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लोकसभा चुनाव 2019: यूपी में बिछ रही सबसे बड़ी बिसात

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देश में हो रहे लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियां सत्ता पर काबिज होने के लिये अपनी शतरंजी चाल चलने लगी हैं, लेकिन सबसे बड़ी बिसात तो उत्तरप्रदेश में बिछायी जा चुकी है। इस बिसात के सभी बड़े मोहरे उत्तरप्रदेश में ही ताल ठोंक रहे हैं। इस सियासती बिसात के बड़े धुरंधर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस की ट्रंप कार्ड प्रियंका गांधी वाड्रा, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, समाजवादी सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव और सपा सुप्रीमों के भाई शिवपाल सिंह यादव शामिल हैं। इस सियासती शतरंजी चाल की बिसात पर हर कोई अपना दांव मजबूती से चल रहा है। अपने विपक्षियों को मात देने के लिये रणनीति के तहत अपनी सेना को मजबूत करने में लगा हुआ है।
इस चुनाव में सबसे बड़ा खतरा भाजपा, बसपा और सपा के समक्ष है, जबकि कांग्रेस इस खतरे से बहुत दूर है। यह खतरा किसी और से नहीं बल्कि अपनों से है। यह खतरा सबसे अधिक समाजवादी पार्टी को है। क्योंकि बीएसपी गठबंधन के बाद जिन सीटों पर बसपा लड़ रही है वहां पर समाजवादी पार्टी के संभावित उम्मीदवारों को भारी नाराजगी है। सपा के लिये दूसरी बड़ी चुनौती अपने परिवार से है। घर की इस महाभारत में फंसे सपाध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव भी दांव पेंच में लगे हैं।
मुलायम सिंह की स्थिति इस समय सबसे विकट है। शिवपाल उन्हें तलवार के रूप में इस्तेमाल कर रहे तो अखिलेश मुलायम को ढाल बनाये हुये हैं। जबसे अखिलेश मुलायम की गद्दी हथियाये हैं तब से शिवपाल इस ताक में लगे हुये हैं कि मुलायम पूर्णरूप से उनके साथ जुड़ जायें। मुलायम गाहे बगाहे अखिलेश को सलाह देते रहते हैं किन्तु उनकी सलाह को अखिलेश अक्सर दरकिनार कर देते हैं तो इसका फायदा शिवपाल उठाने की कोशिस करते हैं। खैर अखिलेश भी अपनी चाल चलते रहते हैं। इसी वजह से शिवपाल को पटखनी देने के लिये मुलायम की सबसे पसंदीदा सीट मैनपुरी से चुनाव लड़ने का टिकट दिया है।
मैनपुरी सीट से  मुलायम सिंह पहली बार 1996 में यहां से सांसद बने थे। तब से अभीतक यह सीट समाजवादी पार्टी का अभेद किला बना हुआ है। यहां से बलराम यादव और मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव भी सांसद रह चुके हैं। 2014 में जब मोदी की सूनामी ने यूपी में सारे विपक्षियों को साफ कर दिया उस वक्त भी मुलायम सिंह यादव ने आज़मगढ़ के साथ मैनपुरी सीट से भी किला फतह किया था। फिलहाल आजमगढ़ अपने पास रखने के बाद मैनपुरी से अपने पौत्र तेजप्रताप को सांसद बनाया था।
2019 की महाभारत में अखिलेश ने मुलायम को मैनपुरी से उम्मीदवार बनाकर शिवपाल यादव को पूरी तरह चित करने की कोशिश की है। भतीजे से नाराज चाचा शिवपाल समाजवादी पार्टी के गढ़ में सेंध लगाने की कूवत रखते हैं। शिवपाल मुलायम सिंह को आज भी अपना और अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का सरपरस्त बताकर उन्हीं के सहारे समाजवादी पार्टी के वोटबैंक को भावनात्मक मैदान पर हासिल करने के फिराक में हैं। चाचा भतीजा की इस बिसात में पूरा समाजवादी कुनबा ही मोहरा बना हुआ है।
शिवपाल यादव की नजर यही नहीं है बल्कि परिवार से बाहर सपा के हर उस कद्दावर नेता पर है जो खुद को शिवपाल या मुलायम से जोड़कर देखता है। बसपा से गठबंधन के तहत जहां से सपा के कद्दावर नेता चुनाव लड़ने से वंचित हैं वहां शिवपाल उन्हें अपनी पार्टी से चुनाव मैदान में उतार सकते हैं। वहीं सपा बसपा गठबंधन से दूर रही कांग्रेस भी शिवपाल से समझौता कर सकती है।
दूसरी तरफ उपरी तौर पर भले ही भाजपा बोल रही हो कि उसके उपर सपा बसपा गठबंधन का कोई असर नहीं पड़ेगा किन्तु यूपी में चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं बल्कि जातीय समीकरण पर होते हैं। इसलिये अपने हाथ में रही कई सीटें खोने का डर भाजपा को भी सता रहा है। इन सबसे अलग बसपा निश्चिंत होकर चुनाव लड़ने पर ही ध्यान दिये हुये हैं। क्योंकि यूपी में इसके पास खोने को कुछ नहीं है, जबकि कांग्रेस अपनी दो सीटों को बचाने के अलावा कुछ और सीटें  यूपी के छोटे छोटे दलों को मिलाकर बढ़ाना चाहती है।

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