देवेन्द्र सिंह के नामांकन जूलूस में 1000 का आंकड़ा भी नहीं छू पायी भीड़
अपने अस्तित्व की धमक दिखाकर कल्याण डोम्बीवली में हिन्दीभाषियों को एकजुट कर एकता का संदेश देने की पहल चुनाव से पहले ही ठांय ठांय फिस्स होती दिखायी दे रही है। जिससे कई उत्तरभारतीयों के चेहरे पर मायूसी सी दिखायी देने लगी है। हालात यह है कि गुरूवार की रात जुझारू कार्यकर्ताओं के चेहरे पर छायी चमक तब फीकी पड़ गयी जब समाज की धमक दिखाने को आतुर निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थन में निकाला गया नामांकन जूलूस फ्लाप साबित हुआ।
गौरतलब हो कि मुम्बई में रोजी रोटी कमाने गये उत्तरभारतीयों के मन में अपने अधिकारों के प्रति हमेशा सजगता रहती है। अपने सम्मान और अस्तित्व को कायम रखने के लिये यह समाज मुम्बई में हमेशा प्रयत्नशील रहता है। इसी कड़ी में बड़ी मेहनत से मंथन करने के पश्चात पेशे से अस्पताल का संचालन करने वाले देवेन्द्र सिंह को उत्तरभारतीयों/हिन्दीभाषियों ने अपना अगुआ चुना और उन्हें लोकसभा के चुनाव मैदान में उतार दिया।
मंशा यह थी कि इसी बहाने समाज के लोग भाजपा और शिवसेना में अपनी अपनी धमक और मौजूदगी का अहसास करायेंगे ताकि महाराष्ट्र की भाजपा और शिवसेना उनके अस्तित्व को स्वीकार उनके अधिकारों को समझे और उत्तरभारतीय बहुल क्षेत्रों में विधानसभा व नगरसेवक का टिकट देकर उन्हें भी राजनीतिक कुर्सी पर बैठकर सत्ता के सुख का स्वाद चखने का मजा मिले। इसके लिये बड़ी मशक्कत के बाद श्री सिंह के नाम का चयन किया।
इसमें मुश्किल यह भी थी भाजपा शिवसेना गठबंधन होने के कारण भारी संख्या में उत्तरभारतीयों का रूझान इस फैसले की तरफ नहीं हो पाया। इसके लिये श्री सिंह को चुनाव न लड़ने का सुझाव भी दिया गया किन्तु राजनीति का चस्का लग जाये और अपने समाज की सेवा करने का जूनून सवार हो जाये तो किसी की बात भला पल्ले कैसे पड़ेगी। लिहाजा लोगों के सुझावों को श्री सिंह ने अपने समर्थकों के कहने पर खारिज कर दिया और पूरे मूड के साथ दो—दो हाथ करने के लिये मैदान में कूद पड़े।
नामांकन में ही उत्तरभारतीय समाज अपनी धमक दिखा दे इसके लिये बड़ी गंभीरता से प्लान बनाया गया। गुरूवार को देर रात तक चली बैठक में दावा किया गया कि कम से कम 10 हजार कार्यकर्ता नामांकन जूलूस में शामिल होंगे। स्थानीय मीडिया को भी इस बैठक में बुलाया गया और उन्हें राय दी गयी कि 10 हजार की संख्या में नामांकन जूलूस निकलेगा और समाज के सम्मान को बढ़ाने के लिये मीडिया इसे बढ़ा चढ़ाकर दुगुना करके छापे। मीडिया वालों ने भी वादा कर लिया कि यदि सड़क पर 10 हजार की भीड़ निकली तो वे 20 हजार की भीड़ भी दिखा सकते हैं।
शुक्रवार की सुबह होते ही श्री सिंह के जुझारू समर्थक पूरे जोशो खरोश के साथ मैदान में उतर गये। अपनी ताकत को दिखाने के लिये पूरे मनोयोग से निकले समर्थकों ने बड़ी मेहनत की और लोगों से अपील की कि दोपहर में निकलने वाले जूलूस में लोग अधिक से अधिक संख्या में आये, लेकिन समर्थकों के चेहरे पर दोपहर होते होते पसीना चुहचुहाने लगा। लोगों ने यह पसीना देखा तो सोचा कि कड़ी धूप के कारण यह पसीना निकला होगा, लेकिन ऐसा नहीं था बल्कि रात को किये दावे को धूल धूसरित होते देख यह पसीना निकल आया था। इतनी मेहनत के बाद भी बड़ी मुश्किल से नामंकन जूलूस की संख्या 1000 का आंकड़ा छू पायी थी, जिसमें कुछ लोग दूसरी पार्टियों के जासूस भी बताये जाते हैं, जो अपने लोगों को सूचना उपलब्ध कराने के लिये पहुंचे थे।
गौर करने वाली बात यह है जिस उत्तरभारतीय और हिन्दीभाषी समाज को एकजुट करने और अपनी ताकत दिखाने के लिये समाज के सजग प्रहरी और युवा कड़ी मेहनत कर रहे हैं, उनके साथ में कोई खड़ा होता दिखायी नहीं दे रहा है। नामांकन जूलूस के दौरान हालात यह थे कि कुछ लोग अपनी साख बचाने के प्रयास में थे। वे नहीं चाहते थे कि कोई ऐसा व्यक्ति उन्हें जूलूस में देख ले जो दूसरे दलों के लोगों को जाकर बता दें, लिहाजा अपनी एक झलक दिखाने के बाद इधर उधर होते दिखायी दिये। सोचने वाली बात यह है समाज को एकजुटता की राह पर ले जाने वाले युवाओं का मनोबल यदि ऐसे ही उत्तरभारतीय समाज तोड़ता रहेगा तो आने वाला दिन …!
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बहुत बढ़िया लेख, जो उत्तर भारतीय शिवसेना बीजेपी मे पदों पर है क्या वह और उनके समर्थक देवेन्द्र सिंह को सपोर्ट करेंगे नामुमकिन है यह !
खैर इच्छा पूरी कर ले कुछ लोगो के चढ़ाने से !
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