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लोकसभा चुनावः कल्याण में देवेन्द्र सिंह को क्यों बनाया गया बलि का बकरा

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devendra singh

सत्ता एक ऐसी मृगतृष्णा है जो अच्छे अच्छे लोगों को अपने मायाजाल में फंसा लेती है, किन्तु इस मायाजाल में फंसने वाला व्यक्ति भी नहीं जान पाता कि उसने जो कदम उठाया है वह कितना उचित है। यहीं हाल है कल्याण से लोकसभा चुनाव के मैदान में कूदे देवेन्द्र सिंह का, जिन्हें कुछ लोगों ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये बलि का बकरा बना दिया है। ऐसा हमार पूर्वांचल नहीं कहता लेकिन कल्याण क्षेत्र में जो चर्चायें हो रही है, उसके आधार पर यहीं कहा जा सकता है कि कुछ लोग पैसे ऐंठने और कुछ लोग आगामी विधानसभा और नगरसेवक के चुनाव में अपनी गोटी फिट करने के लिये देवेन्द्र सिंह को सामने करके अपनी गोटी सेट करने में लगे हुये हैं।

गौरतलब हो कि मुम्बई में रहने वाले उत्तरभारतीयों में अपनी राजनीतिक इच्छाओं को पूरा करने का जूनून छाया रहता है। कई गुट में बंटे उत्तरभारतीय यह चिल्लाते भी रहते हैं कि कोई उत्तर भारतीय एकजुट नहीं रहता जिसके कारण स्थानीय शासन और प्रशासन द्वारा उन्हें इग्नोर किया जाता है। यदि कल्याण में उत्तरभारतीयों की संख्या को देखें तो आराम से नगरसेवक का सीट निकाल सकते हैं, लेकिन ऐसा इसलिये नहीं हो पाता कि विभिन्न गुटों में बंटे लोग अपनी राजनीति को चमकाने के लिये खुद को आगे और दूसरों को पीछे रखने का प्रयास करते हैं।

लोकसभा चुनाव में देवेन्द्र सिंह को इसीलिये उतारा गया है ताकि उत्तरभारतीय अपनी एकजुटता दिखाकर राजनीतिक दलों पर दबाव बना सकें कि अब वे भी एकजुट हैं और उनकी बातों को प्राथमिकता दी जाये। लेकिन मजेदार बात तो यह है कि जिस देवेन्द्र सिंह के नाम पर राजनीति का यह पासा बिठाया गया है, वे देवेन्द्र सिंह खुद उत्तरभारतीय नहीं है। लोगों का कहना है कि श्री सिंह उत्तरभारत के पूर्वांचल के जिलों से नहीं आते बल्कि वे सतना मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं जो मध्यभारत कहा जाता है। दूसरी तरफ श्री सिंह ने किसी दक्षिण भारतीय ब्राह्मण महिला से प्रेम विवाह किया है। जो कल्याण में एक प्रतिष्ठित अस्पताल संचालित करती हैं। ऐसे में जो व्यक्ति उत्तर भारत की मिट्टी के महक से ही दूर रहा हो उसके नाम पर भला उत्तरभारतीयों में एकजुटता कैसे आ सकती है।

गौरतलब हो कि गत दिनों जोशी बाग कल्याण के रहने वाले चर्चित समाजसेवी विजय पंडित का जन्मदिन समारोह मनाया गया। उस समारोह में काफी संख्या में उत्तरभारतीय मौजूद रहे। जिसमें देवेन्द्र सिंह भी शामिल थे। साथ ही कार्यक्रम में मौजूदा सांसद श्रीकांत शिंदे और उनके पिता तथा राज्य सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे भी मौजूद रहे। जिस कथित एकजुटता की बात उत्तरभारतीय हमेशा करते हैं, वे शिंदे की  चापलूसी करते दिखायी दिये। मंच पर श्री शिंदे को बोलने का मौका भी दिया गया लेकिन देवेन्द्र सिंह को यह मौका भी नहीं मिला। ऐसे में देवेन्द्र सिंह के नाम पर उत्तरभारतीयों की एकजुटता का झूठा दंभ भरने का दिखावा किया जाना सिर्फ यहीं दर्शाता है कि चंद लोगों ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये श्री सिह को मोहरा बना दिया है।

दूसरी तरफ जब कल्याण डोम्बीवली, दिवा, मुम्ब्रा, उल्हासनगर, अंबरनाथ आदि क्षेत्रों के प्रमुख उत्तरभारतीयों से बात की गयी तो उन्होंने साफतौर पर कहा कि यदि देवेन्द्र सिंह को उत्तरभारतीयों का साथ चाहिये था तो पहले वे समाज के प्रमुख लोगों के साथ बैठक करके राय लेते फिर राय के अनुसार कोई फैसला लेते तो कुछ कहा जा सकता था किन्तु चंद लोगों के बहकावे में आकर श्री सिंह द्वारा उठाया गया कोई भी कदम उचित नहीं है इसलिये कोई उत्तरभारतीय इस प्रकरण से खुद को दूर रखना चाहेगा।

देखा यह भी जा रहा है कि देवेन्द्र सिंह के यहां रोज बैठकें आयोजित हो रही हैं। चंद लोगों की जेबें भी गरम हो रही हैं, लेकिन उन्हीं में से कुछ लोग देवेन्द्र सिंह के प्रति कितने समर्पित हैं इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि देवेन्द्र सिंह के सामने हां में हां मिलाने वाले लोग बैठक के बाद भाजपा या शिवसेना के कार्यालय पहुचकर अपनी सफाई देने लगते हैं। ऐसे लोगों के उपर कोई परेशानी न आये इसलिये बोलते हैं कि बस व्यक्तिगत व्यवहार के नाते बुलाने पर चला गया था या फिर यह देखने गया था कि कौन कौन वहां आ रहा है। सोचने वाली बात है कि जो लोग देवेन्द्र सिंह के सामने उनकी हां में हां मिलाते हैं, वहीं लोग बाहर उनके पक्ष में खुलकर बोलने में भी हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में चंद चाटुकारों में घिरे श्री सिंह राजनीति में कितना सफल होंगे यह आने वाला वक्त ही बतायेगा। फिलहाल चर्चा यह भी है कि शिवसेना द्वारा उन्हें चुनाव न लड़ने की सलाह भी दी गयी है जिसका असर एक दो दिन में दिखायी दे सकता है।

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