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कोरोना भूख और लॉकडाऊन : गरीबो पर क्यों फूट रहा सरकार की नाकामियों का ठीकरा

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भदोही । मंगलवार को मुंबई के बाद दिल्ली में मजदूरों की भीड़ यमुना के पास जमा हो गई । लोग अपने घर जाने के लिए बेताब दिखाई दे रहे थे । अब सरकार भले ही इनको लाकडाउन तोड़ने का दोषी बताएं । लोग इन्हें देशद्रोही करार दे । किंतु सच्चाई तो यह है कि सरकार अपनी नाकामियों का ठीकरा गरीबों पर फोड़ रही है । सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है जिसके कारण लोग घर छोड़ कर बाहर आने को विवश हैं।

बता दें कि मुंबई गुजरात और दिल्ली में एक बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की है । जो वहां पर मजदूरी करके अपनी जीविका चलाते हैं । ऐसे करोड़ों लोग हैं जिनके पास रहने की कोई जगह नहीं है । मुंबई में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले ऐसे लोगों की संख्या बहुतायत है । जो 10 फिट के कमरे में 8 से 10 लोग रहते हैं । मुंबई में एक कहावत है कि आधी आबादी मुंबई सड़क और ट्रेन में रहती है और आधी मुंबई अपने कमरे में।
हालात पर गौर करें तो सरकार सोशल डिस्टेंस की बात कर रही है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि जब एक ही छोटे कमरे में 8 से 10 लोग भरे पड़े रहेंगे तो वह सोशल डिस्टेंस का पालन कैसे कर पाएंगे। कोरोना का मामला पूरे विश्व में कई महीनों से चल रहा है। लेकिन भारत में कोरोना मामले को लेकर सरकार तब हुई जब गायिका कनिका कपूर कोरोना पॉज़िटिव हुई । वह कई लोगों से मिली इसके बाद सरकार की नींद उड़ गई और कोरोना को लेकर सरकार गंभीर हो गई । जो सरकार विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने के लिए हवाई जहाज भेजा । उसी सरकार ने अचानक लॉक डाउन घोषित कर करोड़ों लोगों को कैद में रहने को विवश कर दिया।
मुंबई दिल्ली जैसे महानगरों में जिनके पास रहने के लिए पर्याप्त जगह है । खाने के लिए भरपूर साधन है । उनको तो कोई दिक्कत नहीं है । किंतु झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के लिए समस्या विकट हो गई । काम बंद होने के कारण वे बेरोजगार हो गए। सरकार भले ही दावा करें कि वह लोगों को भूखा नहीं रहने देगी किंतु सरकारी मशीनरी जिस तरीके से काम करती है उससे सभी लोग भलीभांति परिचित हैं । फिलहाल लॉकडाउन होने के बाद समाजसेवियों ने मोर्चा संभाला और भूखों का पेट भरने के लिए मुहिम चला दी। लेकिन यह मुहिम लोगों के लिए पर्याप्त नहीं थी । हालात यह पैदा हुए कि लोग 1000 से 1500 किलोमीटर तक पैदल चलकर अपने घरों के लिए जाने को विवश हुए । कई तस्वीरें ऐसी सामने आई । जब लोग बच्चों को गोद में लिए और सर पर गठरी लेकर पैदल अपने घरों को निकल पड़े । कई लोग रिक्शा लेकर 15 सौ किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए चल पड़े । यह दृश्य भारत-पाकिस्तान बंटवारे की याद दिलाने लगा । सरकार ने ऐसे लोगों के लिए कोई गंभीर प्लान नहीं बनाए । सिर्फ बयानबाजी करने से किसी का पेट नहीं भरता है । अभी भी गांव देहात में देखा जाए तो ऐसी बहुत सी बस्तियां हैं जहां पर सरकार के नुमाइंदों द्वारा एक-दो दिन का राशन बांट कर चुप्पी साध ली गई । कई जगह समाजसेवियों ने राशन बाटे और कई जगह पका हुआ खाना उपलब्ध कराया गया। लेकिन एक बस्ती में 1 दिन खाना उपलब्ध करा देने से किसी का पेट नहीं भर जाता है ।

सरकार की नाकामी यह रही थी गरीब लोग अपने कमरे में रहने के बजाय सड़क पर आने लगे । अधिसंख्य संख्या ऐसे लोगों की थी जो सड़क के किनारे पटरियों पर सोकर रात बिताते थे । उन लोगों के लिए रहने की कोई जगह नहीं थी। लेकिन सरकार उन लोगों के बारे में कोई प्लान नहीं बनाई। सरकार ने अचानक रेल सेवा बंद कर सभी को कैद में रहने को विवश कर दिया । सरकार ने यह नहीं सोचा कि जो लोग पटरियों पर सोकर रात बिताते थे । वह कहां जाएंगे । जो लोग एक कमरे में कभी दिन को कभी रात को पारी बांधकर सोते थे । वह कहां जाएंगे । ऐसे लोगों को घर पहुंचाने के लिए सरकार को योजना बनानी चाहिए थी । भले ही यह कहा जाए कि राजनीति के तहत लोगों को को सड़कों पर उतारा गया। लेकिन कोरोना जैसी घातक बीमारी से भी लोगों को डर नहीं लगा। बल्कि उनकी भूख उन पर हावी होने लगी। जिसका परिणाम आनंद विहार दिल्ली में देखने को मिला। जब हजारों लोग सड़क पर उतर आए । वही हालात दोबारा लॉकडाऊन घोषणा के बाद मुंबई में देखा गया । सूरत से में भी मजदूरों को सड़क पर आने की खबरें आ रही हैं। दिल्ली में कई हजार लोग यमुना के किनारे बसेरा बनाए हुए हैं । उनको रहने के लिए कोई जगह नहीं है। और वे अपने घर भी नहीं जा पा रहे हैं।

लोगों का कहना है कि उनके लिए खाने पीने का कोई इंतजाम नहीं है । एक तरफ सरकार बयान दे रही है कि कोई भी भूखा नहीं रहेगा और दूसरी तरफ लोगों को भोजन नहीं मिल पा रहा है । इस बारे में सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। आज भले ही जो लोग घरों में बैठे हैं सड़क पर उतरने वालों को देशद्रोही बताएं । कोरोना बम बताएं । लेकिन उन लोगों की मजबूरी का एहसास सरकार को करना होगा। जिनको न रहने की जगह है और खाने का ठिकाना है । किसी के ऊपर दोषारोपण करने से ही इस समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा। लाकडाउन करना निश्चित रूप से जरूरी था और कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार का यह प्रभावी कदम भी माना जा सकता है । किंतु उन लोगों के बारे में भी सरकार को सोचना चाहिए जिनको कोरोना से नहीं बल्कि भूख से डर लगता है। ताकि सरकार के खिलाफ राजनीति करने वाले लोग ऐसे गरीबों को अपनी राजनीति का मोहरा बनाकर उनकी जिंदगी से ना खेल पाएं ।

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