Home मन की बात सावन की तीज की महत्ता- मंजू गुप्ता

सावन की तीज की महत्ता- मंजू गुप्ता

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मंजु गुप्ता

लघुकथा

भारतवर्ष में हर त्योहार मौज मस्ती, खुशियों से भरा होता है। सावन शुक्ल की तीज भारत में हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है। सावन की फुहारें लिए सावन की हरियाली तीज आती है। धरा हरे परिधानों से सुज्जित दिखायी देती है।  हराभरा पर्व भारत के उत्तर के राज्यों में मनाया जाता है।
भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से मिलने सावन के महीने में धरा पर आते हैं। भोले, सरल व्यक्तित्व के शिव भक्तों की पूजा अर्चना से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करते हैं ।शिव के गीत, मंत्र, भजन, कजरी गायक गाके शिवमय परिवेश कर देते हैं। ब्रह्मा जी चार महीने के लिए बैकुंठ में वास कर निद्रा में लीन हो जाते हैं। ऐसे में शिव जी कैलास को छोड़कर पार्वती के संग मृत्युलोक में आ के कण-कण का मंगल करते हैं । इसलिए सावन माह की महिमा बढ़ जाती है।

प्रकृति में चहुँ ओर हरियाली मादकता लिए नजर आती है। वर्षा से धरती नहाती है और हरियाली के नववस्त्रों से अपना श्रृंगार करती है। वर्षा का जल तरलता, ठंडक, समरसता, जीवन देने का प्रतीक है । इसलिए शिवजी को सावन पसंद हैं। इसलिए सावन में शिव पूजन का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
विवाहित महिला मिट्टी की गौर बनाके पूजा करती हैं। सुख सौभाग्य से दाम्पत्य जीवन खिला रहे की कामना करती हैं। इसलिए इस तीज का व्रत रखती है।

माँ पार्वती ने इस व्रत को रखा था ।स्त्रियाँ समूह में एक दूसरे घरों में जाकर सुबह से शाम तक गीत गा के झूला झूल के अपनी खुशियाँ व्यक्त करती हैं। हर घर आँगन , बरामदों झूले डाले जाते हैं। अगर शादीशुदा लड़की की पहली तीज पर ससुराल में हैं, तो पीहर वाले सिंधारा ससुराल में भिजवाते हैं।जिसमें घेवर मिठाई, सुहाग श्रृंगार के सारे समान होते हैं।  जिसमें मेहंदी, बिंदी, सिंदूर कांच की चूड़ियाँ मुख्य होती है। मेहंदी सुहाग, प्रेम की निशानी है। काँच की चूड़ियाँ बड़ी नाजूक होती है। उसे बहुत सँभाल के पहनते हैं। टूटे नहीं। उसी तरह से अपने जीवन साथी की देख रेख भी बड़े सँभाल के करनी पड़ती है। कभी रूठे नहीं।

कुआँरी लड़कियाँ भी सावन तीज का व्रत बढ़िया वर पाने के लिए रखती है। मंदिर में लाल, हरे रंग के लहरिया पहन सुहागिनें पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। लहरियां पानी की लहरों का प्रतीक है। मेवाड़ के राजपरिवार की देन लहरिया है। जल तत्व जीवन जीने के लिए जरूरी है। महिला, नारियों का यह लोकपर्व झूले झूल, झूल के गा के मनाती हैं। उत्तर भारत में तीज की रौनक देखती ही बनती है। बिना घेवर के यह त्योहार अधूरा है। श्रावणी तीज का त्योहार उत्साह, उमंग, ऊर्जा से मालामाल करता है।
नारी प्रधान यह त्योहार है। लोक गीतों में कई गीत स्त्रियाँ मिलजुलकर गाती हैं।

जैसे –
शिव शंकर चले कैलास
बुंदियाँ पड़ने लगी ****
डालों में पड़ गए झूले
अम्मा मेरी
झूलन जाऊंगी *****
हरियाली तीज इश्क, प्रेम, प्यार, मोहब्बत, सुहाग का पैगाम और दिल से दिल जुड़ने, जुड़ाने का पैगाम लाती है। मानव से मानव जुड़े यही प्रेम, अमन का पाठ हमें हरियाली तीज देती है।

डॉ मंजु गुप्ता
वाशी, नवी मुंबई 

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