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लॉक डाउन : खुद को खोजने का अवसर

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मुंबई : डाॅक्टर दिनेश गुप्ता आनंदश्री का मत है कि “लॉक डाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया गया है यानी और एक मौका है सभी को अपने आप को जानने का।”
यह एक बड़ा त्योहार बन सकता है अपने आप से साक्षात्कार का, अपने बोध को प्राप्त करने का।वही बोध जिसने सिद्धार्थ को भगवन बुद्ध बना दिया। आप भी अपने अपने बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते है।

ओशो कहते है कि एकांत अज्ञानी के लिए सजा है तो समझदार के लिए स्वर्ग की राह हो सकती है।

एकांत में होना, मौन में होना एक हो सिक्के के दो पहलू है। भ्रम से को तोड़ना अपने आप को जानना यही मकसद के साथ हम इस लॉक डॉउन की सफल यात्रा बना सकते है।

भीड़ से अलग होकर, कुछ अलग हम अपनी यात्रा करते हुए इस यात्रा को महा यात्रा बना सकते है।

ध्यान को लॉक डॉउन का हथियार बनाये।
सात्विक भोजन के साथ साथ हैम आज साधारण जीवन जी रहे है। अब हमें ध्यान पर ध्यान करते हुए आगे बढ़ना है। दिन भर में आधे घंटे भी ध्यान करते हुए दिन भर में हम ध्यान की मुद्रा में रह सकते है।

साक्षी भाव का अभ्यास करते हुए हम दिन भर साक्षी भाव मे राह सकते है।
क्या है साक्षी भाव-

एकाग्रता शक्ति को उपलब्ध करने की विधि है। साक्षी— भाव शांति को उपलब्ध करने की विधि है। शक्ति उपलब्ध करने से जरूरी नहीं है कि शांति उपलब्ध हो। लेकिन शांति उपलब्ध करने से शक्ति अनिवार्यरूपेण उपलब्ध हो जाती है।
बचपन मे कोई था, बड़े होने पर भी वह है, वही है, उसी को जानना , उसी को साक्षी से देखना साक्षी भाव है।

जो व्यक्ति शक्ति की खोज में हैं, उनका रस एकाग्रता में होगा। जैसे सूरज की किरणें इकट्ठी हो जाएं, तो अग्नि पैदा हो जाती है। वैसे ही मन के सारे विचार इकट्ठे हो जाएं, तो शक्ति पैदा हो जाती है। थोड़े से प्रयोग करें, तो समझ में आ सकेगा।
जब भी मन एकजुट हो जाता है, तब आपके जीवन की पूरी ऊर्जा एक दिशा में बहने लगती है। और जितना संकीर्ण प्रवाह हो, उतनी ही शक्तिशाली हो जाती है। जितने विचार बिखरे हों, ऊर्जा उतने अनेक मार्गों से बहती है; तब क्षुद्र शक्ति हाथ में रह जाती है। जिस विचार के प्रति भी आप एकाग्र हो जाते हैं, वह विचार शीघ्र ही यथार्थ में परिणत हो जाएगा। जिस विचार में मन डांवाडोल होता है, उसके यथार्थ में परिणत होने की कोई संभावना नहीं है।
एकाग्रता तो सांसारिक मनुष्य भी चाहता है। और सांसारिक मनुष्य को भी अगर कहीं सफलता मिलती है, तो एकाग्रता के कारण ही मिलती है। वैज्ञानिक भी एकाग्रता के माध्यम से ही खोज कर पाता है। संगीतज्ञ भी एकाग्रता के माध्यम से ही संगीत की गहरी कुशलता को उपलब्ध होता है। लेकिन साक्षी— भाव में केवल धार्मिक व्यक्ति उत्सुक होता है।

ओशो कहते है-
” सांसारिक व्यक्ति की साक्षी— भाव में कोई भी उत्सुकता नहीं होती। और अगर साक्षी— भाव उसे कहीं रास्ते पर पड़ा हुआ भी मिल जाए, तो भी वह उसे चुनना पसंद न करेगा। क्योंकि साक्षी— भाव का परिणाम शांति है। और साक्षी— भाव का परिणाम शून्य हो जाना है। साक्षी— भाव का परिणाम मिट जाना है। वह महामृत्यु जैसा है। एकाग्रता से तो आपका ही मन मजबूत होता है और अहंकार प्रबल होगा। साक्षी— भाव से मन शांत होता है, समाप्त होता है, अंततः मिट जाता है और अहंकार विलीन हो जाता है। साक्षी— भाव मन के पीछे छिपी आत्मा की अनुभूति है। और एकाग्रता मन की ही बिखरी शक्तियों को इकट्ठा कर लेना है।”

आज के इस लॉक डाउन में एकाग्रता को उपलब्ध व्यक्ति जरूरी नहीं है कि धार्मिक हो जाए। लेकिन साक्षी— भाव को उपलब्ध व्यक्ति अनिवार्यरूपेण धार्मिक हो जाता है। इस मौके का लाभ ले।
एकाग्रता परमात्मा तक नहीं ले जाएगी। और अगर आप परमात्मा की खोज एकाग्रता के माध्यम से कर रहे हों, तो एक न एक दिन आपको एकाग्रता भी छोड़ देनी पड़ेगी। क्योंकि परमात्मा तभी मिलता है, जब आप ही बचे। लॉक डाउन में अपने आप को बचा कर रखे।

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