देवाधिदेव महादेव आदि गुरु हैं। जिनसे योगिक परंपरा की शुरुआत हुई। इसलिए भगवान शिव जी ही प्रथम गुरु अवतार मे हैं। फागुन महीने के कृष्ण पक्ष की तिथि चतुर्दशी के दिन देवाधिदेव महादेव के विवाह के रूप में मनाए जाने वाला यह महापर्व शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। मान्यता हैं भारतवर्ष मे तैंतीस कोटि देवता हैं जिसमें भगवान महादेव जी की पूजा सबसे सरल और मोक्षदायी बतायी गयी हैं। शिव को पूजने वालो में शैव संप्रदाय प्रमुख हैं। ईशान संहिता के अनुसार इसी तिथि की रात्रि में आदिदेव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्य के समान तेज स्वरूप वाले लिंग रूप (अग्नि लिंग) में प्रकट हुए थे।
हिंदू पंचांग के अनुसार साल भर में( कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) 12 शिवरात्रि होती हैं जिनमें से फागुन मास की शिवरात्रि महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है। फागुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर चंद्रमा और सूर्य अत्यंत निकट होते हैं जिसे योग मिलन के नाम से लोग जानते है। इस योग मिलन को जीव से शिव का मिलन भी माना जाता हैं। बताया जाता हैं वर्ष की सबसे काली रात्रि में ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी होती है जो मानव जीवन सांसारिक अथवा आध्यात्मिक दोनों के लिए सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं। यही कारण है की इस रात्रि मे साधु संतो से लेकर साधारण गृहस्थ भी अपना ध्यान शिव चरणों मे इसी दिन विशेष रुप से लगाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन सृष्टि का आरंभ भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।शिव पार्वती के विवाह की रात्रि शिवरात्रि भारत ही नहीं बल्कि देश के हर कोने मे उत्साह से मनाया जाने वाला महापर्व हैं। भगवान शिव की अर्चना पूजा तो रोज ही होती हैं। हर दिन हर,हर महादेव का हैं। पर सोमवार का दिन शिव की उपासना के लिए उत्तम माना गया हैं।
सभी ज्योर्तिलिंग मे महाशिवरात्रि तो बहुत धूमधाम से मनाते ही हैं। लेकिननगर,नगर हर गली मे महाशिवरात्रि की धूम रहती हैं। सुबह से स्नानादि करके शिवलिंग का जलाभिषेक, अथवा दुग्धाभिषेक से प्रारंभ शिव पूजन मे पुष्प विल्बपत्र ,धतूर ,गन्ना और बेर जैसे फलो का उपयोग कर भक्त अपने आराध्य को प्रसन्न करते हैं। भगवान शिव जी बहुत शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है। इनकी भक्ति और दानशीलता की बहुत ही कहानियाँ हैं।
लंकापति रावण को सोने की लंका दान में देने वाले बाबा भोले भंडारी ही है। समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को लेकर दोनो पक्षो (सुर-असुर) में हाहाकार मच गया तो, ऐसे में देवाधिदेव महादेव जी ने ही उनकी समस्या के समाधान हेतू विषपान कर लिया। भष्मासुर को वरदान देकर स्वयं को मुसीबत मे भी डालने वाले एकमात्र शिव ही हैं , क्रोध में शिव तांडव से देवताओं मे त्राहि, त्राहि सहित कामदेव और दक्ष प्रजापति का अस्तित्व ही समाप्त कर डाले थे। पुनः देवताओं के संतुति पर दक्ष प्रजापति को अज का सिर जोड़कर पुनर्जीवित और काम देव को शरीर द्वापरयुग मे भगवान श्री कृष्ण के घर जन्म लेने पर प्राप्त हुआ।
शिवपुराण की कोटिरूद्रसंहिता मे बताया गया हैं की शिवरात्रि का व्रत रखने से मनुष्य को मोक्ष और भोग दोनो का फल मिलता हैं। ब्रह्मा जी विष्णु और स्वयं माँ पार्वती के पूछने पर देवाधिदेव ने बताया की मोक्ष प्राप्ति के लिए चार संकल्प है जिसे अपने जीवन मे उतारकर मनुज स्वयं के मोक्ष का अनुगामी बन जाता हैं। ऐ चार सतातनी संकल्प हैं शिव पूजा व रूद्रमंत्र का जाप, शिव मंदिर में उपसना एवं काशी मे देहत्याग इसमें भी महाशिवरात्रि का उपवास का विशेष महत्व हैं।इसलिए महाशिवरात्रि व्रत एवं उपवास रखना चाहिए…i