रिपोर्ट द्रुप्ति झा
• राज्य के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर लेखकों के लिए प्रोत्साहन और सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग पर राज्य सरकार मौन क्यों है?
• क्या राज्य सरकार के पास नवोदित लेखकों की आजीविका, उनके सम्मान और उन्हें प्रोत्साहन देने के विषय में सोचने तक का समय नहीं है?
• क्या लेखकों को राज्य सरकार से समर्थन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए?
झारखंड के लेखकों की सूची में कतारबद्ध तथा जमशेदपुर के सुप्रसिद्ध लेखक अंशुमन भगत द्वारा लिखे पत्र से अन्य राज्यों के लेखकों में जगी उम्मीद। झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जमशेदपुर शहर के लेखक अंशुमन भगत ने कुछ दिनों पहले पत्र लिखा था जिसमें लेखकों को होने वाली समस्याओं, उनके आजीविका, मान सम्मान तथा लेखकों को प्रोत्साहन मिलने से संबंधित मुद्दे पर बात कही थी। इसे लेकर देश के अलग-अलग राज्यों से लेखकों का समर्थन मिल रहा है। लेखकों का कहना है कि हमें अगला मुंशी प्रेमचंद्र नहीं बनना, यदि उन्हें भी सरकार द्वारा बढ़ावा मिला होता तथा उनकी आजीविका के लिए प्रोत्साहन राशि मिली होती तो वह गरीबी में नहीं मरते। एक लेखक का जीवन काफ़ी संघर्ष भरा होता है और संघर्ष करने के बाद भी उसे प्रसिद्धि मिलेगी या नहीं यह समय तय करता है। किंतु प्रसिद्धि हासिल करने के बावजूद भी कई लेखक तनाव और आर्थिक तंगी में आकर खुद को परिस्थिति के हवाले सौंप देते हैं ऐसे में सरकार का फर्ज बनता है कि लेखकों की आजीविका के विषय पर विचार करें और उन्हें समय-समय पर प्रोत्साहन राशि के द्वारा उन्हें बढ़ावा दे। जो संपन्न है उन्हें तो किसी भी आर्थिक सहायता की जरुरत नहीं है किंतु जो संपन्न नहीं है वो वंचित रह जाते है जिनमें प्रतिभा है वो पीछे छूट जा रहे है। आज शहर में कई युवा जो अपने लेखन से लोगों की सराहना प्राप्त कर रहे हैं, उनकी भी इच्छा होती है कि उन्हें भी सरकार द्वारा किसी तरह की मदद मिले, जिससे वह अपने जीवन में और बेहतर कर सकें और अपनी कला को सबके बीच ला सके। यदि लेखकों को राज्य सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाए तो अन्य युवाओं में लेखन को अपनाने तथा लेखन में अपना करियर बनाना से पीछे नहीं हटेंगे।