कहा जाता है दूसरों की मदद करना, मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मदद एक ऐसी चीज़ है जिसकी जरुरत हर इंसान को पड़ती है, चाहे आप बूढ़े हों, बच्चे हों या जवान, सभी के जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है जब हमें दूसरों की मदद की जरुरत पड़ती है।
आज हर इंसान ये बोलता है कि कोई किसी की मदद नहीं करता, पर आप खुद से पूछिये- क्या आपने कभी किसी की मदद की है? अगर नहीं तो आप दूसरों से मदद की उम्मीद कैसे कर सकते हैं!
उक्त बातें मैं इसलिये कह रहा हूं कि रविवार को सुरियावां रेलवे स्टेशन पर एक महिला अकेले भटक रही थी। शायद वह कहीं जा रही थी और स्टेशन पर अपने परिवार से छूट गयी या फिर कुछ और भी मामला हो सकता है। अक्सर ऐसे मामलों में देखा जाता है कि लोग इन घटनाओं को देखकर उत्सुकतावश पूछते हैं कि क्या हुआ और अपने विचार प्रकट करके रास्ता पकड़ लेते हैं। ऐसा बहुत ही कम होता है कि जब कोई मुसीबत में हो तो उसकी सहायत करने के लिये अपना कदम आगे बढ़ायें। आमतौर पर एक ही भाषा का प्रयोग किया जाता है कि अरे छोड़ों यार ऐसे लफड़े में कौन पड़े।
ऐसे मामलों में पुलिस का रूख भी सामान्य नहीं होता है। अपनी ड्यूटी बजा रहे पुलिस कर्मी मानवता के फर्ज को भूल जाते हैं, लेकिन उन्हीं में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो सर्वे भवन्तु सुखिन: जैसे सूत्र को अपनाते हुये मानवता को प्राथमिकता देते हैं। उन्हीं में से हैं सुरियावां एसएचओ सुनीलदत्त दूबे। किसी खोये हुये बच्चे को ढूंढकर उसके परिवार के पास पहुंचाना, किसी भटके हुये राहगीर को रास्ता दिखाना, बूढ़ों, बच्चों और महिलाओं को ट्रैफिक से बचाकर सड़क पार कराना जैसे कार्य इनके जीवन के अभिन्न अंग हैं।
जब श्री दूबे को खबर मिली कि एक बृद्धा स्टेशन पर भटक रही है तो उसे प्यार से थाने पर लाये। उसे बैठाकर चाय पिलाया और पूछताछ में उसने बताया कि उसका नाम फेकना, निवासी समाटर, थाना गोठनी, जिला सीवान, बिहार है। अब श्री दूबे के उपर यह बोझ नहीं है कि बैठे बिठाये एक फालतू केस उनके हाथ में आ गया, बल्कि उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि एक बृद्धा बेचारी अपने परिजनों से भटक कर कितनी दु:खी होगी। इसलिये उसे उसके घर भेजकर उसके परिजनों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरना चाहते हैं।
बता दें कि कोतवाल सुनील दत्त दूबे भदोही जिले के गोपीगंज, भदोही और औराई कोतवाली में अपनी सेवा दे चुके हैं। फिलहाल वे इस समय सुरियावां थाने का चार्ज संभाल रहे हैं। देखा यह गया कि श्री दूबे का भले ही कार्यक्षेत्र बदल गया हो किन्तु कभी कार्यशैली नहीं बदली और पुलिस की छवि को संवारने में हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं।
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