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विस्तार से जानिये क्यों दिल्ली में आन्दोलनरत हैं किसान और क्या है खेती के लिये बना कानून

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दिल्ली में आंदोलनरत किसान। फोटो: साभार गूगल

लगभग दो महीने पहले खेती से जुड़े तीन कानूनों को लेकर किसान दिल्ली में बवाल काट रहे हैं। आज मंगलवार को किसानों के प्रदर्शन को देखते हुये दिल्ली में सरकार की बैठक भी चल रही है। आज ही तीन बजे सरकार किसानों से विधेयक को लेकर वार्ता भी करेगी। लाखों के संख्या में किसान दिल्ली के आसपास जुटे हुये हैं जिसके कारण सरकार भी सांसत हैं।
आखिर क्यों किसान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुये हैं? वह तीन कानून कोन से हैं जिसे लेकर किसान आन्दोलनरत हैं और इस कानून को काला कानून बताया जा रहा है।

बता दें कि इस किसान आंदोलन में मुख्यत: पंजाब हरियाण और यूपी के किसान शामिल हैं। मध्यप्रदेश के किसान भी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर के नेतृत्व में दिल्ली की ओर कूच किये थे किन्तु मेध पाटेकर को आगरा में गिरफ्तार करके किसानों को रोक दिया गया। बताया जा रहा है कि किसान आंदोलन को देशभर में लगभग 500 किसान संगठनों का समर्थन है।

गौरतलब हो कि मोदी सरकार पिछले सत्र में खेती से जुड़े तीन कानून लेकर आयी थी। जिसमें

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020

यह तीनों कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो भी चुके हैं और कानून बन चुके हैं। आन्दोलनरत किसानों का कहना है कि यह तीनों कानून किसानों की कब्र खोदने के लिये बनाये गये हैं और इन्हीं कानूनों को वापस लेने के लिये किसान आंदोलन कर रहे हैं।

जबकि सरकार का दोवा है कि यह कानून आजादी के बाद किसानों को एक नई आजादी देने वाला कानून है और इसका पारित होना ही एक ऐतिहासिक फैसला है। सरकार इन कानूनों को वापस लेने के मूड में दिखायी नहीं दे रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का फायदा नहीं मिलने की बात गलत है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इन कानूनों को महत्वपूर्ण, क्रांतिकारी और किसानों के लिए फायदेमंद बताया था।
जबकि एनडीए सरकार में सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल ने इन कानूनों को लेकर चिंता जताई और 22 साल बाद एनडीए से अलग हो गयी। वहीं अकाली दल से सांसद और कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने इन कानूनों के विरोध में मंत्री पद से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

विस्तृत रूप से जानिये क्या हैं वो तीन कानून?

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है, जहां किसानों और कारोबारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च कम करने की बात भी इस कानून में है।

किसानों को डरः MSP का सिस्टम खत्म हो जाएगा। किसान अगर मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां खत्म हो जाएंगी। ई-नाम जैसे सरकारी पोर्टल का क्या होगा?
सरकार का बचावः MSP पहले की तरह जारी रहेगी। मंडियां खत्म नहीं होंगी, बल्कि वहां भी पहले की तरह ही कारोबार होता रहेगा। नई व्यवस्था से किसानों को मंडी के साथ-साथ दूसरी जगहों पर भी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा। मंडियों में ई-नाम ट्रेडिंग जारी रहेगी।

2. कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
इस कानून में कृषि करारों (एग्रीकल्चर एग्रीमेंट) पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, प्रोसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता है। इसके साथ किसानों को क्वालिटी वाले बीज की आपूर्ति करना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात इस कानून में है।

किसानों को डरः कॉन्ट्रैक्ट या एग्रीमेंट करने से किसानों का पक्ष कमजोर होगा। वो कीमत तय नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान कैसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करेंगे? विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को फायदा होगा।
सरकार का बचावः कॉन्ट्रैक्ट करना है या नहीं, इसमें किसान को पूरी आजादी रहेगी। वो अपनी इच्छा से दाम तय कर फसल बेच सकेंगे। देश में 10 हजार फार्मर्स प्रोड्यूसर ग्रुप्स (FPO) बन रहे हैं। ये FPO छोटे किसानों को जोड़कर फसल को बाजार में सही कीमत दिलाने का काम करेंगे। विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी जाने की जरूरत नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद निपटाया जाएगा।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। सरकार के मुताबिक, इससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिल सकेगी, क्योंकि बाजार में कॉम्पिटीशन बढ़ेगा।

किसानों को डरः बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेगी। इससे कालाबाजारी बढ़ सकती है।
सरकार का बचावः किसान की फसल खराब होने की आंशका दूर होगी। वह आलू-प्याज जैसी फसलें बेफिक्र होकर उगा सकेगा। एक सीमा से ज्यादा कीमतें बढ़ने पर सरकार के पास उस पर काबू करने की शक्तियां तो रहेंगी ही। इंस्पेक्टर राज खत्म होगा और भ्रष्टाचार भी

फिलहाल किसानों के आंदोलन को देखते हुये सरकार भी घबराई है। दिल्ली में सरकारी तंत्र की हाईटेक बैठक चल रही है और तीन बजे सरकार के प्रतिनिधि आन्दोलनकारियों से बात करने वाली है। देखना यह है कि क्या सरकार कानून में फेरबदल करती है या फिर आन्दोलनकारियों को संतुष्ट कर आन्दोलन खत्म कराती है।

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