बृहन्मुंबई महानगरपालिका के शिक्षा विभाग पर कड़ी नजर रखने वाली कुछ एजेंसियां ऐसी हैं जैसे उन्हें मनपा में सिर्फ खामियां ही निकालनी होती हैं। अच्छाइयां तो जैसे उन्हें चुभती हैं। ऐसा लगता है कि जैसे निजी विद्यालयों के हित के लिये हमेशा ही मनपा विद्यालयों को बदनाम करने का ठेका कुछ लोगों ने लिया हुआ है। महत्वपूर्ण यह नहीं है की मनपा विद्यालयों में छात्रों की संख्या में कमी हो रही है और उनके आंकड़े अन्य शैक्षणिक संस्थानों से कम हैं या ज्यादा, अपितु जो भी कमी की दर है वो क्यों है,ये जानना जरूरी है। यदि इन चीजों का सर्वेक्षण किया जाए तो पता चलेगा कि आज कई निजी संस्थान बंद होने के कगार पर आ गए हैं। वे आज भी मनपा विद्यालयों के ही बरगलाए हुए छात्रों पर जीवित हैं।किराए के घरों में रहने व बार-बार स्थलांतर होना, व मनपा की हद से बाहर रहना व बार -बार मनपा विद्यालयों के संदर्भ में गलत धारणाओं का निर्माण करने वाले कुछ लोगों की वजह से पालकों के मन में संदेह का निर्माण करना ही जैसे उनका लक्ष्य है। फिर भी लाख समस्याओं पर पार पाकर भी मनपा का शिक्षा विभाग सभी क्षेत्रों में डट कर खड़ा है व हर समस्या से लोहा लेते हुए अपने साख की रक्षा करते हुए निरंतर प्रगति किए जा रहा है।
हमेशा मनपा के शिक्षा विभाग पर उंगली उठाने वालों से पता नहीं कोई क्यों यह नहीं पूछता है कि, क्या कभी वे यहाँ की दर्जेदार व गुणवत्ता युक्त शिक्षा के बढ़ते हुए ग्राफ का सही आकलन कर उसकी रिपोर्ट भी जनता में लाए हैं? मुंबई महानगर पालिका स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की घटती संख्या की दृष्टि से जो रिपोर्ट चर्चा में है उसके अनुसार सन् 2014-2015 से 2018-2019 इन पाँच वर्षों की कालावधि में आंकड़े यह दर्शातें हैं कि 24प्रतिशत विद्यार्थियों की संख्या घटी है। संख्या कम होने पर बढ़ता खर्च, विद्यार्थियों को दसवीं तक मनपा स्कूलों में रोकने में असफलता प्राइवेट स्कूलों की तुलना में स्काँलरशिप प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या की कमी। ऐसी कुछ बातों का उल्लेख है। कहीं न कहीं ये आंकड़े भ्रामक लगते हैं। वर्ष 2014-2015की तुलना में 2018-2019 में बृहन्मुंबई महानगरपालिका के स्कूलों के विद्यार्थियों की संख्या घटी है,इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह 9प्रतिशत है, न कि 24प्रतिशत। क्योंकि वर्ष 2014-2015 मेंं विद्यार्थी संख्या 3लाख 91हजार 772थी जो कि 2018-2019में 2लाख 71हजार218 है, जो दर्शाती है कि 94हजार 957 विद्यार्थी संख्या घटी है, जिसमें 55हजार 982 ऐसे विद्यार्थी हैं जो निरंतर अनुपस्थित पाए गए हैं। इसका सीधा-सीधा मतलब है कि इतने विद्यार्थी स्थलांतरित हुए हैं। उनके नाम स्कूल से काट दिए गए हैं, क्योंकि वे दूसरी जगह पर हैं। अर्थात यह प्रतिशत 24 न होकर 9 है। वहीं दूसरी ओर न केवल मनपा स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या घटी है बल्कि इससे कहीं अधिक तो मुंबई के प्राइवेट स्कूलों सहित अन्य स्कूलों में भी विद्यार्थियों की संख्या घटी है। सन् 2011-2012 में 14लाख 71हजार 890 विद्यार्थी संख्या जो कि 45.86प्रतिशत घटी है जो कि सन् 2018-2019में 7लाख 96हजार 814 है। अर्थात निजी स्कूलों सहित कुल स्कूलों की संख्या की तुलना में मनपा स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बहुत ही कम घटी है।
यहां पर एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जनसंख्या बढ़ोत्तरी की जन्म दर जो कि सन् 2007-2008में 32.07 प्रतिशत थी ,वहीं 2017में 27.78 प्रतिशत हो गई।इस तरह से जनसंख्या दर में 4.29 प्रतिशत की गिरावट हुई है। इसका असर भी विद्यार्थियों की घटती संख्या पर हुआ है। क्योंकि 2014-2015में महाराष्ट्र के विद्यार्थियों की संख्या 1करोड 98लाख 37हजार 479 थी जो कि आश्चर्य जनक है,क्योंकि 2017-2018में यह संख्या बढ़ी नहीं। इसके विपरीत 1लाख 53हजार 15 विद्यार्थियों की संख्या घटकर 1करोड 96लाख 84हजार 464 हो गई। ऐसा लगता है कि दुर्भाग्य से 24 प्रतिशत की कमी को दर्शाने वालों ने शायद इन पहलुओं पर विचार ही नहीं किया। वर्ष 2008-2009में मनपा का 1हजार 360करोड 62लाख का आर्थिक बजट था। सन्2018-2019 में 1हजार 598 करोड़ 90लाख का आर्थिक बजट है। अर्थात सन् 2008-2009 की दृष्टि से 2018-2019 में 465करोड का बजट अधिक है। आर्थिक बजट बढ़ाने के लिए विगत 10वर्षों में बढ़ी हुई महंगाई, छठवां तथा सातवां वेतन आयोग, स्कूल की इमारतें और उसमें सुविधा हेतु बढ़ा हुआ खर्च, नव नवीन उपक्रमों के प्रारंभ होने की वजह से आर्थिक बजट में बढ़ोतरी। यह सब नैसर्गिक और नगण्य है।
पहली कक्षा से दसवीं कक्षा तक विद्यार्थियों को मनपा स्कूलों में शिक्षा का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह प्रशंसनीय है। मूलतः प्राथमिक शिक्षा।यह मनपा की जिम्मेदारी है फिर भी मनपा ने 216दसवीं तक विभिन्न माध्यमों के स्कूल खोले हैं, साथ ही नियमानुसार जिस कैंपस में प्राइवेट अनुदानित माध्यमिक स्कूल हैं, वहां मनपा के नए माध्यमिक वर्ग नहीं शुरू किए जा सकते, इस सच्चाई को समझने की आवश्यकता है। फलस्वरूप यह बच्चे पास के ही माध्यमिक स्कूलों में प्रवेश लेते हैं। इसलिए विद्यार्थियों को रोकने में असफलता ही मिलती है।स्कालरशिप परीक्षा की चर्चा की जाएं तो पता चलता है कि इस परीक्षा में निजी स्कूल उन्हीं छात्रों को परीक्षा में शामिल करते हैं, जो कि सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
मनपा सभी विद्यार्थियों को अवसर देती है, न कि निजी स्कूलों की तरह कम से कम विद्यार्थियों,को वह भी ऐसे जो कि परीक्षा में सफल हो सकें। फलस्वरूप निजी स्कूलों के परीक्षा परिणाम अच्छा होने का ढिंढोरा पीटा जाता है। लेकिन वास्तव में अच्छा परीक्षा परिणाम मनपा का ही होता है, क्योंकि निजी स्कूलों से कम विद्यार्थी परीक्षा देते हैं और मनपा के ज्यादा। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि मनपा अपने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने का काम करती है। इनमें से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन इससे मनपा के विद्यार्थियों में अनुशासनबद्ध अध्ययन करने व आनेवाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने की आदत हो जाती है।
वास्तव में सन् 2015में मनपा के 100 विद्यार्थी स्कालरशिप उत्तीर्ण थे।2019में 239हैं। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो मनपा के शिक्षा विभाग को बदनाम करने वाले यह क्यों नहीं बताते है कि मनपा में परिश्रमी जनों को तकलीफ इस वजह से होती है क्योंकि 1 किमी के दूरी के अंदर ही कुकुरमुत्ते की तरह निजी विद्यालयों का जन्म हुआ व स्पर्धा और अच्छी शिक्षा के नाम पर लूट खसोट का खेल शुरू हुआ है। जिसका सीधा असर सरकारी व मनपा के विद्यालयों पर पड़ा है। इन सभी समस्याओं से पार पाते हुए मनपा विद्यालय के शिक्षक, मुख्याध्यापक और अधिकारी वर्ग विद्यार्थियों का भविष्य उज्जवल बनाने में ठीक उसी तरह से लगे हैं जिस तरह से एक माँ अपने बेटे का भविष्य बनाती है। अर्थात बृहन्मुंबई महानगरपालिका शिक्षा की माँ अर्थात जननी ही तो शायद इसी वजह से मनपा में पढ़ कर निकले असंख्य विद्यार्थी हर क्षेत्र में विजय पताका फहरा रहें हैं। ऐसे में मनपा की बदनामी नहीं होनी चाहिए क्योंकि यही मनपा है जिसकी वजह से असंख्य लोगों को रोजगार मिला है और राष्ट्र निर्माता शिक्षक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर ,वकील और जनप्रतिनिधि बनकर देश सेवा का मौका मिला है।
चंद्रवीर बंशीधर यादव, शिक्षाविद्
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