जनपद जौनपुर के मडियाहूं थाना क्षेत्र के सलारपुर बुजुर्गा गांव के 22 वर्षीय मुकेश यादव रोजीरोटी के लिए मुंबई के नालासोपारा मे रहता था। इसे मुंबई प्रशासन की लापरवाही कहें या कुछ और कि मुकेश जो कि जिंदा था उसे कोरोना से मृत बता दिया गया। यही नहीं बकायदा अधिकारियों द्वारा 13 मई को शव जलाने के बाद अभिभावकों को प्रमाणपत्र तक सौंप दिया गया। अब चार जुलाई को जब मुकेश ने घर पर फोन कर जान बचाने की गुहार लगाई तो परिजनों का रो रोकर बुरा हाल हो गया है। पुत्र की जान बचाने को माता-पिता पुलिस व लोगों के समक्ष दर दर की फरियाद लगा रहे हैं। शिकायती पत्र में मां प्रभावती देवी का कहना है कि उनका पुत्र मुकेश यादव रोजी-रोटी के सिलसिले में महाराष्ट्र के मुंबई स्थित नालासोपारा के वाकंपाड़ा में रहता था।
गत तीन मई को जब वह बीमार हुआ तो नालासोपारा में ही बालाजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जहां छह मई को चिकित्सकों द्वारा कैंसर की बीमारी बताकर महाराष्ट्र के ही केएम हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया गया। केएम हॉस्पिटल में 10 मई को यह कहा जाता है कि आपका पुत्र कोरोना वायरस से पीड़ित है, फिर उसे कोविड-19 वार्ड में भर्ती करा दिया गया। जहां 12 मई को मुकेश जब अपने मामा से बात कर रहा था तभी 15 मिनट बाद उसकी मोबाइल छीनकर स्वीच ऑफ कर दी गई। आधे घंटे बाद परिजनों को सूचना मिली कि उसकी कोरोना से मौत हो गई। उसका शव परिजनों को 12 मई को प्लास्टिक से बांधकर सौंप दिया गया। उसके शव को जलाने के दौरान चेहरा भी नहीं देखने दिया गया। बीते चार जुलाई को पुत्र ने अपनी पत्नी सुनीता के मोबाइल पर फोन किया। बातचीत में रो-रो कर कहा कि वह बुरी तरह से फंस गया है, उसकी जान खतरे में है। दोबारा फोन करने पर मोबाइल स्वीच ऑफ बता रहा है।