सावन का पवित्र महीना चल रहा है। और इस पावन और पवित्र महीने में सभी भगवान शिव की आराधना और पूजा तथा व्रत करते हैं। भाववान शिव बड़े ही भोले है इसलिए उन्हें भोले नाथ भी कहते हैं। भारत में भगवन शिव के १२ मंदिर है जिन्हे द्वादश ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
आईये आपको इन्ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक महाकालेश्वर ( जिन्हे महाकाल भी कहते है ) के दर्शन करते हैं। महाकाल का श्रृंगार भस्म (श्मशान घाट का राख ) से होता है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसे हैं महाकालेश्वर जो की उज्जैन ( पूर्व में उज्जैनी ) शहर में बसा है। उज्जैन मध्य प्रदेश में है यहाँ के पप्रमुख शहरों में से एक हैं। ये इंदौर से ५० की. मि. दूर हैं। इंदौर से उज्जैन पहुँचाने में अधिक से अधिक २ घंटे का समय लगता हैं।
कहते हैं की महाकाल के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पुराणों और अन्य ग्रंथो में भी महाकालेश्वर का वर्णन मिलता है। महान कवी कालिदास ने भी अपनी रचना ‘मेघदूत’ में इस प्राचीन मंदिर का खूबसूरत वर्णन तथा प्रशंशा की है। ये मान्यता है की भगवन स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। मंदिर १२३५ ई. में इल्तुत्मिश नमक शाशक ने इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किया , उसके बाद से यहां जो भी शासक आये उन सब ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया। जिससे मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। हर वर्ष सिंहस्थ के समय मंदिर को सजाया जाता है जिससे मंदिर की अलौकिक छवि उभर के आती है।
भारत में चार जगह कुम्भ लगता हैं उनमे से एक उज्जैन में लगता है और उसे सिंहस्थ कुम्भ कहते हैं। सिंहस्थ कुम्भ में सभी भक्त क्षिप्रा नदी में स्नान करके महाकाल भगवान का दर्शन प्राप्त करते हैं।
मंदिर का वर्णन
मंदिर के चारों तरफ ऊँची ऊँची दीवारे हैं जिसके भीतर यह स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढिया बानी हुई हैं। मंदिर में गर्भगृह में जाते समय आपको एक तालाब दिखाई देगा जी मदिर के अंदर ही स्थित हैं, जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। अंदर जाते समय आपको ऊपर में एक कक्ष दिखेगा जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग (ज्योतिर्लिंग जो ओम्कारेश्वर में हैं नर्मदा नदी के तट पर ) स्थापित है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में यहाँ हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। कहते हैं की इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद शिवलिंग की मंदिर में पुनःप्रतिष्ठा एवं प्राणप्रतिष्ठा कराइ गई। मंदिर के ऊपर आपको ११८ शिखर दिखेंगे हाल ही में इसके ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है। मंदिर के देख रेख के लिए एवं महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का भी गठन किया गया है।