रिपोर्ट : दिनेश तिवारी
सुरत: धर्मों रक्षति रक्षतः के तत्वाधान में आयोजित नौ दिवसीय श्री राम कथा के आज पांचवें दिन की शुरुआत श्रीराम के जन्म की खुशी के बाद से प्रारम्भ हुई। श्री राम जन्म का आभास होते ही, ब्रह्म ऋषि श्री विश्वामित्र जी अयोध्या नगरी, राजा दशरथ के दरबार में निशाचरों के विनाश के लिए श्री राम और लक्ष्मण को मांगने आते हैं। ब्रह्म ऋषि श्री विश्वामित्र जी का राजा दशरथ द्वारा बहुत आदर सत्कार किया जाता है। ऋषि के आगमन से पूरे महल में प्रसन्नता का माहौल है। किन्तु कुछ क्षण पश्चात ही इस प्रसन्नता पर ग्रहण सा लग जाता है, जब ऋषिवर राजा दशरथ से श्री राम और लक्ष्मण की मांग रखते हैं। राजा दशरथ का मन पुत्र मोह वश ऋषि श्रेष्ठ की बात मानने को तैयार नहीं। राजा दशरथ कहते हैं कि, हे ऋषिवर! जीवन के चौथे पड़ाव में प्रभु के आशीर्वाद से पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई है, कृपया पुत्र आनंद से हमें वंचित ना करें। आप को आश्रम हेतु धन सम्पदा, जमीन, गौ जो भी चाहिए मैं देने के लिए तैयार हूं। आप कहें तो मैं मेरे प्राण आप को समर्पित कर दूं किन्तु हमारे नयन के तारे राम लखन को हमसे दूर मत करिए।
राजन की हृदय वेदना को समझते हुए ऋषि श्रेष्ठ विश्वामित्र जी गुरु वशिष्ठ से कहते हैं कि, हे वशिष्ठ! राजन को समझाओ और उन्हें बताओ कि प्रभु का अवतरण क्यों हुआ है?
गुरु वशिष्ठ के समझाने बुझाने पर राजा दशरथ मान जाते हैं तथा राम और लक्ष्मण को ऋषि श्रेष्ठ विश्वामित्र के साथ विदा करते हैं। विदाई के समय संगीतमय कथाकार श्रद्धेय श्री बाल मुकुंद जी महाराज के भजन “चले यज्ञ की रक्षा करने, मेरी आंखों के तारे। रघुपति राघव रामचन्द्र, दशरथ के राज दुलारे।” पर श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गए।
चलते-चलते रास्ते में बक्सर वन नामक जंगल पड़ता है, जहां ताड़का नामक राक्षसी रहती है,और आने-जाने वाले सभी का भक्षण करती हैं। जब ताड़का ने ऋषि और दो कुमारों को देखा तो वह उन्हें भी भक्षण करने को दौड़ी। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर और अबला व सबला नारी के भेद को जानकर श्री राम जी ने ताड़का का वध कर दिया।
ताड़का वध के समय संगीतमय कथाकार श्रद्धेय श्री बाल मुकुंद जी महाराज जी ने एक मार्मिक बात बताई कि किसी भी नदी में बिना पात्र के जलपान नहीं करना चाहिए।
श्रद्धेय श्री बाल मुकुंद जी महाराज जी ने बताया कि “एक बार राजा दशरथ शिकार करते हुए दूर तक निकल गये और प्यास से व्याकुल थे। उस समय ताड़का ने उन्हें पात्र दिया और राजा दशरथ की प्यास बुझी। ताड़का ने बदले में राजन से अयोध्या पर दो साल शासन करने का वर मांगा और राजन ने दे दिया।”
मरते समय ताड़का ने वह बात राम को स्मरण कराया और कहा रघुकुल रीत आप ने तोड़ दी। प्रभु श्रीराम ने कहा कि दो नहीं समय आने पर आप चौदह वर्षों तक अयोध्या में शासन करेंगी। उसी वरदान के फलस्वरूप “खड़ाऊ” रूपी ताड़का ने अयोध्या में चौदह वर्षों तक शासन किया।
आगे गौतम ऋषि के आश्रम में शिला रूप में स्थिति श्रापित माता अहिल्या को चरण रज से उन्हें श्राप मुक्त किया, और ऋषि के आश्रम को मारिच सुबाहु आदि राक्षसों के आतंक से निजात दिलाया।
तत्पश्चात् श्री राम और लक्ष्मण जी ब्रह्म ऋषि श्री विश्वामित्र जी के साथ मिथिला राज्य की ओर प्रस्थान करते हैं, जहां एक धनुष यज्ञ का आयोजन किया गया है, और पुनः एक बार पूज्य गुरुदेव श्री बालमुकुंद जी महाराज के भजन “लागल जनकपुर में मेला, विकल हमार मनवा करेला” पर भक्त झूमने को मजबूर हो गए।
धनुष यज्ञ में श्री राम चन्द्र जी धनुष का खण्डन करते हैं और पण्डाल प्रभु के जयकारे से गुंजायमान हो जाता है। माता सीता जी वर माला लिए दरबार में आती हैं और श्रोतागण एकबार फिर से पूज्य गुरुदेव संगीतमय कथाकार श्रद्धेय श्री बाल मुकुंद जी महाराज के भजन “झुक जैयो तनिक रघुवीर, लली मेरी छोटी सी” पर मंत्र मुग्ध हो अपने पैरों को थिरकने से नहीं रोक पाए।
आज की अमृतमय कथा का श्रवण करने हेतु राष्ट्रवादी युवा वहीनी के सभी सम्मानित सदस्यों के साथ श्री महेन्द्र जी (प्रदेश अध्यक्ष), विजय शुक्ला जी (प्रदेश उपाध्यक्ष) व सज्जन उपाध्याय जी (जिला संगठन मंत्री सुरत) उपस्थित रहे।
जय श्री राम 🙏