माना की मैं कमज़ोर हूँ, तेरे डरने से डरा हूँ ,
पर इतना नहींं, की तू मुझे यूँ ही रौंद जायेगा,
सुन लॉकडाउन, तू मुझे तोड़ नहीं पायेगा।
हैं मेरे भी कुछ सपने, छोटी-छोटी ख्वाहिशें,
इनके बीच में न तू आ पायेगा,
सुन लॉकडाउन, तू मुझे तोड़ नहीं पायेगा।
माना ये दुनिया रुक सी गई है, वक़्त थम सा गया है,
पर मेरे हौंसले की उड़ान को, तू न रोक पायेगा,
सुन लॉकडाउन, तू मुझे तोड़ नहीं पायेगा।
कितनो को तूने तोड़ दिया, कितने टूट रहें हैं,
मुझ जैसे कितने हैं, जिनके हिम्मत को तू न तोड़ पायेगा,
सुन लॉकडाउन, तू मुझे तोड़ नहीं पायेगा।
तू है जब तक ,तब तक मैं घर बैठे खुद के हुनर को तराशूंगा,
और तू मुझसे मेरा हुनर न छीन पायेगा,
सुन लॉकडाउन, तू मुझे तोड़ नहीं पायेगा।
जाना तो तुझे है ही, ये सबको पता है,
पर जिस दिन तू जाएगा, नाचेंगे, गाएँगे, निकलेंगे सब घर से,
और तू चाह कर भी कुछ न कर पायेगा,
सुन लॉकडाउन, तू मुझे तोड़ नहीं पायेगा।
लेखक- सुजान ए. मिश्रा
Nice line