Home मन की बात यादों की बरसी प्रेमांजलि, पुष्पांजलि, स्मरणांजलि- मंजू गुप्ता

यादों की बरसी प्रेमांजलि, पुष्पांजलि, स्मरणांजलि- मंजू गुप्ता

563
0

हम सबकी आँखों के तारे हमारे बड़े भाई विजय कुमार वार्ष्णेय सेवा निवृत्त आई ए एस 20 अगस्त 2018 को परम धाम चले गए। बड़े भाई के गम में ग्यारह महीने का काल खंड का अमिट घाव की पीड़ा हृदय के समुद्र में दुख के ज्वार भाटा का सैलाब दुखी परिवार को आंदोलित कर भिगो रहा है। आज ऋषिकेश परिवार उनकी बरसी मना रहा है। अश्रुपूर्ण नयनों से हमारे पूरे परिवार की उनको श्रद्धाजंलि है। पूज्यनीय बड़े भाई ऋषिकेश परिवार, समाज, देश के वे अनमोल कोहिनूर थे।

 

हमारे भाई सेवा निवृत आईएएस के व्यक्तित्व, कृतित्व को शब्दों में बखान नहीं कर सकते हैं। कवि हृदय, दूरदर्शी, बहुआयामी, उदारवादी, मानवीयता, विचारक, चिंतक, दार्शनिक, अध्यात्मिक, शिक्षाविद, उत्कृष्ट प्रशासक, वाकपटुता, तार्किक क्षमताओं, हाजिरजवाबी से सर्वगुणसंपन्न गुणों के धनी थे। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह मर्यादावान, कृष्ण सरीखे कलाओं में निपुण, धैर्यवान, चाणक्य की तरह प्रबुद्ध, अर्जुन सम विभिन्न सौपानों के लक्ष्य पर एकाग्रता, युधिष्ठर समान धर्मनिष्ठ, कर्ण, दधीचि – से दानी, बुद्ध से आपो दीपो भव, माता – पिता के श्रवण, भाई बहनों के लिए भरत सम कर्त्तव्य निष्ठा से ओतप्रोत थे। उन्होंने फूल गुलाब की तरह अपने गुणों की खुशबू से उनके संपर्क में आए हर आम, खास व्यक्ति को महकाया।

सबसे बड़ा गुण उनमें उदारता और प्रेम था। उनकी एक मुस्कान, प्रेम से ही लोग जुड़ जाते थे। उन्हें प्रेम का एनसाइकोलोपीडिया कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
कमजोर, दलित, पिछड़ा, गरीब, अबलाओं के मसीहा बन रोजगार दे के स्वाबलंबी बनाया। दुखियों की जीवन किश्ती को सहारा दे के पार किया। गरीब वर्ग, कन्याओं को पढ़ाना शादी कराना समाजोत्थान के कायों में रत रहे थे। अंहकार उनके आभामंडल से दूरी बनाए हुआ था। महानगर, लखनऊ में उनके निवास स्थान के पास बना शिव मंदिर उनके सत्यम शिवम सुंदर के मूल्यों को दर्शाता है ।

पतित पावन गंगा तीर्थ धाम ऋषिकेश उनकी जन्मभूभि के संग संस्कारों की भूमि थी। गुलामी के अंधकार में आजादी की किरण 21 जुलाई 1947 को माँ शांति देवी, पिता प्रेमपाल के घर में जन्मे थे। आजादी हमें 15 अगस्त 1947 को मिली थी। स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी, शैक्षिक क्रांति के जनक माँ – पिता ने उनका नाम ” विजय ” रखा । उनमें जैसा नाम था वैसे ही गुण थे।

माँ पिता के संग माँ गंगा की कृपा उन पर खूब बरसी। वे कार्यों में गंगा की लहरों की तरह ऊर्जावान , गतिशील रहे। वे एक व्यक्ति न हो कर एक संस्था, एक संगठन थे। इसलिए उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड के वे लाडले थे। शिक्षा के क्षेत्र में ऋषिकेश का भरत मंदिर डिग्री कालेज का पहला छात्र विजय कुमार वार्ष्णेय आई . ए. एस का दीवार पर लगा फोटो उनके मेधावी होने के साथ उनकी उपलब्धियों का , गर्व का सबूत है। ऋषिकेश में हमारे छोटे भाई नवनीत कुमार आई ए एस के अलावा कोई भी छात्र आई ए एस नहीं बना है । समाज के वे प्रेरणास्रोत हैं।

विजय भाई ने बहुआयामी नयी सोच अपनी कर्मनिष्ठा और कार्यों की पताका से ग्रामीण इलाकों , शहर , तहसील में सभी कर्मचारियों को समय की पाबंदी , स्वच्छता से जोड़ा था ।समय नियोजन को महत्त्व दिया। जीवन के आखिरी पड़ाव पर सात महीने कैंसर जैसे रोग से पीड़ित मुस्कराता लाडला लाल धरा का सितारा अब हम से दूर चाँद बन अन्य तारों को जगमगाने चले गए। बस हमारी यादों में मेरी कविता, साहित्य में रचे बसे हैं। सकारत्मक ऊर्जा का सूर्य अपनी प्रतिभा, कार्यों की दीपशिखा से लखनऊ, ऋषिकेश, देश, समाज में जगमगा रहे हैं।

आँसुओं से भीगे भाव
दर्द की दासता को तोड़
बाधा की आँधी को मोड़
उड़ा परिंदा पिंजरे से
सदा के लिए हमको छोड़ ।।

गुड्डी (मंजु गुप्ता )
वाशी,नवी मुंबई

Leave a Reply