मुंबई। जोगेश्वरी (पूर्व) स्थित पंकज क्लासेस में युग प्रवर्तक साहित्य संस्थान, मुम्बई का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. शोभनाथ यादव ने की व संयोजक दिनेश बैसवारी जी के संचालन में काव्यसंध्या का आगाज़ हुआ। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीहरि वाणी और श्रीमती रेखा पांडे उन्नाव (बैसवारा) को सम्मानित किया गया।
अन्य कविता पाठ करने वाले कवियों में रमेश श्रीवास्तव, जवाहरलाल निर्झर, महेश गुप्ता जौनपुरी, रुस्तम घायल, अजय बनारसी, घायल कानपुरी, जाकिर रहबर, अभय चौरसिया, अवधेश विश्वकर्मा ‘नमन’, विष्णु गुप्ता, राजेश मंथन, दीपक खेर, रेखा पांडे, डा. वर्षा सिंह, कुसुम तिवारी, श्रीहरि वाणी, गुलशन मदान, राजनाथ यादव, श्याम अचल प्रियात्मिया, इंदु मिश्र व सुमन तिवारी आदि थे। अस्वस्थता के कारण महावीर नेवटियाजी कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थे। उक्त गोष्ठी में कवियों ने अपनी रचनाओं से सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया जो कुछ इस तरह हैं-
कविवर अजय बनारसी की रचना सभी को आनंदित कर दिया-
गुमनामी का डर,बहुत सताता है।
जो ख़ुद को,नामचीन बताता हैं।।
जायज़ हैं उसका डरना भी यारों।
मासूमों का जो नाम खा जाता है।।
तबियत कभी कभी बीमार होती।
अपनों के शिकार को इलाज़ बताता हैं।।
ये आदत उसकी उसी दिन से हैं।
जब से वो अंधेरे को दिया दिखाता हैं।।
भूलता है कुछ रहेगा नही जब जाएगा।
फिर भी झूठा सिकन्दर सा इठलाता हैं।।
ये कुछ नही अहम है सभी का देख लो।
जो हमे हमसे कोसो दूर ले जाता हैं।।
गुमनामी का डर,बहुत सताता हैं।
जो ख़ुद को,नामचीन बताता हैं।।
माँ पर सुन्दर कविता सुनाते हुए कवि महेश गुप्ता जौनपुरी कहते हैं-
माँ जीवन हैं परिभाषा हैं,
बच्चो की भाग्य विधाता हैं।
माँ हैं जीवन में अमृत,
माँ हैं तुलसी घर के ऑगन की।
माँ दुनिया में सबसे प्यारी हैं,
माँ बच्चो को सबसे न्यारी हैं।
माँ पीपल की ठण्डी छॉव हैं,
माँ बच्चो के लिए बागवान हैं।
माँ तीनो लोक में महान हैं,
माँ सर्दी गर्मी छॉव हैं।
माँ अधरो की मुस्कान हैं,
माँ छोटे से नन्हे की आसमान हैं।
माँ से ही जग का आधार हैं,
माँ से ही दिव्य संसार हैं।
माँ नन्हे से परिन्दे की जान हैं,
माँ जीवन में सबसे महान हैं।
माँ अचल पुण्य अभिलाषी हैं,
माँ पूजा की दिव्य थाली हैं।
माँ नमन चरण की वन्दन हैं,
माँ केशर तिलक चन्दन हैं।
माँ ममता की वह मूरत हैं,
माँ नाम बड़ा खूबसूरत हैं।
माँ दुःख की हरणी हैं,
माँ जग की कल्याणी हैं।
माँ नाम तेरा निराला हैं,
माँ तेरे बिना जग अकेला हैं।
माँ दुआ की तू खजाना हैं,
माँ चरणों में तेरे रहना हैं।
माँ मैं हूँ तेरा कर्जदार,
माँ मैं तेरा बनू फर्जदार।
माँ परम पुण्य आत्मा हैं,
माँ जीवन की गाथा हैं।
माँ शीश हैं आशीष हैं,
माँ बच्चो की हरती क्लेश हैं।
माँ इतिहास हैं भूगोल हैं,
माँ दुनिया में ही गोल हैं।
माँ दुखद घड़ी की अमृत हैं,
माँ से जीवन हर्षित हैं।
माँ से ना कोई बलवान हैं,
माँ से ना कोई पहलवान।
माँ संसार की सुन्दर माया हैं,
माँ प्यार की सुन्दर काया हैं।
माँ की छवि निराली हैं ,
माँ बगिया कि हरियाली हैं।
माँ के प्यार में जादू हैं,
माँ के लफ्जो से गंगा बहती हैं।
माँ पानी की वह धारा हैं,
माँ जीवन मजधारी हैं।
माँ गंगा और काशी हैं,
माँ नन्हे परिन्दे की दासी हैं।
माँ सत्य की पहचान हैं,
माँ देश मे महान हैं।
माँ वेद है पुराण हैं,
माँ त्याग की देवी हैं।
माँ नाम बड़ा सौभाग्यशाली हैं,
माँं जिसके पास हैं भाग्यशाली हैं।।
कविवर अवधेश विश्वकर्मा “नमन” जी ने भी बहुत सुन्दर रचना पढकर वाहवाही लूटी-
इस जिंदगी की सीढ़ी कोई चढ़ नहीं सका।
ऐसी किताब है ये कोई पढ़ नहीं सका।।
बीता है व्यर्थ जीवन मंदिर बनाने मे,
हृदय मे प्रेम मंदिर कोई गढ़ नहीं सका।।
वरिष्ठ कवि माननीय दिनेश बैसवारी जी थोडे में बहुत कुछ कह गये-
सब लाज के घूंघट छूट गये,
बिन दामन के फिरती गृह बाला।।
इसी तरह सभी कवियों की रचनाएँ सराहनीय रही और सभी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंत में आयोजक बैसवारी जी ने आये हुए सभी अतिथियों एवं साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और काव्यसंध्या का समापन किया।