अतुल शास्त्री जी बता रहे हैं कि संक्रांति की गणना के हिसाब से यह 16 जुलाई से शुरू हो चुका है। वहीं, पूर्णिमा की गणना के अनुसार सावन 27 जुलाई से शुरू होगा, हालांकि इसकी शुरुआत उदया तिथि यानी 28 जुलाई से मानी जाएगी।
इसका पहला सोमवार 30 जुलाई को है। संक्रांति और पूर्णिमा, दोनों ही हिसाब से इस बार सावन बेहद खास है। बात यह है कि इस बार सावन का महीना 28 या 29 दिनों का नहीं रहेगा बल्कि पूरे 30 दिनों तक चलेगा। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है। दरअसल इस बार का सावन 30 दिनों का होने के पीछे अधिकमास पड़ने के कारण हुआ है। 28 जुलाई को सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर सूर्योदय के साथ ही श्रावण मास का शुभारम्भ हो जाएगा। श्रावण नक्षत्र, मकर राशि और कर्क लग्न के साथ यह महीना शुरू हो रहा है। मकर राशि का स्वामी शनि और कर्क का स्वामी चन्द्र, दोनों ही सम शत्रु हैं। परिणामस्वरूप सी बार श्रावण में राजसी योग बन रहा है। अतुल जी के मुताबिक, इस बार सावन के कृष्ण पक्ष में दूज 2 दिन 29 और 30 जुलाई को होगी।
अतुल जी बता है किं सावन के महीने में सोमवार को व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। सावन के महीने में भक्त 4 प्रकार के व्रत रखते हैं। पहला- सावन सोमवार व्रत। दूसरा- सावन के पहले सोमवार से शुरू करके 16 सोमवार तक। तीसरा है प्रदोष व्रत, जो भगवान शिव और मां पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष के दिन किया जाता है। चौथा है मंगला गौरी व्रत, जो देवी पार्वती की प्रसन्नता के लिए सावन के हर मंगलवार किया जाता है।
व्रत और पूजन विधि
सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से तीसरे पहर तक किया जाता है। दिन में एक बार भोजन कर सकते हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें। पूजा स्थान की सफाई करें। आसपास कोई मंदिर है, तो वहां जाकर शिवलिंग पर जल व दूध अर्पित करें। भोलेनाथ के सामने आंखें बंद कर शांति-श्रद्धा से बैठें और व्रत का संकल्प लें। भगवान गणेश, माता पार्वती और नंदी की भी पूजा करें। भगवान शंकर के सामने तिल के तेल का दीया जलायें। पूजन में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, मोली, वस्त्र, चंदन, रोली, चावल, फूल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, कमल, प्रसाद, पान, सुपारी, लौंग, इलायची और दक्षिणा चढ़ायी जाती है। सावन सोमवार व्रत कथा का पाठ करें और दूसरों को भी कथा सुनाएं। शाम को पूजा कर और प्रसाद बांटकर व्रत खोलें। बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुष्प माना गया है। अन्य फूलों में कनेर, आक, धतूरा, अपराजिता, चमेली, नागकेसर, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जा सकते हैं। कदंब, चम्पा और केवड़ा के फूल नहीं चढ़ाए जाते।
सावन के सोमवार इनमें से कोई भी एक उपाय करें, ये भाग्य उदय करने में होंगे सहायक…
भस्म : सावन के पहले या किसी भी सोमवार को शिव मूर्ति के साथ यदि भस्म रखते हैं तो शिव कृपा मिलेगी।
रुद्राक्ष : मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी। सावन के सोमवार को रुद्राक्ष लाकर घर के मुखिया के कमरे में रखने से रुके हुए काम पूरे होते हैं। आर्थिक लाभ होता है, प्रतिष्ठा बढ़ती है।
गंगा जल : भगवान शंकर ने गंगा मां को अपनी जटा में स्थान दिया था। सावन के सोमवार को गंगाजल लाकर रसोई में रखने से घर में सम्पन्नता बढ़ती है, कार्यों में सफलता मिलती है।
चांदी या तांबे का त्रिशूल : घर के हॉल में चांदी या तांबे का त्रिशूल स्थापित करने से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है।
चांदी या तांबे का नाग : नाग को भगवान शिव का अभिन्न अंग माना जाता है। घर के मेन गेट के नीचे चांदी या तांबे के नाग-नागिन का जोड़ा दबाने से रुके हुए काम पूरे होते हैं।
डमरू : घर में डमरू रखने से नकारात्मक ऊर्जा का असर नहीं होता। खासतौर पर यदि इसे बच्चों के कमरे में रखें तो ज्यादा अच्छा होगा। बच्चे नकारात्मक ऊर्जा से बचे रहेंगे।
जल से भरा लोटा : घर के जिस हिस्से में परिवार सबसे ज्यादा रहता है, वहां तांबे के लोटे में पानी भरकर रखें। इससे घर के लोगों के बीच प्रेम और विश्वास बढ़ेगा। ध्यान रखें कि समय-समय पर पानी बदलते रहें। उस पानी को किसी पेड़-पौधे में डालें।
चांदी के नंदी : जिस प्रकार घर में चांदी की गाय रखने का महत्व है, उसी प्रकार चांदी के नंदी रखने का भी खास महत्व है। अपनी तिजोरी या अलमारी में जहां आप पैसे व गहने रखते हैं, वहां चांदी के नंदी रखें। इससे धन लाभ होगा।
सोमवार को पूजन करने से घर की स्त्रियां स्वस्थ रहेंगी और धन का लाभ होगा।
मंगलवार को शंकर जी की पूजा करने से शरीर निरोग होगा, भाइयों का प्रेम बढ़ेगा।
बुधवार के दिन पूजन करने से बुद्धि का विकास होगा, संतान का पढ़ाई में मन लगेगा।
बृहस्पतिवार के दिन भोले बाबा का पूजन करने से संतान सुख मिलता है, आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
शुक्रवार के दिन शंकर जी का पूजन करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है। भौतिक संसाधनों की वृद्धि होती है।
शनिवार को महादेव का पूजन करने से रुके हुए काम बनते हैं।
जानिये किस राशि वाले किस पर्दाथ करे शिव का अभिषेक …
मेष राशि वालों को पके हुए चावल से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
वृषभ राशि वालों को दूध से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
मिथुन राशि वालों को भांग से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
कर्क राशि वालों को जल से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
सिंह राशि वालों को नारंगी के रस से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
कन्या राशि वालों को भांग से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
तुला राशि के लोगों को शक्कर से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
वृश्चिक राशि के लोग शहद से शिव का अभिषेक कर सकते हैं।
धनु राशि के लोगों को गन्ने के रस से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
मकर व कुंभ राशि के लोगों को पंचामृत से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
मीन राशि के लोगों को मीठे जल अथवा गन्ने के रस से अभिषेक करना माना गया है।
सावन मास के 5 पौराणिक तथ्य:
1. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
2. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
3. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
4. ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
5. शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय साधु-संतों, भक्तों और अन्य सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
6. भगवान विष्णु जाते हैं पाताल, शिव ही होते हैं पालनहार
ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु अपनी जिम्मेदारियां महादेव को सौंपकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने चले जाते हैं। इस दौरान सावन में भगवान शंकर ही पालनकर्ता होते हैं। महादेव देवी पार्वती के साथ पृथ्वी वासियों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान इसी महीने में भगवान शंकर ने विषपान किया था।
इस महीने हर दिन पूजन करने का खास फल
रविवार के दिन शिवजी का पूजन करने से सन्तान का विकास होता है, पाप कटते हैं।
ज्योतिष सेवा केंद्र मुंबई
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