजिक-धार्मिक कीर्ति समाप्त हो जाती है।
देवी-देवताओं से क्षमा मांगना चाहिये
विभिन्न गांव के देवी-देवताओं के धाम में अंधेरा संदर्भ पर श्री मिश्र कहते हैं कि एक गांव में महाप्रसाद भंडारा करने से दूसरे गांव का पेट नहीं भर जाता है। इसी तरह भले ही अन्य क्षेत्र में देव स्थानों पर लाखों का कार्य समर्पण हुआ हो लेकिन जिस क्षेत्र में भदोही विकास हेतु दान में मिले सार्वजनिक ‘सोलर लाइट’ का समर्पण नहीं हो पाया हो वहां ‘सांसदजी’ को उपस्थिति दर्ज करवाकर क्षमा याचना मांग लेने से या यथोचित सामग्री समर्पण से रूठे देवी-देवताओं को मनाया जा सकता है। फिलहाल यदि स्थानीय क्षेत्रों के देवी-देवता रूठे हैं तो राजनैतिक आस्तित्व का खतरे में पड़ने जाना भी लाजिमी है।
पुश्तैनी विद्वान हैं डा. बालकृष्ण मिश्र
काशी-प्रयाग मध्य (भदोही जनपद) के दुर्गागंज स्थित कुढ़वा-नोनारी के पुश्तैनी वासी डा. बालकृष्ण मिश्र भूतपूर्व आचार्य पं. लालमणि मिश्र के पौत्र हैं। इन्होंने विद्या वारिधि (पीएचडी) काशी से करने के बाद मुंबई कर्मस्थली से सुप्रसिद्ध विद्वानों में राष्ट्रीय ख्याति की है। ‘ज्योतिषाचार्य’ एवम् ‘काल सर्प योग’ के चर्चित विशेषज्ञों में से एक हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इनके द्वारा संपादित ‘काल दर्पण’ कलेंडर लाखों की संख्या बिकता है एवम् वितरण होता है। इसके साथ ही शिवसेना के मुखपत्र हिंदी ‘सामना’ सहित कई राष्ट्रीय मीडिया पर शास्त्र संदर्भ इनका बतौर स्तंभकार निरंतर प्रकाशित होता है।
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