शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
मां काली का स्वरुप काला और देखने में बेहद डरावना है मुंड माला धारण करे हुए मां लाल जिह्वा को निकाले हुए अस्त्र शस्त्र धारण किए रौद्र स्वरूप आंखों में क्रोध की ज्वाला मान्यताओं के अनुसार माता के इस स्वरुप की उत्पत्ति राक्षसों के विनाश के लिए हुई थी। कहा जाता है कि महाकाली ही एकमात्र ऐसी शक्ति हैं जिनसे खुद काल भी खौफ खाते हैं और जब माता को क्रोध आता है तब इस संसार की पूरी शक्तियां एक साथ मिलकर भी उन्हें शांत नहीं करा सकती।
वहीं दूसरी तरफ देवों के देव महादेव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो आदि और अनंत हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए आखिर क्यों स्वंय महादेव को महाकाली के पैरों के नीचे आना पड़ा। अगर आप भी महाकाली के पैरों के नीचे क्यों आना पड़ा शंकर को ? इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो इससे पहले आपको शास्त्रों में वर्णित एक पौराणिक कथा के बारे में जानना होगा जो हम आपको बताने जा रहे हैं।
दैत्यों के नाश के लिए हुई महाकाली की उत्पत्ति
शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नाम के एक दैत्य ने कठोर तप करके वर पाया था कि अगर उसके खून की एक बूंद भी धरती पर गिरेगी तो उससे उसी के समान अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे। इस वरदान को पाने के बाद रक्तबीज ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल निर्दोष लोगों पर करना शुरू कर दिया तीनों लोकों पर अपने आतंक से हाहाकार मचानेवाले रक्तबीज से त्रस्त देवताओं ने आखिरकार उसे युद्ध के लिए ललकारा देवताओं और रक्तबीज के बीच भयंकर युद्ध शुरू हुआ देवताओ ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबीज का नाश करना चाहा लेकिन जैसे ही उसके शरीर से रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरती तो उससे अनके रक्तबीज पैदा होने लगे।
इस तरह से रक्तबीज और भी शक्तिशाली होने लगा था तब जाकर सभी देवता मदद के लिए मां की शरण में जा पहुंचे तब सुंदर स्वरुप वाली भगवती दुर्गा ने राक्षसों को मारने के लिए काला, विकराल और डरावना स्वरुप धारण किया। भयंकर और विकराल रुप वाली महाकाली ने युद्ध भूमि में प्रवेश लिया और राक्षसों का वध करना आरंभ किया, लेकिन धरती पर रक्तबीज का रक्त गिरने से अनेक दैत्यों का जन्म हो जाता जिससे युद्ध भूमि में उनकी संख्या बढ़ने लगी। तब मां काली ने अपनी जीभ के आकार को और भी विकराल कर लिया जिससे दानवों का रक्त धरती पर गिरने के बजाय माता की जीभ पर गिरने लगा इस तरह से मां दैत्यों का वध करते हुए उनका खून पीने लगीं।
आखिरकार सभी दैत्यों को मारने के बाद महाकाली ने रक्तबीज का भी वध कर दिया लेकिन उसका वध करते-करते महाकाली का गुस्सा इतना विकराल रुप ले चुका था जिसे शांत करना किसी भी देवता के बस की बात नहीं थी। वहां मौजूद सभी देवता माता के इस क्रोध को देख इतने ज्यादा डर गए थे कि वो उनके पास जाने से भी घबरा रहे थे लेकिन उनके गुस्से को शांत करना भी बेहद जरूरी था इसलिए सभी देवता मदद मांगने के लिए भगवान शिव के पास गए सभी देवताओं ने भगवान शिव से महाकाली के क्रोध को शांत करने की प्रार्थना की जिसके बाद भगवान शिव ने महाकाली के क्रोध को शांत करने की काफी कोशिश की लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम रही।
आखिरकार महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं माता के मार्ग में लेट गए जब महाकाली के पैरों के नीचे शिव आये तब माँ का क्रोध शांत हुआ। महाकाली के भंयकर क्रोध को सिर्फ महादेव ही शांत कर सकते थे इसलिए स्वयं भगवान शिव को महाकाली के पैरों के नीचे आना पड़ा।