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‘ करूणानिधि’ – दक्षिण भारत की राजनीती में एक युग का अंत

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3 जून 1924 को ब्रिटिश भारत में ( अब आजाद भारत ) के नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में दक्षिणमूर्ति के रूप में एम. करुणानिधि का जन्म मुत्तुवेल और अंजुगम (माता पिता ) के यहां  हुआ था। वे इसाई वेल्लालर समुदाय से संबंध रखते हैं। बचपन में वाद्य यन्त्र बजने का शौक था लेकिन जिस गुरु के यहाँ सीखने जाते थे वो वाद्य यन्त्र न सीखा कर करूणानिधि के अन्दर जातिवाद का पाठ पढ़ा दिया।  उन दिनों दक्षिण में पेरियार और अन्नादुरै की राजनीती में धमक थी और चल भी रही थी।   करूणानिधि ने सी एन अन्नादुराई को अपना  राजनैतिक गुरु बनाया और वैचारिक आदर्श ‘पेरियार’ से विरासत में मिली।

करूणानिधि १९२४ को जिस घर में पैदा हुए वो आज म्यूजियम में बदल चूका है।  जहा पर उनकी पॉप से लेकर इंदिरा गाँधी की तस्वीरें लगी हुई हैं।  आपको बटन चाहूंगा की तमिलनाडु में तस्वीरों की राजनीती बहुत चलती है।

करूणानिधि का परिवार  आर्थिक रूप से गरीब था, लेकिन करूणानिधि एक उत्साही बालक थे जिसे  सिखने का शौक था।  करूणानिधि ने १४ साल के उम्र में ही ‘ हिंदी हटाओ आंदोलन ‘ से राजनैतिक प्रतिरोध में प्रवेश कर लिया था।  हिंदी के विरुध्द में पेरियार के विचारधारा से प्रभावित होकर १९३७ में तरुण युवा विरोध कर सड़को पर आ गए तो करूणानिधि भी उनमे से एक थे।  उस समय हिंदी भाषा सभी जगह अनिवार्य हो गयी थी।  तब करूणानिधि ने कलम को अपना हथियार बनाया और लिखना शुरू कर दिया। नाटक, पर्चे, अखबार, भाषण उनके हथियार बन गए।

कोयम्बटूर में रहकर वो नाटक और फिल्मो की स्क्रिप्ट लिखा करते थे। अपने बेबाक अंदाज की वजह से वो उन दिनों पेरियार और अन्नादुराइ की नजर में आ गए और उन्होने करूणानिधि को अपने पार्टी की पत्रिका ‘कुदियारासु’ का संपादक बना दिया।  १९४७ में पेरियार और अन्नादुराई में कुछ राजनैतिक मतभेद हुए और १९४९ में दोनों के रस्ते अलग हो गए उसी समय नयी पार्टी ‘द्रविड़ मुनेत्र कझगम’ (DMK) का गठन हुआ। १९४९ में जब भारत आजाद हुआ तब पेरियार और अन्नादुराई के रस्ते अलग हुए और अन्नादुराइ मुख्यधारा राजनीती में चले गए और करूणानिधि भी अन्नादुराई के साथ चल दिए।

नयी पार्टी के नए सिपहसालार करूणानिधि बने और उन्हें कोषाद्यक्ष बनाया गया। तभी उनका रुझान फिल्मो की तरफ हुआ क्योंकि पार्टी फण्ड की जिम्मेदारी भी करूणानिधि पर ही थी।  उसी समय १९५२ में करूणानिधि ने एक फिल्म ‘पराशक्ति ’ की कहानी लिखी जो गरीब तमिल नायक पर आधारित थी,  जिसमे उत्तरभारत का पूंजीपति साहूकारों का अधिपत्य और ब्राह्मणो का अत्याचार जो गरीबों को सहना पड़ा ये दिखाया गया। अंत में फिल्म द्रविड़ अस्मिता को छू लेती है , इसी विचार से उनकी पार्टी बानी थी। ‘पराशक्ति’ तमिल सिनेमा जगत के लिए मिल का पत्थर साबित हुई, क्योंकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने

तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस. एस. राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया।

रिलीज से पहले इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था बाद में रिलीज हो गयी। करूणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक स्क्रिप्ट रायटर के रूप में अपने करियर की शुरुवात की जो बाद में उनकी पहचान बन गयी। उन्होंने अपनी बुद्धि, भाषण कौशल और लेखन शैली का इस्तेमाल कर बहुत जल्दी एक राजनेता बन गए। वे द्रविड़ आंदोलन से भी जुड़े थे। करुणनिधि समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का बखूबि इस्तेमाल  किया, जिससे उन्हें लाभ भी हुआ। पराशक्ति एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई, लेकिन इसकी रिलीज विवादों से घिरी थी, रूढ़िवादी हिन्दुओं ने इस फिल्म का विरोध किया क्योंकि इस फिल्म में  ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी।

ऐसी ही करूणानिधि की दो अन्य फ़िल्में पनाम और थंगारथनम बनाई थीं। इन फिल्मों में विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता हटाना या उखड फेकना, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी को समाप्त करना और धार्मिक पाखंड को समाप्त करना जैसे विषय शामिल थे। जिस तरह से उनकी सामाजिक संदेशों को देने वाली  फिल्मे और नाटक लोकप्रिय होते गए, उसी तरह उन्हें सेंसशिप का सामना करना पड़ा, 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया।

करूणानिधि ने हिंदी का जमकर विरोध किया यहाँ तक की उस समय डालमियापुरम ( त्रिची से ४० की. मि. दूर तिरूचितापल्ली )  इस औद्योगिक नगर को उस समय उत्तर भारत के एक शक्तिशाली मुग़ल के नाम पर डालमियापुरम कहा जाता था। करूणानिधि और उनके साथियो ने स्टेशन का नाम जो की हिंदी में था उसे मिटा दिया और रेल की पटरियों पर लेट गए। इस विरोध प्रदर्शन में करूणानिधि को जेल हुई जिसमे २ लोगो की मृत्यु भी हुई।

करूणानिधि १९५७ में पहली बार  तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा सीट से  तमिलनाडु विधानसभा के लिए ली चुने गए। करूणानिधि १९६१ में डीएमके के कोषाध्यक्ष बने और राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता १९६२ में बने, जब डीएमके १९६७ में सत्ता में आयी तो उन्हें सार्वजनिक कार्य मंत्री बनाया गया। यही से राजनैतिक महत्वकांक्षा ने उड़न भरी जो पहले से ही दबी थी। करूणानिधि को १९६९ में मुख्यमंत्री बना  दिया गया क्योंकि उस समय के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK प्रमुख अन्नादुराई की मौत हो गयी। तदुपरांत वो पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हुए पहली बार १९६९ से १९७१  (विधानसभा चुनाव १९६७ ), दूसरीबार १९७१ से १९७६ तक (विधानसभा चुनाव १९७१ ), तीसरी बार १९८९ से १९९१ तक (विधानसभा चुनाव १९८९), चौथी बार १९९६ से २००१ तक (विधानसभा चुनाव १९९६) और पांचवी बार २००६ से २०११ (विधानसभा चुनाव २००६)।

अपने राजनैतिक जीवन में करूणानिधि काफी विवादित रहे हैं। उनका और जे. जयललिता का झगड़ा जग जाहिर हैं। ‘कहते है की जो दिखता है वही बिकता है’ और ये सत्यार्थ भी हुआ एक ज़माने में जिगरी दोस्त रहे एमजीआर और करूणानिधि बाद में राजनैतिक शत्रु हो गए। बात १९७१ की है जब करूणानिधि सत्ता में दूसरी बार आये और वे मुख्यमंत्री भी बन गए उसी समय करूणानिधि ( जो एक फिल्म लेखक भी थे ) ने फ़िल्मी हीरो एमजीआर को दक्षिण की राजनीती में उतरा (दक्षिण की राजनीती में दक्षिण फिल्मो का हीरो) और ऍम जी रामचंद्रन उनके नए साथी बन गए।  लेकिन ये साथ ज्यादा समय न चल सका और दोनों के रस्ते अलग हो गए, एमजीआर ने अन्नाडीएमके (AIDMK)  नाम से नयी पार्टी बना ली।

जब १९७७ विधानसभा चुनाव हुए तो दोनों आमने सामने थे।  एक तरफ लेखक जो की फिल्मो का स्क्रिप्ट राईटर था और दूसरी तरफ सिनेमाई परदे १७ ऍम ऍम परदे पर दिखने वाला हीरो, मुकाबला पूरी तरह फ़िल्मी था। उस चुनाव में एमजीआर की पार्टी ने करूणानिधि की पार्टी को धूल चटा दी और सत्तामे AIDMK आ गयी।

आपको बताना चाहूंगा की जब तक एमजीआर रहे करूणानिधि की पार्टी दुबारा सत्ता में नहीं आयी तथा सत्ता से बहार रही थी और हर चुनाव में हीरो ही जीतता था। कुछ समय ऐसे ही चला करीब १० साल तक, एमजीआर की मृत्यु १९८७ में हो गयी और तमिलनाडु विधानसभा और AIDMK  में सत्ता की जंग छिड़ गयी। जहाँ सत्ता की दावेदार एमजीआर की पत्नी जानकी थी वही दूसरी और  पार्टी की युवा व् तेजतर्रार युवा नेता जे जयललिता थी। मौके की तलाश में बैठे करूणानिधि ने यही सही समय समय समझा अपनी खोई हुई राजनैतिक ताकत और सत्ता हांसिल करने की।

जब जयललिता अपना दावा पेश कर रही थी, तभी करूणानिधि दावा कर रहे थे और करूणानिधि ने एक बार फिर से जातिवाद का कार्ड खेला की एक ब्राह्मण नेत्री जयललिता कैसे आ सकती है। लेकिन ब्राह्मण जयललिता को कमजोर आंकने की गलती करूणानिधि कर गए जो उनकी सबसे बड़ी राजनैतिक भूल थी। वो भूल गए की राजनीती में कुछ भी असंभव नहीं है, एंटी ब्राह्मण कार्ड खेल चुके करूणानिधि ये भूल गए की जयललिता एक नारी थी और जो गरीब तबके से आयी थी और जयललिता ने इन्ही दोनों को अपनी ताकत बनायीं।

” महाभारत में जब द्रोपती का चिर हरण हुआ था तब ये अपने आप में  एक शर्मनाक घटना मानी गयी और उसी द्रोपतीको श्रीकृष्ण ने बचाया ” ठीक ऐसी ही घटना १९८९ में तमिलनाडु विधानसभा में हुई जब भरी विधानसभा में जयललिता की साड़ी खींची गयी , ये एक शर्मशार कर देने वाली घटना थी।

उस समय DMK को तमिलनाडु के राजनीती में बहुत बड़ा धक्का लग गया और १९९१ के विधानसभा चुनाव जहाँ में जयललिता पूर्ण बहुमत में आयी वहीं  करूणानिधि की पार्टी इकाई के अकड़े पर सिमट के रहा गयी। ये जयललिता का प्रतिशोध था और वो एक बड़े नेता के रूप में उभर गयी।  और इस अपमान का बदला भी जयललिता ने करूणानिधि से लिया ।

एक वो नब्बे के दशक का वो दिन और आज का दिन तमिलनाडु में हर पांच साल में सत्ता का परिवर्तन देखा गया कभी जयललिता की पार्टी सत्तारूढ़ तो कभी करूणानिधि की पार्टी सत्तारूढ़ हुई। बदले की राजनीती भी देखि गयी और एक दूसरे पर घटिया राजनीती की गयी जिससे तमिलनाडु की राजनीती का स्तर गिरते गया।  इस समय तमिलनाडु में डंक सत्ता में है।

दोनों पार्टियों का केंद्र में दखल है, वर्त्तमान में तो भाजपा पूर्ण बहुमत में केंद्र में है नहीं तो बीते कई दशकों में इन दोनों पार्टियों ने केंद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

“लोग कहते हैं कि सत्रह लाख साल पहले एक आदमी हुआ था. उसका नाम राम था. उसके बनाए पुल (रामसेतु) को हाथ ना लगायें. कौन था ये राम? किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट हुआ था? कहां है इसका सबूत?” – एम करुणानिधि, सितंबर 2007

करूणानिधि नास्तिक थे और वो मूर्ति पूजा व् भगवन की पूजा में विश्वाश नहीं रखते थे।  लेकिन उसी करूणानिधि को तमिलनाडु की जनता भगवान की तरह पूजने लगी। सत्ता के अहंकार में तथा अपनी बेबाक भाषण बी अंदाज जिसके लिए वो जाने जाते थे , उसी अंदाज में २००७ में करूणानिधि ने एक बयान दिया जो की भगवान राम के खिलाफ था और जिसके वजह से केंद्र की राजनीती में भूचाल आ गया। जिस देश में राम के नाम पे चुनाव लड़ा जाता है सरकार बनती और बिगड़ती है उसी देश के एक राज्य तमिलनाडु में करुणंनिधि के इस बयान से हिन्दुओ और भाजपा के तन बदन में आग लग गयी।

तमिल साहित्य में करूणानिधि के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है और उनका बहुत ही मत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कई कविताएं, चिट्ठियां, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने लिखे हैं।
यही कारन था की करूणानिधि के समर्थक उन्हें कलाईनार (तमिल: கலைஞர், “कला का विद्वान”) कहकर बुलाते हैं।

एक लेखक, एक स्क्रिप्ट राईटर, जो एक पत्रिका का संपादक बना और बाद में तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज होकर मुख्यमंत्री बना और अपनी हर राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूर्ण करके केंद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उस राजनैतिक शक्शियत का नाम “ऍम करूणानिधि” था। ९४ साल के करूणानिधि ने आज ७ अगस्त २०१८ को करूणानिधि ने देह त्याग दिया जिससे तमिलनाडु  की जनता शोक में है।

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